एथेनॉल फैक्ट्री बनाम किसान, टिब्बी का राठीखेड़ा गांव छावनी में तब्दील! जानें क्या है विवाद?

हनुमानगढ़. हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी क्षेत्र के राठीखेड़ा गांव में प्रस्तावित एथेनॉल फैक्ट्री को लेकर किसानों और कंपनी के बीच विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. एक ओर कंपनी इसे क्षेत्र में विकास, रोजगार और आर्थिक मजबूती का अवसर बता रही है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण इसे अपने पर्यावरण, पानी और कृषि भविष्य के लिए गंभीर खतरा मान रहे हैं. दोनों पक्षों के तर्कों और दावों ने पूरे इलाके में तनाव का माहौल बना दिया है और विरोध इतना तीव्र हो चुका है कि फैक्ट्री का निर्माण कार्य कई महीनों से पूरी तरह रुका हुआ है. आखिर यह संघर्ष क्यों खड़ा हुआ और विवाद की असल वजहें क्या हैं, इसे क्रमवार समझते हैं.
राठीखेड़ा गांव में लगने वाली इस फैक्ट्री का विरोध अचानक नहीं शुरू हुआ बल्कि समय के साथ बढ़ता गया. ग्रामीणों का कहना है कि यह प्रोजेक्ट उनकी जमीन और पानी पर सीधा असर डाल सकता है, इसलिए वे अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं. दूसरी तरफ कंपनी का दावा है कि आधुनिक तकनीक और नियमों के तहत यह प्लांट पूरी तरह सुरक्षित है और इसका फायदा पूरे इलाके को मिलेगा. इसी विरोधाभास ने पूरे मामले को एक बड़े औद्योगिक विवाद का रूप दे दिया है.
फैक्ट्री लग कौन रहा है और परियोजना कितनी बड़ी हैराठीखेड़ा गांव में 450 करोड़ रुपये की लागत से 1320 केएलपीडी क्षमता का विशाल एथेनॉल प्लांट प्रस्तावित है. यह परियोजना चंडीगढ़ की ड्यून इथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की है, जो देशभर में इथेनॉल उद्योग चलाने वाले CDBL समूह से जुड़ी हुई है. कंपनी ने यहां करीब 45 एकड़ जमीन खरीदी है और पर्यावरणीय मंजूरी, भूमि उपयोग परिवर्तन, राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति, भूजल उपयोग की स्वीकृति और आबकारी विभाग से एनओसी जैसे सभी जरूरी आदेश प्राप्त करने का दावा किया है.
कंपनी का क्या दावा है?कंपनी के सीनियर जनरल मैनेजर जयप्रकाश शर्मा का कहना है कि फैक्ट्री शुरू होने के बाद करीब डेढ़ हजार लोगों को रोजगार मिलेगा और हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का मक्का तथा चावल स्थानीय किसानों से खरीदा जाएगा. इससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में बड़ा सुधार आएगा और पराली की खरीद से किसानों को अतिरिक्त आय भी मिलेगी.
किसान विरोध क्यों कर रहे हैं?ग्रामीणों का विरोध जुलाई के अंत में तेज हुआ जब कंपनी ने चारदीवारी का निर्माण शुरू किया. इसका विरोध करते हुए लोगों ने जागरूकता अभियान चलाया और 12 अगस्त को टिब्बी SDM कार्यालय के बाहर बड़ा आंदोलन किया. आंदोलन के बाद ग्रामीण प्रस्तावित साइट पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए जिससे निर्माण कार्य पूरी तरह रुक गया.
किसानों की असली चिंताकिसानों का कहना है कि फैक्ट्री चलने पर रोजाना बड़ी मात्रा में रासायनिक मिश्रित दूषित पानी निकलेगा जो भूजल में मिलकर पूरे क्षेत्र के पानी को प्रदूषित कर देगा. इससे पीने और सिंचाई दोनों के लिए पानी बेकार हो जाएगा और कृषि चौपट होने का खतरा है. ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि प्लांट से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण बढ़ाएगा जिससे लोगों की सेहत पर गंभीर असर होगा और बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा. किसानों का कहना है कि वे पूरी तरह भूजल पर निर्भर हैं और ऐसी फैक्ट्री उनकी जमीन और जीवन दोनों के लिए खतरा बन सकती है.
कंपनी की सफाई और तकनीकी दावेकिसानों के आरोपों का जवाब देते हुए कंपनी के महाप्रबंधक जेपी शर्मा का कहना है कि ग्रामीणों की आशंकाएं तथ्यों पर आधारित नहीं हैं. उनका दावा है कि यह प्लांट ZLD यानी जीरो लिक्विड डिस्चार्ज प्रणाली पर चलेगा जिसमें किसी भी तरह का दूषित पानी बाहर नहीं छोड़ा जाता. पूरा पानी शोधन के बाद दोबारा प्लांट में उपयोग किया जाएगा. धुआं भी नियंत्रित तरीके से ऊपरी वातावरण में छोड़ा जाएगा और जो राख बचेगी उसका उपयोग ईंट भट्टों, लैंड फिलिंग और खाद के रूप में किया जाएगा. शर्मा का यह भी कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली का पूरा डेटा ऑनलाइन PCB सर्वर से जुड़ा रहेगा जिससे पारदर्शिता बनी रहेगी.
विवाद की जड़ क्या हैअसल विवाद भरोसे की कमी से पैदा हो रहा है. कंपनी तकनीकी दावे कर रही है लेकिन किसानों को इन दावों पर विश्वास नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि कई बार कागजों पर तो सब कुछ सुरक्षित दिखाया जाता है लेकिन जमीन पर हालात बिल्कुल अलग होते हैं. उनके अनुसार एक बार पानी और हवा प्रदूषित हो जाए तो उसका नुकसान वापस नहीं सुधारा जा सकता. किसानों का यह भी कहना है कि उनकी राय लिए बिना सरकार और कंपनियां ऐसे बड़े प्रोजेक्ट लागू कर देती हैं जो उनकी जिंदगी पर सीधा असर डालते हैं.
फिलहाल स्थिति यह है कि करोड़ों की निवेश वाली परियोजना अधर में अटकी हुई है और गांव का माहौल लगातार तनावपूर्ण बना हुआ है. आगे क्या होगा यह जांच, संवाद और भरोसे पर निर्भर करेगा, लेकिन अभी के लिए टिब्बी का राठीखेड़ा गांव एक बड़े औद्योगिक संघर्ष की सबसे प्रमुख जमीन बन चुका है.



