Far From Benifit Of Reservation – आरक्षित होकर भी आरक्षण से दूर हैं दो जातियां

— ओबीसी में नई जाति का कोई प्रस्ताव नहीं

जयपुर। प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग में दो जातियां ऐसी हैं, जिनके साथ आरक्षण भी जिले के नाम से उनका भविष्य तय करता है। इन दोनों जातियों के एक—एक जिले में रहने वाले परिवार और एक अन्य जाति के जालोर में रहने वाले परिवारों को अन्य पिछड़ा वर्ग की सिफारिश के बावजूद आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। हालांकि प्रदेश में ओबीसी के लिए कोई नई जाति का प्रस्ताव लंबित नहीं है।
ओबीसी आरक्षण को लेकर संविधान संशोधन पर बहस के बीच प्रदेश में ओबीसी आरक्षण में नई जातियां जोड़ने के मुद्दे पर पड़ताल में यह स्थिति सामने आई। इस संशोधन को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य का अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग 2018 में हुए संविधान संशोधन के बाद प्रदेश सरकार को कई बार उसकी शक्तियों के बारे में बता चुका, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि ओबीसी में नई जातियां जोड़ने का राज्य का अधिकार कभी समाप्त ही नहीं हुआ। इस बहस के बीच यह भी सामने आया है कि प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के पास किसी नई जाति को ओबीसी में जोड़ने का प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
केन्द्र की सूची की मांग लंबित
पड़ताल में यह भी सामने आया कि विश्नोई तथा धौलपुर व भरतपुर में जाट जाति को केन्द्र की
ओबीसी की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव विचाराधीन है, लेकिन सर्वे के अभाव में अटका हुआ है।
केन्द्रीय सूची में संशोधन संसद से ही
उधर, अन्य पिछड़ा वर्ग के कानूनी प्रावधानों के अनुसार केन्द्रीय सूची में नई जाति जोड़ने का अंतिम अधिकार संसद के पास है। इसके लिए विधेयक का प्रारूप राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के आधार पर केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से तैयार किया जाता है।
क्या है तीन जातियों का मामला
नातरायत— पूर्व विधायक गणेश परमार ने बताया कि उनकी जाति ओबीसी में शामिल है, लेकिन उदयपुर व आसपास आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा। इस मुद्दे को लेकर वे ओबीसी आयोग तक आवाज उठा चुके।
खत्री छीपा—बाड़मेर निवासी बाबूलाल खत्री के अनुसार उनकी जाति बाड़मेर को छोड़कर प्रदेश में अन्य सभी जगह ओबीसी का लाभ ले रही है। बाड़मेर में लाभ नहीं मिलने का मुद्दा ओबीसी आयोग तक उठा चुके।
हबशी—राज्य ओबीसी आयोग के पूर्व सदस्य सचिव हरिकुमार गोदारा के अनुसार इस जाति के परिवार जालोर के एक मोहल्ले तक सीमित हैं।
‘ओबीसी में नई जाति जोड़ने का कोई मामला मेरे सामने लंबित नहीं है। विश्नोई व भरतपुर—धौलपुर में जाट जाति को ओबीसी में शामिल करने का प्रस्ताव पांच महीने पहले राष्ट्रीय ओबीसी कमीशन को भेजा गया है, जो पेंडिंग है।’— ओ पी बुनकर, निदेशक, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग