employment and crime | रोजगार के नए-नए मौके और अपराध
कानून की किताब में ‘अपराध’ का निर्धारण बाद में होता है, पहले समाज उसे नैतिकता के तराजू पर ‘अपराध’ मानता है। जरूरी है कि तकनीकी प्रगति के दौर में सामने आ रहे रोजगार के नए-नए मौकों को अपनाने से पहले उसे नैतिकता के तराजू पर तौला जाए।
जयपुर
Published: April 09, 2022 09:26:06 pm
तकनीकी प्रगति ने हमारे जीवन को पूरी तरह बदल दिया है। यह न सिर्फ हमारे आगे बढ़ने के नए-नए रास्ते खोल रही है बल्कि, विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्रदान कर जीवन को आसान भी बना रही है। लेकिन, यह सिर्फ इसका एक पक्ष है। दूसरा पक्ष यह भी है कि इस प्रगति ने हमारे प्रत्यक्ष सामाजिक सरोकारों को सीमित किया है और आपराधिक मानसिकता वाले व्यक्तियों के लिए भी आसान कमाई के मौके प्रदान किए हैं, जो बिना यह सोचे कि किसी का नुकसान हो सकता है, नैतिकता को ताक पर रख कर धन कमाने की अंधी दौर में शामिल हो गए हैं। कुछ तो ऐसे तरीके भी अपना रहे हैं, जिन्हें कानूनी तौर पर अपराध नहीं माना जाता पर उससे किसी दूसरे को अपूरणीय क्षति हो सकती है। ऐसा ही मामला एक बार फिर तब सामने आया जब दुनियाभर के बच्चों में काफी लोकप्रिय कार्टून कैरेक्टर ‘हग्गी वुगी’ को लेकर ब्रिटेन की पुलिस ने अलर्ट जारी किया। इस कार्टून को लेकर अभिभावकों की पहले ही उड़ी हुई थी, अब पुलिस ने भी कह दिया है कि अपने बच्चों को बचाएं, क्योंकि इससे उन्हें न सिर्फ मानसिक बल्कि शारीरिक तौर पर भी नुकसान हो सकता है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इतने हानिकारण कार्टून को चलने ही क्यों दिया जा रहा है। प्रतिबंधित कर इसके निर्माण पर ही रोक क्यों नहीं लगाई जा रही है?

रोजगार के नए-नए मौके और अपराध
‘हग्गी वुगी’ ही नहीं, ऐसे ढेरों ऑनलाइन कंटेंट, मनोरंजक सीरीज और प्लेटफॉर्म रोज सामने आ रहे हैं, जिनका फायदा कम और नुकसान ज्यादा है। लेकिन, यह उन्हें चलाने या बनाने वालों के लिए आय का जरिया होते हैं और उनकी कमाई का एक हिस्सा सरकारों को भी टैक्स के रूप में जाता है। यह रोजगार के मौके प्रदान कर रहा है, जिसे उपलब्ध कराना किसी भी सरकार के लिए चुनौती होती है। ऐसे में इसके नकारात्मक पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है। ज्यादा हुआ तो अलर्ट कर दिया गया। जैसे चोर को चोरी के काम में लगा दिया हो और पहरेदार को अलर्ट करते रहने की ड्यूटी पर। जब तक पानी सिर से ऊपर नहीं चला जाए सरकारें आंख मूंदे रहती हैं। उसके बाद भी संबंधित प्लेटफॉर्म को तो प्रतिबंधित कर दिया जाता है, पर उसके पीछे जो लोग होते हैं, उनके कर्म को अपराध की श्रेणी में नहीं लाया जाता। नतीजा यह होता है कि नाम बदलकर वे फिर उसी धंधे में लग जाते हैं।
आर्थिक जरूरतें हमेशा से ‘अपराध’ की परिभाषा तय करती रही हैं। कभी धन चुराना या छीनना भी अपराध नहीं माना जाता था। आज भी कई देशों में जुआ या सट्टा अपराध नहीं है। लॉटरी को तो अब भी ज्यादातर स्थानों पर अपराध नहीं माना जाता। ये सब ऐसे काम हैं जो दूसरों को नुकसान पहुंचाने के आधार पर ही किए जाते हैं। कानून की किताब में ‘अपराध’ का निर्धारण बाद में होता है, पहले समाज उसे नैतिकता के तराजू पर ‘अपराध’ मानता है। जरूरी है कि तकनीकी प्रगति के दौर में सामने आ रहे रोजगार के नए-नए मौकों को अपनाने से पहले उसे नैतिकता के तराजू पर तौला जाए।
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