पहले मंत्रोच्चारण फिर एक साथ 55 लोगों ने धारण किए जनेऊ, जानें

हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण संस्कार है जनेऊ संस्कार, जिसे आमतौर पर 8 से 16 साल की उम्र के बीच संपन्न किया जाता है. हालांकि, कुछ लोग इसे शादी से पहले भी करवाते हैं. सिरोही जिले के रोहिड़ा गांव में सामाजिक समरसता का एक अनोखा नजारा देखने को मिला. सोमवार को श्रावणी पूर्णिमा के अवसर पर, आर्य समाज की प्रेरणा से, रोहिड़ा गांव के पीपलसा माताजी मंदिर परिसर में विभिन्न समाज के लगभग 55 लोगों ने मंत्रोच्चारण और यज्ञोपवित संस्कार के साथ जनेऊ धारण किया.
इस कार्यक्रम की विशेषता यह रही कि एक ही यज्ञवेदी के समक्ष, मेघवाल समाज के 25, ब्राह्मण समाज के 15, लोहार समाज के 5, सोनी समाज के 4, और अन्य समाज के 8 लोगों ने जनेऊ संस्कार के माध्यम से वैदिक धर्म के मार्ग पर चलने और स्वयं एवं विश्व के कल्याण की कामना करने की शपथ ली. सम्पूर्ण कार्यक्रम रोहिड़ा के गिरीश जोशी के आचार्यत्व और राजेश दवे के संयोजन में संचालित हुआ. कार्यक्रम का शुभारंभ माउंट आबू गुरुकुल के स्वामी ओमानंद महाराज के सानिध्य में हुआ, जबकि गुरुकुल से आए ब्रह्मचारियों ने भजन गाकर कार्यक्रम का समापन किया.
प्राचीन काल में जाति नहीं, वर्ण व्यवस्था थी: स्वामी ओमानंद
समारोह में स्वामी ओमानंद ने लोगों को संबोधित करते हुए प्रत्येक मंत्र और यज्ञवेदी में दी जाने वाली आहुति का विस्तार से वर्णन किया. उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में जाति नहीं, बल्कि वर्ण व्यवस्था थी. जाति व्यक्ति के जन्म से नहीं, बल्कि उसके आचार, विचार और कृत्यों से निर्धारित होती है. मानव जाति एक ही है, और समाज में सैकड़ों वर्ष पूर्व उत्पन्न हुए विकारों और भेदभाव की प्रवृत्तियों को समाप्त कर मानवता के कल्याण के लिए कार्य करना हमारा कर्तव्य है.
स्वामी ओमानंद महाराज ने सभी नवदीक्षित जनेऊधारी यजमानों को आत्मकल्याण के वैदिक व्रतों को धारण करवाया. इस अवसर पर, विश्व हिन्दू परिषद के जिलाध्यक्ष शंकर लाल माली, जिला मंत्री लक्ष्मण रावल, और आयोजन समिति के चुन्नीलाल मेघवाल, जितेंद्र मेघवाल, मोहन मेघवाल, किशोर मेघवाल, वीसाराम मेघवाल ने कार्यक्रम की व्यवस्थाओं को संभाला.
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FIRST PUBLISHED : August 20, 2024, 10:38 IST