कोटा की गलियों से अंतरराष्ट्रीय मैदान तक, दिव्यांग क्रिकेटर नरेंद्र शर्मा की जिद ने सबको चौंका दिया!

देवेंद्र सेन/कोटा. कहते हैं कि अगर इंसान अपनी कमजोरी को ताकत बना ले, तो कोई भी बाधा उसे आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती. कोटा के बोरखेड़ा निवासी नरेंद्र शर्मा की कहानी इसी कहावत को साकार करती है. जन्मजात दिव्यांगता के बावजूद नरेंद्र ने न केवल अपने सपनों को जिंदा रखा, बल्कि उन्हें सच्चाई में बदलकर लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन गए.
नरेंद्र शर्मा का क्रिकेट के प्रति जुनून बचपन से ही था. गली क्रिकेट से शुरू हुआ उनका सफर बिल्कुल आसान नहीं रहा. समाज की सोच, शारीरिक सीमाएं और संसाधनों की कमी हर कदम पर उनके सामने चुनौती बनकर खड़ी रहीं. लेकिन नरेंद्र ने कभी अपनी दिव्यांगता को कमजोरी नहीं माना. उनका मानना था कि अगर हौसले मजबूत हों, तो हालात खुद रास्ता बना लेते हैं. यही सोच उन्हें रोज मैदान तक ले जाती रही.
मेहनत, आत्मविश्वास और शानदार प्रदर्शनदिव्यांग होने के बावजूद नरेंद्र सामान्य खिलाड़ियों की तरह क्रिकेट खेलते हैं. उनकी बल्लेबाजी में आत्मविश्वास, धैर्य और आक्रामकता का अनोखा संतुलन देखने को मिलता है. स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में उन्होंने बेहतरीन प्रदर्शन किया. अपनी दमदार खेल प्रतिभा के दम पर उन्होंने कई मुकाबलों में टीम को जीत दिलाई और मैन ऑफ द मैच व मैन ऑफ द टूर्नामेंट जैसे सम्मान हासिल किए.
डिसेबल्ड क्रिकेट टीम से बदली किस्मतइसी दौरान किसी ने उन्हें डिसेबल्ड क्रिकेट टीम के बारे में जानकारी दी. यह पल उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. कठिन चयन प्रक्रिया, कड़ा अभ्यास और लगातार संघर्ष के बाद नरेंद्र ने भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम में जगह बनाई. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अपनी कड़ी मेहनत, अनुशासन और नेतृत्व क्षमता के बल पर आज वे इंडियन डिसेबल्ड क्रिकेट टीम के कप्तान हैं.
अंतरराष्ट्रीय मैदान पर भारत का प्रतिनिधित्वनरेंद्र शर्मा भारत की ओर से बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसी टीमों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मुकाबले खेल चुके हैं. इन मैचों में उन्होंने न सिर्फ व्यक्तिगत प्रदर्शन से, बल्कि कप्तान के रूप में भी टीम को मजबूती दी. मैदान पर उनका आत्मविश्वास, रणनीति और टीम के प्रति समर्पण युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
सपनों को सच करने की जिदकोटा के जेके पैवेलियन अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में नेट प्रैक्टिस करते हुए नरेंद्र अक्सर अपने सफर को याद करते हैं. गली क्रिकेट से लेकर टीम इंडिया की जर्सी पहनने तक का सफर उनके लिए किसी सपने से कम नहीं रहा. उनका कहना है कि सपने वही पूरे होते हैं, जिनके लिए इंसान हार मानने से इनकार कर देता है.
हौसले हों तो दिव्यांगता भी हार जाती हैनरेंद्र शर्मा की कहानी सिर्फ क्रिकेट की नहीं, बल्कि उस जज्बे की कहानी है जो इंसान को हालात से बड़ा बना देता है. उनकी सफलता यह साबित करती है कि दिव्यांगता कभी भी सपनों के आड़े नहीं आ सकती. अगर हौसले दिव्य हों, तो मंजिल खुद कदम चूमती है.



