Gangaur Festival : राजस्थान में यहां सार्वजनिक रूप से नहीं मनाया जाता गणगौर का त्योहार, जानें वजह
बूंदी. त्योहार से रची बसी भारतीय संस्कृति में सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले राजस्थान के सांस्कृतिक और वासन्तिक पर्व गणगौर का बड़ा महत्व है लेकिन बूंदी में यह त्योहार सार्वजनिक रूप से नहीं मनाया जाता. इसके पीछे की वजह भी हैरान करने वाली है. दरअसल, बूंदी रियासत में करीब 300 साल पूर्व गणगौर समारोह के दौरान हुए हादसे के बाद यह पूजा अब सिर्फ घरों तक सीमित रह गई.
अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसी छोटी काशी बूंदी में रियासतकाल में गणगौर का पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता था. 17वीं शताब्दी में महाराज बुद्धसिंह के समय जैतसागर झील में आयोजित किए गए गणगौर समारोह के दौरान एक मदमस्त हाथी द्वारा गणगौर की सवारी वाली नाव को उलट दिये जाने की घटना से महाराज बुद्ध सिंह के भाई जोधसिंह सहित राजपरिवार के अन्य सदस्यों की मौत हो गई थी. इसके बाद बूंदी रियासत में गणगौर पर्व सीमित दायरे में आया. सिर्फ घरों में पूजा करने तक सिमट गया. अब कुंआरी कन्याएं और सुहागिन महिलाएं हर वर्ष अपने अपने घरों में मिट्टी के ईसर गणगौर बनाकर उनकी 16 दिनों तक पूजाकर रात्रि को उन्हें तालाब में समाहित कर देती हैं.
बूंदी के गणगौर के विषय में दूसरी क्विदंती यह भी है कि 13वीं सदी में बूंदी के राव राजा नापा को परास्त कर शेरगढ़ के महाराज हरराज सिंह ने उक्त गणगौर को छीन लिया था. कुछ वर्षो बाद नापा के पुत्र हम्माजी द्वारा शेरगढ़ के महाराज हरराजसिंह को युद्ध में परास्त कर गणगौर को वापस लाने के साथ-साथ उनकी रानी को भी छीनकर ले आया गया था.
इस प्रकार शिव पार्वती रूपी ईसर-गणगौर की पूजाकर खुश करने के उद्धेश्य को लेकर मनाए जाने वाले गणगौर समारोह की आट पड़ जाने से यह घरों तक सिमित हो गया है. बूंदी में बंद हुए गणगौर की सावर्जनिक रूप से सवारी निकालने के समारोह को फिर से शुरू किए जाने की पहल कब होगी और फिर से गणगौर की सवारी कब निकलेगी, कहना अभी मुश्किल है.
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FIRST PUBLISHED : April 10, 2024, 23:56 IST