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पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने राइजिंग भारत समिट में न्यायपालिका पर विचार साझा किए

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार को राइजिंग भारत समिट में भाग लेते हुए न्यायपालिका, कानून में सुधार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे कई अहम मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी. वहीं जब उनसे पूछा गया कि जजों को लगातार होने वाली आलोचनाओं से कैसे निपटना चाहिए, तो उन्होंने बेहद दिलचस्प अंदाज़ में कहा, ‘जजों को जिम जाना चाहिए और अपने कंधे मज़बूत करने चाहिए.’

पूर्व सीजेआई ने हंसते हुए मजाकिया लहजे में कहा, ‘जजों को जितनी आलोचना का सामना करना पड़ता है, उसके लिए बेहतर वर्कआउट और नियमित जिम जाना चाहिए, क्योंकि इसके लिए मजबूत कंधों की जरूरत होगी.

कानून का मतलब है समाज की सेवापूर्व सीजेआई ने इसके साथ ही कहा कि कानून का मकसद केवल अधिकार दिलाना नहीं, बल्कि व्यापक सामाजिक बदलाव लाना है. उन्होंने कहा, ‘कानून समाज सेवा की प्रतिबद्धता का प्रतीक है. इसका सार है- लोगों के अधिकारों को पहचानना और उन्हें सशक्त बनाना.’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले अब आम आदमी की भाषा मेंचंद्रचूड़ ने बताया कि उनके कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट में एक पहल की गई, जिसके तहत हर फैसले को सरल भाषा में छोटे पैराग्राफ में समझाया गया, ताकि आम नागरिक यह जान सके कि उस फैसले का उस पर क्या असर होगा. उन्होंने कहा, ‘कानून की भाषा बहुत जटिल होती है. हमें यह सोचकर लिखना चाहिए कि हम किसके लिए लिख रहे हैं… जनता के लिए.’

AI नहीं ले सकता इंसानों की जगहआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि तकनीक कानून में सहायक हो सकती है, लेकिन करुणा, गरिमा और मानवीय संवेदनाओं की जगह कोई मशीन नहीं ले सकती. उन्होंने कहा, ‘AI बहुत कुछ कर सकता है, लेकिन जो इंसान में संवेदना होती है, वह कोई मशीन नहीं दे सकती.’

जजों की संपत्ति सार्वजनिक होनी चाहिए या नहीं?संपत्ति की पारदर्शिता पर भी उन्होंने अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि 2009 से ही सुप्रीम कोर्ट का संकल्प है कि सभी जजों को अपनी संपत्ति घोषित करनी चाहिए. हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि इसे वेबसाइट पर डालना या नहीं, यह हर जज की व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर होना चाहिए.

उन्होंने सवाल उठाया, ‘क्या संपत्ति की जानकारी वेबसाइट पर डालना वास्तव में पारदर्शिता को बढ़ाता है?’ उन्होंने यह भी माना कि पारदर्शिता ज़रूरी है, लेकिन उसकी सीमाएं क्या हों, यह सोचना भी अहम है.

सरल कानून, मजबूत व्यवस्था की जरूरतउन्होंने यह भी कहा कि कानून की भाषा को आम आदमी की भाषा के करीब लाना जरूरी है. साथ ही उन्होंने सरकार से अपील की कि वह मुकदमों को लेकर अपनी नीति पर फिर से विचार करे, क्योंकि सरकार देश की सबसे बड़ी मुकदमेबाज़ (litigator) है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दी दो टूक रायचंद्रचूड़ ने कहा, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समझौता करने का विषय नहीं है.’ उन्होंने आपातकाल के समय का उदाहरण देते हुए कहा कि जब पूर्व सेंसरशिप लगाई जाती है, तब सबसे ज्यादा खतरा होता है. हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत में ऐसे कानून मौजूद हैं जो अभद्रता, नफरत फैलाने या मानहानि जैसे मामलों से निपट सकते हैं.

पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने इसके बाद मजाकिया लहजे में मुस्कुराते हुए कहा, ‘न्यायाधीशों के लिए बोलते हुए, उन्हें जो आलोचना झेलनी पड़ती है, उसके लिए उन्हें क्या करना चाहिए, न्यायाधीशों को बस जिम का अधिक उपयोग करने और बेहतर कसरत करने की आवश्यकता है, क्योंकि उनके कंधे मजबूत होने चाहिए.’

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