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Explainer: बाजार में बढ़तीं घटिया दवाएं, दिल्ली-चेन्नई बड़े सेंटर, हो सकती है मौत भी, क्या है सजा

हाइलाइट्स

घटिया दवाओं को तीन कैटेगरी में बांटा गया हैदिल्ली, चेन्नई, महाराष्ट्र समेत कई जगहें घटिया दवाओं के गढ़ बनेघटिया और मिलावटी दवाओं पर सजा अब भी मामूली है

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी डीजीसीआई ने जांच के बाद पाया कि देश में बिक रहीं 50 दवाइयां घटिया स्तर की बन रही हैं. लोग इसी को खा रहे हैं. इसमें पैरासिटामोल से लेकर बीपी, खांसी, मल्टीविटामिन और कैल्शियम की दवाएं शामिल हैं. इनका इस्तेमाल लाखों लोग करते हैं. देश में घटिया यानि सबस्टैंडर्ड दवाओं का संजाल फैलता जा रहा है. हम आपको बताएंगे कि इससे क्या नुकसान होता है और कौन सी जगहों इसकी गढ़ हैं. केवल यही नहीं गांव के बाजार में ऐसी दवाएं क्यों ज्यादा रहती हैं. इसके लिए कानून क्या है और क्या कारवाई हो सकती है.

भारत जेनेरिक दवाओं का एक प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता है. एक अनुमान है कि उत्पादन की जा रही दवाओं में 12-25% मिलावटी, घटिया या नकली हो सकती हैं. केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने 50 से अधिक सामान्य रूप से उपयोग की जाने वाली दवाओं की पहचान की है जो गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करती हैं.

कितनी कैटेगरी में बांटी जाती हैं घटिया दवाएंघटिया दवाओं को ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 के तहत वर्गीकृत किया जाता है, जो उन्हें गलत ब्रांड वाली, नकली या मिलावटी के रूप में परिभाषित करता है. CDSCO गंभीरता के आधार पर इन्हें तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करता है.श्रेणी A: नकली और मिलावटी दवाएंश्रेणी B: कंपाउंड टेस्ट में विफल होने वाली या 70% से कम सक्रिय सामग्री वाली अत्यधिक घटिया दवाएंश्रेणी C: लेबलिंग या फ़ॉर्मूलेशन में मामूली बदलाव जैसे छोटे-मोटे दोष.

क्वालिटी कंट्रोल की रिपोर्ट क्या कहती हैहाल ही में आई एक रिपोर्ट ने संकेत दिया कि छोटी कंपनियों द्वारा उत्पादित 15फीसदी से अधिक दवाएं गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में विफल रहीं जबकि इसका राष्ट्रीय औसत करीब 2% है. इनका एक बड़ा बाजार है. गांव के बाजार की दवाएं छोटे निर्माताओं की होती हैं. आमतौर पर उनकी क्वालिटी कमतर होती है.

कहां बिक रहीं सबसे ज्यादा घटिया दवाएं1. दिल्ली – एक पायलट अध्ययन से पता चला है कि दिल्ली में परीक्षण किए गए 12% दवा के नमूने घटिया थे.2. चेन्नई – चेन्नई में उसी पायलट अध्ययन के अनुसार घटिया दवाओं की घटना 5% पाई गई.3. महाराष्ट्र – महाराष्ट्र को नकली और घटिया दवाओं के सबसे ज्यादा बड़े क्षेत्र के रूप में पहचाना जाता है. पिछले वर्षों की रिपोर्टों ने उजागर किया है कि इस राज्य में खराब गुणवत्ता वाली दवाओं से संबंधित सबसे अधिक मामले थे, खासकर शहरी केंद्रों में.4. केरल -हाल के आकलन में केरल में भी घटिया दवाओं के काफी ज्यादा प्रचलन का पता लगा है. राज्य को ऐसी दवाओं के अग्रणी निर्माता के रूप में बताया जाने लगा.5. उत्तर प्रदेश – उत्तर प्रदेश को भी स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता के बारे में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें घटिया दवाओं का प्रचलन भी शामिल है.6. बिहार -बिहार एक और राज्य है जहाँ स्वास्थ्य व्यय का बोझ अधिक है, जिसमें कुल स्वास्थ्य सेवा लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जेब से खर्च करना होता है.

ग्रामीण क्षेत्रों में क्या स्थिति हैग्रामीण क्षेत्रों में घटिया दवाओं की अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. 2022 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि छोटे निर्माताओं द्वारा उत्पादित 15% से अधिक दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहीं, जबकि राष्ट्रीय औसत 2% है. छोटे दवा निर्माता गांव के बाजारों की ओऱ ज्यादा फोकस करते हैं. वहां दवाओं की क्वालिटी की ज्यादा निगरानी भी नहीं हो पाती.

घटिया दवाओं से मृत्यु तक – घटिया दवाएँ सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं, जिससे कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव होते हैं– कई बार ये जहर जैसी स्थिति पैदा कर देती हैं, जो शरीर के लिए बहुत खतरनाक हो जाता है– घटिया दवाओं में खतरनाक तत्वों की विषाक्त खुराक हो सकती है, जिससे सामूहिक विषाक्तता और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है. उदाहरण के लिए, चीन में बेची जाने वाली डायबिटीज की दवा ग्लिबेंक्लामाइड के घटिया संस्करण में मानक खुराक से छह गुना अधिक खुराक थी, जिससे दो लोगों की मौत हो गई. कई लोग बीमार हो गई– खराब गुणवत्ता वाली दवाएं गंभीर, क्रोनिक और क्रिटिकल बीमारियों के उपचार को प्रभावित करती हैं, जिससे बीमारी बढ़ती ही है– खराब क्वालिटी वाली दवाएं ड्रग रेजिस्टेंस की स्थिति पैदा करती हैं. और मृत्यु हो सकती है. इससे दवाओं का असर होना भी बंद हो जाता है.– घटिया दवाओं का प्रचलन स्वास्थ्य प्रणाली और उसके वैध स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों में लोगों के विश्वास को कम करता है.

क्या है इसके लिए सजाड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 भारत में घटिया दवाओं से संबंधित अपराधों के लिए सजा तय करता है.– नकली और मिलावटी दवाओं पर कम से कम 10 साल की कैद है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है.– मामूली सबस्टैंडर्ड दवाओं पर 1 साल की कैद की सजा, जो 2 साल तक बढ़ सकती है

क्या जन विश्वास विधेयक सजा को हल्का करता हैजन विश्वास विधेयक के तहत हाल ही में किए गए संशोधन में धारा 27(डी) के तहत मानक गुणवत्ता (एनएसक्यू) की न होने वाली दवाओं के लिए सजा को “संयोजित” करने की अनुमति दी गई है. इसका मतलब है कि निर्माता पहले अपराध के लिए कारावास का सामना करने के बजाय जुर्माना भर सकते हैं.सरकार का दावा है कि इससे कानून का पालन करने वाले व्यवसायों का उत्पीड़न कम होगा, जबकि आलोचकों का तर्क है कि ये घटिया दवाओं के मुद्दे को महत्वहीन बनाता है जो गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है.

Tags: Drugs Problem, Generic medicines

FIRST PUBLISHED : September 26, 2024, 22:41 IST

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