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हाइलाइट्स

पुलवामा शहीद वीरांगना केस अपडेट
पुलवामा शहीद वीरांगनाओं की मांगों पर बवाल
वीरांगनाओं की मांगों को लेकर राजस्थान में राजनीति चरम पर

जयपुर. जम्मू कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को शहीद हुए सीआरपीएफ के 40 जवानों में से तीन जवानों की वीरांगनाओं (Pulwama Veerangana case) और राजस्थान सरकार के बीच चल रहा टकराव खत्म नहीं हो रहा है. इसको लेकर राजस्थान में राजनीति चरम पर है. सीएम अशोक गहलोत ने वीरांगनाओं की मांगों को गलत बताकर अपना स्टैंड साफ कर दिया है. वहीं बीजेपी इस मुद्दे पर सरकार को घेरे हुए है. लिहाजा अभी तक इसका कोई समाधान नहीं निकल पाया है. बयानबाजियों का दौर बदस्तूर जारी है. अपनी मांगों को लेकर धरने प्रदर्शन कर रही दो वीरांगनाओं की मांग है कि उनके देवरों को नौकरी दी जाए वहीं तीसरी वीरांगना की मांग की उनके पति की सांगोद में प्रतिमा लगाई जाए.

अब सवाल ये कि इस बारे में केंद्र और राज्य सरकार की नीति क्या है. जानकारों के अनुसार शहीदों के बच्चों को नौकरी का प्रावधान न सेना में है न ही अर्धसैनिक बलों में है. शहीद के परिवार के बच्चों के लिए नौकरी में कुछ रियायतों का प्रावधान जरुर हैं. हर राज्य सरकार शहीदों के परिवार को सहायता पैकेज अपने हिसाब से देती है. कारिगल युद्ध से पहले शहीदों के लिए नौकरी समेत आर्थिक सहायता का कोई बड़ा प्रावधान नहीं था. लेकिन कारगिल युद्ध के बाद केंद्र और राज्य सरकारों दोनों ने ही शहीदों के परिवार के लिए न सिर्फ आर्थिक सहायता के बड़े पैकेज देने शुरू किए बल्कि राज्य सरकारों ने शहीद के एक बेटे को अनुंकपा नौकरी देने की भी शुरुआत की.

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गहलोत बोले पूरा पैकेज दिया जा चुका है
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दावा कर रहे हैं कि पुलवामा शहीदों के परिवार को चार साल पहले ही पैकेज दिया जा चुका है. चार साल बाद अब अलग से मांग करना ही गलत है. पहले तो ये समझना होगा कि पुलवामा में शहीद हुए जवान भारतीय सेना के जवान नहीं थे. वे सीआरपीएफ के जवान थे. यानी पैरामिलिट्री फोर्स के. राजस्थान सरकार का दावा है कि 2019 में इन जवानों की शहादत पर इनको भी कारगिल शहीदों की तरह ही पैकेज दिया गया था. राजस्थान में पुलवामा शहीदों को कारगिल पैकेज को बढ़ाकर दिया गया.

राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर फैसले लेकर पैकेज दिए
केंद्र सरकार ने कारगिल शहीदों के परिवार को पेट्रोल पंप या गैस एजेंसियों का आंवटन भी किया था. अर्धसैनिक बलों के जवानों को शहीद का दर्जा देने की मांग अभी भी लंबित है. लेकिन पुलवामा में आतंकी हमले के मामले में राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर फैसले लेकर पैकेज दिए. इन तीनों वीरांगनाओं के आंदोलन की अगुवाई कर रहे बीजेपी के राज्यसभा सासंद किरोड़ीलाल मीणा का कहना है कि मुख्यमंत्री गलत बयानी कर रहे हैं. मीणा का कहना है कि गुर्जर आंदोलन में मारे गए गुर्जर समाज के लोगों को शहीद मानते हुए उनके परिवार के दूसरे सदस्यों को नौकरी दी गई. उनमें देवर भी शामिल हैं. फिर इन वीरांगनाओं की मांग पूरी करने में क्या मुश्किल है. मीणा कहते हैं कि नौकरी इन शहीद परिवारों का हक है. वीरांगना अगर अपने नाबिलिग बेटे की जगह देवर को नौकरी चाहती है तो सरकार को देने में क्या परेशानी है.

मीणा का आरोप सरकार वादा करके पलटी
मीणा कहते हैं कि अगर गहलोत सरकार के इस तर्क को मान लिया जाए कि नौकरी सिर्फ शहीद के बच्चे को ही दी जा सकती है परिवार के किसी और सदस्य को नहीं. मीणा सवाल उठाते हैं कि तो फिर सरकार के मंत्रियों ने इन शहीदों की अंत्येष्टि के वक्त शहीदों के परिवारों से वादा क्यों किया? शहीद रोहिताश लांबा की पत्नी मंजू जाट और शहीद जीतराम की पत्नी सुंदरी कहती है कि पति की शहादत के वक्त के मिलने आए सरकार के मंत्रियों ने वादा किया था कि बच्चे छोटे हैं इसलिए नौकरी परिवार के किसी दूसरे सदस्य को दे दी जाएगी. दोनों ने कहा हम लिखकर देने को तैयार है कि नौकरी देवर को दे दी जाए. हम बच्चों के लिए आगे अलग से नौकरी की मांग नहीं करेंगे फिर सरकार को क्या दिक्कत है.

