family-donated-money-for-education-rather-than-performing-mrityubhoj – हिंदी
बाड़मेर. बाड़मेर में सामाजिक जागरूकता का एक बेहतरीन उदाहरण देखने को मिला है. शिक्षा के साथ समाज में बढ़ती जागरूकता के कारण यह संभव हो पाया है. समय के साथ सोच बदलने से सामाजिक कुरूतियों से लोग दूरी बना रहे हैं. इसमें मृत्युभोज भी एक है. हिन्दू धर्म के मान्यता अनुसार किसी की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के लगभग 12 दिनों के बाद ब्राह्मण और अन्य व्यक्तियों को भोजन कराया जाता है. हालांकि अब जमाना बदल रहा है और सामाजिक कुरीतियों से लड़ते हुए मृत्युभोज के खिलाफ पश्चिम राजस्थान के सरहदी बाड़मेर जिले के बीसू खुर्द के मेघवाल समाज ने सराहनीय फैसला लिया है.
मृत्युभोज के बदले शिक्षा को बढ़ावा उपप्रधानाचार्य वेदाराम और उनके भाइयों ने माता के निधन के बाद मृत्युभोज करने की बजाय शिक्षा के क्षेत्र में 5 लाख 50 हजार रुपये का सहयोग दिया है. खिंटलियो की ढाणी बीसू खूर्द निवासी समधा देवी का 10 नवंबर को निधन होने पर उनके पुत्र वेदाराम खीमावत एवं अन्य परिवार के सदस्यों ने यह तय किया कि उनकी स्मृति को चिर स्थाई बनाया जाए. उन्होंने तेरहवीं पर भी किसी तरह का विशेष आयोजन नहीं किया. इस अवसर पर खिंटलिया परिवार ने दिवंगत समधा देवी की स्मृति में 1.5 लाख रुपये एमएस छात्रावास, 1.5 लाख रूपये शिव छात्रावास, 1 लाख आरएमपी की अध्ययन गोद योजना के तहत देने की घोषणा की है.
शिक्षा संस्थान को सहयोग राशि इसके अलावा एमएस 4, निंबाणियो की ढाणी विद्यालय के एक-एक विद्यार्थी, एरोज्ञा पुस्तकालय गुड़ामालानी, बालिका छात्रावास झालामंड जोधपुर, आरोग्य भवन जोधपुर, एमएस 4 छात्रावास गिड़ा एवं बालोतरा, शिव गणेश छात्रावास सांचौर, प्राथमिक विद्यालय खिंटलियो की ढाणी, फिफ्टी विलेजर्स, मूक बधिर साईं संस्थान बाड़मेर, पौधारोपण एवं जल संरक्षण कार्य बिसोन्दर नाडी, बुध एवं भीम साहित्य संस्थान को 10-10 हजार की नकद राशि सहित 5.50 लाख रूपए का सहयोग करने की घोषणा की है.
कुप्रथाओं को छोड़कर अपनाएं नवाचारवेदाराम खिंटलिया वर्तमान में राउमावि निंबाणियो की ढाणी में उप प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत है. जबकि इनके दो अन्य भाई नेनाराम किसान एवं हीराराम नर्सिंग अधिकारी है. इन्होंने दो वर्ष पूर्व अपने पिता डाऊराम के निधन पर भी उनकी स्मृति में 5 लाख रूपए की राशि शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के तौर पर प्रदान की थी. उनके इस प्रयास से क्षेत्र में पारंपरिक गतिविधियों में नवाचार होने की उम्मीद है. इससे समाज के अन्य लोगों में प्रथाओं के प्रति बदलाव लाने की उम्मीद है.
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FIRST PUBLISHED : November 28, 2024, 17:57 IST