राहुल गांधी से कांग्रेस मुख्यालय के कर्मचारियों को उम्मीदें, भविष्य अनिश्चित

राहुल गांधी जब-जब मजदू्रों, मोचियों, ट्रक ड्राइवरों, सब्जी बेचने वाले छोटे दुकानदारों और ऐसे ही अन्य लोगों से बातचीत करते हुए टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर दिखाई देते हैं, तब-तब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के 24, अकबर रोड वाले मुख्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों की जुबान पर एक ही सवाल होता है – ‘राहुल जी हमारे पास कब आएंगे?’
कांग्रेस मुख्यालय के 24, अकबर रोड से कोटला मार्ग स्थित इंदिरा भवन में स्थानांतरित होने के बाद से ही एआईसीसी के सौ से भी अधिक कर्मचारियों के भविष्य पर अनिश्चतता की तलवार लटक गई है. इन कर्मचारियों में पूर्णकालिक और अस्थायी दोनों तरह के कर्मचारी शाामिल हैं. पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर विभिन्न महासचिव, सचिव और विभागीय प्रमुख जैसे तमाम पदाधिकारी नए मुख्यालय में चले गए हैं. हालांकि पुराने मुख्यालय से नए मुख्यालय की दूरी महज 4.4 किमी है, लेकिन यह अल्प दूरी भी पार्टी नेतृत्व और इन कर्मचारियों के बीच एक बृहत मनोवैज्ञानिक अलगाव में बदल गई है. इनमें से अधिकांश कर्मचारी जनवरी 1978 से ही कांग्रेस पार्टी की सेवा में कार्यरत रहे हैं और एआईसीसी पदाधिकारियों, कार्यालयों तथा विभागों के लिए क्लेरिकल कार्य करते आए हैं.
इन कर्मचारियों के समक्ष अनिश्चितता इसलिए भी गहरा गई है, क्योंकि पार्टी का मुख्यालय तो नए परिसर में शिफ्ट हो गया है, लेकिन उन्हें वहां जाकर रिपोर्ट करने के अब तक कोई आदेश प्राप्त नहीं हुए हैं. मुख्यालय इंदिरा भवन स्थित नए परिसर में 15 जनवरी 2025 को स्थानांतरित हुआ था और तब से दो माह बीत बीत चुके हैं. स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) या गोल्डन हैंडशेक जैसी किसी योजना अथवा वित्तीय मुआवजे का भी कोई संकेत नजर नहीं आ रहा. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी.वी. नरसिंह राव, सीताराम केसरी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ काम कर चुके अनेक कर्मचारियों को महसूस हो रहा है कि भारी वित्तीय संकट से जूझ रही कांग्रेस पार्टी के पास उनको देने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. डर सता रहा है कि उन्हें कहीं पूरी तरह से उनके हाल पर ही ना छोड़ दिया जाए.
गांधी त्रयी पर अब भी भरोसाहालांकि शीर्ष नेतृत्व आमतौर पर इन कर्मचारियों के प्रति संवेदनशील रहा है, लेकिन फिलहाल इस मुद्दे पर उसकी तरफ से किसी ठोस बातचीत की कोई पहल नहीं हो रही है. कुछ कर्मचारियों को गांधी त्रयी (सोनिया, राहुल और प्रियंका) पर अटूट विश्वास है और उन्हें भरोसा है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी उनके हितों के लिए जरूर कुछ करेंगे. उनका मानना है कि नैतिकतावादी सोच के साथ राहुल एक संवेदनशील इंसान हैं और वे उनके मुद्दे को सही तरीके से समझेंगे. एक वरिष्ठ एआईसीसी कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘राहुल जी दिहाड़ी मजदूरों, किसानों, औद्योगिक श्रमिकों, ट्रक ड्राइवरों, मोचियों आदि की समस्याओं को बड़ी गंभीरता से सुनते हैं. वे हमारे लिए भी कुछ अच्छा करेंगे. उन्हें और उनके परिवार को पता है कि हमने 1978 से ही कांग्रेस पार्टी के निर्माण में कितना योगदान दिया है, उस समय भी जब पार्टी सत्ता से बाहर थी और इसी तरह के अनिश्चितता के दौर से गुजर रही थी.’
छत की चिंता ज्यादा बड़ीसूत्र कहते हैं कि इन कर्मचारियों को अपनी नौकरी के साथ-साथ एक बड़ी चिंता घरों को लेकर भी हो रही है. 24, अकबर रोड को केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को वापस सौंपने के बाद इन कर्मियों को अपने घरों और सरकारी क्वार्टरों से बेदखल होना पड़ सकता है.
