‘दो धारी तलवार’ के सामने थर-थर कांपते थे दुश्मन, राजस्थान के इस गांव में आज भी मौजूद हैं साक्ष्य

मनीष पुरी/ भरतपुर: राजस्थान की वीर भूमि पर जन्मे महान योद्धा करण सिंह माडापुरिया की वीरता और साहस के किस्से आज भी गूंजते हैं. लोहागढ़ के इस जाट योद्धा ने अपनी अदम्य शक्ति और बहादुरी से न सिर्फ दुश्मनों के छक्के छुड़ाए बल्कि इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया. उनकी 50 किलो वजनी दोधारी तेग (तलवार) से दुश्मनों को चीरने की ताकत उनके पराक्रम का प्रतीक थी.
पहलवानी से युद्ध कौशल तक का सफरकरण सिंह माडापुरिया का जन्म भरतपुर के रुदावल क्षेत्र के माडापुरा गांव में हुआ था. वे बचपन से ही पहलवानी के शौकीन थे और उनकी ताकत व वीरता के चर्चे भरतपुर समेत आस-पास के इलाकों में गूंजते थे. उनका शरीर बलवान था और युद्ध के मैदान में जब वे अपनी भारी तेग उठाते थे, तो दुश्मनों के हौंसले पस्त हो जाते थे. उनकी वीरता और युद्ध कौशल को देखते हुए भरतपुर के राजा बलदेव सिंह ने उन्हें अपने साथ ले जाकर लोहागढ़ किले की रक्षा के लिए कई युद्धों में तैनात किया.
अंग्रेजों पर जीत और सैनिकों का मनोबलकरण सिंह माडापुरिया ने लोहागढ़ किले की रक्षा करते हुए कई बार अंग्रेजों से लोहा लिया और हर बार उन्हें शिकस्त दी. उन्होंने न सिर्फ दुश्मनों से लड़ाई लड़ी बल्कि अपने सैनिकों का मनोबल भी बढ़ाया. उनकी वीरता को लोकगीतों और कहानियों में आज भी जीवित रखा गया है. उनके बारे में मशहूर कहावत है, आठ फिरंगी, नौ गोरा और लड़े जाट के दो छोरा. यह कहावत उनकी शौर्यगाथा को बताती है.
वीरता का अनोखा किस्साकरण सिंह माडापुरिया की वीरता का एक अनोखा किस्सा तब का है जब दुश्मनों के हमले के दौरान युद्ध करते हुए अचानक उनकी लूंगी खुल गई थी, जिसे राजा और रानी ने देख लिया. शर्मिंदगी से बचने के लिए करण सिंह ने 8-9 दुश्मनों को अपनी बाहों में भरकर सुजान गंगा नहर में छलांग लगा दी. यह घटना उनकी निडरता और आत्मसम्मान की गाथा को उजागर करती है.
करण सिंह की धरोहरआज भी माडापुरिया गांव में करण सिंह की वीरता के अवशेष मौजूद हैं. उनके द्वारा बनाए गए सफेद पत्थर की छतरियां और भारी पत्थर की प्याऊ उनकी कला और साहस का प्रतीक हैं. उनकी सवा मण वजनी तलवार भरतपुर के अजायबघर में संरक्षित है. इस तलवार का उपयोग वे युद्ध में किया करते थे और आज यह उनकी वीरता का जीवंत प्रमाण है.
प्रेरणा और विरासतकरण सिंह माडापुरिया की वीरता की गूंज आज भी भरतपुर और राजस्थान की मिट्टी में सुनाई देती है. उनका जीवन इस बात का संदेश देता है कि सच्चा योद्धा वही है जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटता. लोहागढ़ के इस महान योद्धा की कहानियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी और उनकी विरासत हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगी.
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FIRST PUBLISHED : October 20, 2024, 18:09 IST