सांसद मीणा का तर्क फिर मंत्रियों को क्यों भेजा
किरोड़ीलाल मीणा कहते हैं कि अगर मुख्यमंत्री ये मानकर चल रहे थे कि परिवार के किसी और सदस्य को नौकरी नहीं देनी है तो फिर सचिन पायलट के घर के बाहर धरने पर बैठी इन तीन वारांगनाओं से मिलने के लिए होली के दूसरे दिन धुंलडी को दो मंत्रियों प्रताप सिंह खाचरियावास और शंकुतला रावत को भेजकर क्यों इनकी नौकरी की मांग मान ली. किरोड़ी लाल मीणा कहते हैं कि एक तरफ मुख्यमंत्री ने दोनो मंत्रियों को भेजा. दोनों मंत्रियों ने धरना स्थल पर इन तीन वीरांगनाओं से कहा कि सरकार परिवार के किसी और सदस्य को नौकरी देने की उनकी मांग मानने को तैयार है.

सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने लगाए ये आरोप
मीणा का आरोप है कि मंत्रियों के वार्ता के बाद वीरांगनाओं की मांगें मानने के पांच घंटे बाद मुख्यमंत्री पलट जाते हैं. अगर मांगें ही गलत थी तो फिर सरकार के मंत्रियों ने क्यों मानी? क्या उस वक्त ये नहीं कह सकते थे कि आपकी मांग गलत है नहीं मानेंगे. मीणा कहते हैं कि ये मांगें भी मंत्रियों ने अकेले में नहीं मिडिया के सामने मानी और बयान भी दिया कि सरकार वीरांगनाओं की सभी मांगों से सहमत है और पूरी करेगी.

वीरांगनाओं ने लगाया ये बड़ा आरोप
अब सवाल ये कि आखिर ऐसे क्या हुआ कि गहलोत ने पहले मंत्रियों को भेजकर वीरांगनाओं से उनकी मांगें पूरी करने का वादा कर दिया. जबकि वे इस मांग को ही गलत मान रहे थे. दरअसल वीरांगनाओं की एक और मांग थी जिससे गहलोत भड़क गए थे. वो मांग थी धरने के चौथे दिन मुख्यमंत्री से मिलने सीएमआर जाने की दौरान पुलिस का रोकना और बदसलूकी करना. वीरांगना मंजू जाट का आरोप था कि पुलिस ने न सिर्फ मुख्यमंत्री से मिलने जाने से रोका बल्कि घसीटा. बाल पकड़े, मारपीट और बदसलूकी की.

तीनों वीरांगनाओं ने रखी ये नई शर्त
तीनों वीरांगनाओं ने ये शर्त रख दी कि गहलोत सरकार पहले उनके साथ मुख्यमंत्री आवास के बाहर बदसलूकी करने वाले दो अफसरों की संस्पेंड करे. तब ही वे धरना खत्म करेंगी. बस इसी मांग पर बात बिगड़ गई. हालांकि सरकार की ओर से इस मांग पर कुछ नहीं कहा गया लेकिन उसी दिन चंद घंटे बाद मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर मागों को गलत बताकर इरादे साफ जाहिर कर दिए.

कार्रवाई की मांग के बाद गहलोत ने अपना स्टैंड ले लिया
सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा उसमें भी नौकरी समेत दूसरी मांगें पूरी करने के साथ वीरांगनाओं के साथ बदसलूकी की जांच और जिम्मेदार पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग की थी. इस पूरे मसले पर करीब पांच दिन तक गहलोत सरकार कंफ्यूज रही कि मांगों पर आखिर करना क्या है. तब तक वीरांगनाएं जयपुर में विधानसभा से लेकर सीएम हाउस और शहीद स्मारक बाहर धरना प्रदर्शन करती रही. लेकिन पांचवे दिन जैसे ही बदसूलकी की जांच और कार्रवाई पर अड़ी तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना स्टेंड ले लिया.

सरकार पहले इस मसले पर साफ स्टेंड लेने से बचती रही
पुलवामा में शहादत देने वाले शहीदों के लिए देशभर में अलग सम्मान और आदर की भावना है. इसलिए राजस्थान में गहलोत सरकार पहले इस मसले पर कोई भी साफ स्टेंड लेने से बचती रही. कभी लग रहा था कि सरकार मांगें मानने को तैयार है. कभी वह चुप रही. लेकिन सचिन पायलट के घर के बाहर पांचवें दिन धरने पर बैठने और पायलट के सीएम गहलोत को पत्र तथा वीरांगनाओं की बदसूलकी पर कार्रवाई की मांग के बाद सरकार का रुख बदल गया.

बीजेपी भी नौकरी के मसले पर अपनी राय साफ नहीं कर रही है
बीजेपी विधायक रामलाल कहते हैं कि जब मुख्यमंत्री को ये पता था कि देवर को नौकरी नहीं दी जा सकती तो मंत्रियों ने वादा क्यों किया. तब सरकार को किसने मजबूर किया था. बीजेपी अब इस मुद्दे को छोड़ने को तैयार नहीं. हालांकि बीजेपी भी नौकरी के मसले पर अपनी राय साफ नहीं कर रही है. लेकिन पुलिस की बदसलूकी और वीरांगनाओं के साथ सरकार के वादे को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को घेर लिया है.

Tags: Jaipur news, Pulwama attack, Rajasthan news, Rajasthan Politics

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