दरअसल, 24, अकबर रोड लुटियंस दिल्ली में टाइप VIII बंगला है, जिसमें कई छोटे-छोटे आवास बने हुए हैं. इन्हीं आवासों में कांग्रेस मुख्यालय में कार्यरत कर्मचारी और उनके परिवार रहते आए हैं. इन तमाम घरों में बिजली के इलेक्ट्रिक मीटर, सैटेलाइट डिश, रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर या कूलर लगे हुए हैं. हालांकि इनमें से अधिकांश निर्माण शुरू से ही अनधिकृत थे, लेकिन किसी भी सरकार ने इन पर ध्यान नहीं दिया. बल्कि दिल्ली में जब-जब भी कांग्रेस की सरकारें आईं, उसके शहरी आवास मंत्री ने पार्टी के प्रति निष्ठा साबित करने के फेर में बढ़-चढ़कर नियमों को इस तरह तोड़ा-मरोड़ा कि मुख्यालय परिसर में भीतर ही भीतर बेखटके निर्माण कार्य किए जा सकें.
शादियों में सोनिया देती थीं महंगी साड़ियांएआईसीसी के सचिवालय कर्मियों ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. जब दिग्विजय सिंह 1998 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उस समय उन्होंने प्रत्येक एआईसीसी कर्मचारी को कीमती डिनर सेट भेंट किए थे. जब भी किसी एआईसीसी कर्मचारी की बेटी या बेटे की शादी होती, तो सोनिया गांधी उन्हें अपने निजी हैंडलूम और सिल्क के संग्रह में से महंगी साड़ियां उपहार में देती थीं. इसके अलावा, 24, अकबर रोड का विशाल लॉन भी उन्हें शादी के रिसेप्शन के लिए बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराया जाता था.
इन एआईसीसी कर्मचारियों ने इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नरसिंह राव, सीताराम केसरी, अहमद पटेल, जितेंद्र प्रसाद, गुलाम नबी आजाद, मोहसिना किदवई, अंबिका सोनी, प्रणब मुखर्जी, डॉ. करण सिंह, नटवर सिंह, मनमोहन सिंह, मोतीलाल वोरा, माधवराव सिंधिया और कांग्रेस के कई अन्य दिग्गज नेताओं के साथ काम किया है. इसलिए इनके पास अनेक रोचक कहानियां और संस्मरण हैं. कुछ कर्मचारियों को अब भी याद है कि 1 जनवरी 1978 को 24, अकबर रोड के कांग्रेस मुख्यालय में तब्दील होने के बाद इसके भीतर सबसे पहली बार प्रवेश करने का मौका उनके एक सहकर्मी शोभन सिंह (अब दिवंगत) को मिला था.
बूटा सिंह ने लिए थे इंटरव्यूए.आर. अंतुले, बूटा सिंह, ए.पी. सिंह और बी.पी. मौर्य तथा कोषाध्यक्ष प्रणब मुखर्जी ने बंगले के उस सबसे बड़े कमरे, जो पहले लिविंग और डाइनिंग रूप के रूप में इस्तेमाल किया जाता था, को कांग्रेस अध्यक्ष के दफ्तर में बदल दिया था. वहां बेंत की एक कुर्सी और एक छोटी सी टेबल की व्यवस्था की गई, लेकिन दीवारें खाली रहीं. वहां तब न कोई कालीन बिछाया गया था और न ही दरवाजे के आगे कोई पायदान रखा गया था. बूटा सिंह ने एक बेडरूम को अपने ऑफिस में बदल दिया था और वहीं बैठकर उन्होंने कार्यालय स्टाफ की नियुक्तियों के लिए साक्षात्कार लिए थे. शोभन सिंह, जिन्होंने 2009 तक लगातार 52 साल तक कांग्रेस की सेवा की थी, ने एक बार याद करते हुए कहा था, ‘बूटा सिंह जी ने मुझसे कहा कि पार्टी मुझे आठ सौ रुपए महीने की पगार देने की स्थिति में नहीं है. इस मैंने जवाब दिया कि मैं बिना वेतन के भी काम करने को तैयार हूं.’
आज एआईसीसी के कर्मचारियों को इस बात का दुख है कि अब तक किसी ने भी उनसे कोई बात नहीं की है. कम से कम आकर यही कह दें कि पार्टी के पास उन्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है. हालांकि कुछ को वीआरएस की उम्मीद है, जबकि कुछ अन्य का मानना है कि नए पार्टी कार्यालय में उनके बिना एक भी फाइल आगे नहीं बढ़ पाएगी.