Rajasthan

नवरात्र में इस देवी के धाम में होती थी एक भैसे-पांच बकरों की बलि, पूजन के समय दागी जाती थी तोप

कोटा:- कोटा से 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित डाढ़ देवी मंदिर रियासत कालीन समय से पहले का मंदिर है, जो कोटा के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है. घने जंगलों के बीचो-बीच विराजमान यहां माता का मंदिर है. दोनों नवरात्रों पर यहां 9 दिनों तक मेला लगता है और लाखों श्रद्धालु कोटा ही नहीं, काफी दूर-दराज से आते हैं. नवरात्र में देवी की महिमा का गुणगान, पूजन व दर्शन खास फल देने वाला माना गया है. माता के लिए कोई व्रत रखता है, तो कोई उपवास रखते हैं, कोई देवी के पाठ में तल्लीन हो जाते है. यूं तो हर दिन माता भक्तों से प्रसन्न होती हैं, लेकिन नवरात्र की बात ही न्यारी है. हजारों श्रद्धालु हर रोज माता के दर्शनों के लिए जहां पहुंचते हैं.

हर साल 9 दिनों तक लगता है मेलाइतिहासकार फिरोज अहमद ने लोकल 18 को बताया कि डाढ़ देवी मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में कैथून के तंवर क्षत्रियों के द्वारा किया गया था. हर साल दोनों नवरात्रि में यहां 9 दिनों तक मेला लगता है.  डाढ़ देवी वास्तव में रक्त दंतिका देवी हैं, क्योंकि देवी की डाढ़ बाहर निकली हुई है. इस कारण लोगों ने देवी का नाम डाढ़ देवी कर दिया और मंदिर इसी नाम से विख्यात हो गया.  महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय के शासनकाल में देवी के पूजन के लिए पंचमी के दिन भारी लवाजमें के साथ आसपास के जागीरदारों के साथ छोटी सवारी के रूप में जाते थे. पुरोहितों द्वारा माता का विधि विधान से पूजन किया जाता था और मंदिर परिषद में दरी खाने का भी आयोजन होता था.

म्हाराव उम्मेद सिंह द्वितीय के शासनकाल के समय देवी पर शारदीय नवरात्रों में एक भैंस और पांच बकरों की बलि दी जाती थी. उस समय दरबार जिस जागीरदार की तरफ उंगली कर देते थे, उसे ही भैसे और बकरे की एक ही बार में बली करनी होती थी. इस बलि प्रथा को भी म्हाराव उम्मेद सिंह द्वितीय ने बंद कर दिया था. पूजन के समय तोप दागी जाती थी. मंदिर परिसर के अंदर मौजूद पवित्र कुंड के पानी से स्नान करने से अनेक रोग दूर हो जाते थे. वहीं आसपास के गांव के लोग मंदिर के पानी को भरकर अपने खेतों में छिड़काव करते थे, जिससे फसलों में रोग नहीं लगता था.

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राज परिवार के सदस्य हर साल करते हैं पूजाराव माधव सिंह म्यूजियम ट्रस्ट के क्यूरेटर पंडित आशुतोष दाधीच ने Local 18 को बताया कि डाढ़ देवी माता मंदिर पर पूर्व राज परिवार शारदीय नवरात्र की पंचमी के दिन पूर्व महाराज और उनके पुत्र कुंवर डाढ़ देवी माता मंदिर पर आते हैं और रियासतकालीन परंपरा के तहत माता की पूजा अर्चना करते हैं. रियासत कालीन परंपरा के तहत माता की पूजा अर्चना के साथ पोशाक धारण करवाकर रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन करने के साथ ही हाडोती के लोगों के लिए शुभ समृद्धि खुशहाली की माताजी से कामना करते हैं.

Tags: Kota news, Local18, Navratri festival, Rajasthan news

FIRST PUBLISHED : October 11, 2024, 19:08 IST

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