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gautam gambhir will change plan गंभीर का प्लान बदलने के लिए कौन पहुंचा गुवाहाटी?

नई दिल्ली. बार-बार जब कोई चीज़ होती है, तो वह एक ज़ख्म बन जाती है और उसे मिटाने में उतनी ही ज़्यादा मेहनत लगती है और ये हर खेल में होता है.  याद कीजिए जब दक्षिण अफ्रीका लगातार  फाइनल हारने के बाद बेहद मायूस नजर आता था और उनको अपने उपर ही संशय होने लगा था.ऐसा नहीं था कि टीम  खराब थी और फाइनल तक पहुँचना ही बहुत बड़ी उपलब्धि थी  लेकिन फिर भी, वह लाइन पार नहीं कर पा रहे थेऔर आखिरकार जब उन्होंने जीत हासिल की, तो रास्ते अपने-आप खुलते चले गए. भारतीय पुरुष टीम के लिए भी घरेलू टर्निंग ट्रैक्स पर अब यह एक मानसिक समस्या बन गई है.

पिछले साल की न्यूज़ीलैंड सीरीज़ के ज़ख्म अभी भरे भी नहीं थे कि दक्षिण अफ्रीका ने नए घाव दे दिए. साफ है कि यह मानसिक अवरोध है  संभावित नतीजे की चिंता, विफलता का डर यही डर भारत को गुवाहाटी में हर हाल में हराना होगा, तभी उनका वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप  अभियान पटरी पर लौटेगा. यह आसान नहीं है. यह कौशल या किसी तकनीकी खामी की बात नहीं, जिसे नेट्स में सुधारा जा सके. यह गहराई में पैठा ज़ख्म है, और उसे मिटाने में भारतीय टीम-प्रबंधन को बहुत मेहनत करनी होगी.

टीम को सदमें से निकालो कोच 

टीम के खिलाड़ियों की सोच बदलने के लिए  गौतम गंभीर को नेतृत्व करना होगा.  व्हाइट-बॉल कोच के रूप में उनका रिकॉर्ड शानदार है चैंपियंस ट्रॉफी जीतना, एशिया कप जीतना, ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में टी20 सीरीज़ में हराना, और दक्षिण अफ्रीका तथा इंग्लैंड के ख़िलाफ़ जीतें.  उस प्रारूप में उनका रिकॉर्ड बेहतरीन है.लेकिन रेड-बॉल क्रिकेट में तस्वीर वैसी नहीं है: न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया से हार, इंग्लैंड के खिलाफ़ ड्रॉ, और सिर्फ़ वेस्ट इंडीज़ तथा बांग्लादेश के विरुद्ध जीत. अब गुवाहाटी में 0–1 से पीछे खड़ी टीम के साथ, खुद गौतम भी मानेंगे कि यह कोई गर्व करने जैसा रिकॉर्ड नहीं है और इसकी वजह वही मानसिक घाव हैं जिनकी बात की जा रही है उनके खिलाड़ी दबे हुए हैं, डरे हुए हैं और यही बात उन्हें सुलझानी है.

तेवर और तरीका बदलना जरूरी 

गौतम  चाहे लोग उनके तरीक़ों से सहमत हों या नहीं हमेशा अपने विश्वासों के साथ चलते हैं  वे अपनी प्रवृत्ति पर भरोसा करते हैं और मानते हैं कि अंततः वही काम आएगी.  वे हमेशा ऐसे ही रहे हैं लेकिन सवाल यह है: क्या उनके खिलाड़ी भी ऐसा ही महसूस करते हैं, क्या उनमें वह मानसिक मजबूती है कि हार से लौटकर खड़े हो सकें, क्या उनमें यह आत्मविश्वास है कि वे घर पर, अपनी पसंद की पिचों पर, जीतना साबित कर सकें, या फिर बेहतर होगा कि वे वैसी अच्छी पिचों पर खेलें जिन पर पहले बेहतर परिणाम मिले हैं.

गुवाहाटी में गंभीर का टेस्ट 

गौतम की पहचान हमेशा उनकी लड़ाई की भावना से जुड़ी रही है. वे कई बार असफल हुए, लेकिन चुनौती से कभी पीछे नहीं हटे वे हर हाल में डटे रहते थे लेकिन इस भारतीय टीम से हम घरेलू परिस्थितियों में वैसी लड़ाई नहीं देख रहे हैं घर में हम मैनचेस्टर जैसी जंग नहीं देख पा रहे और यह समझ से परे है. ईडन गार्डन्स में बस एक बल्लेबाज़ को आगे आकर ज़िम्मेदारी दिखानी थी.  मंच तैयार था, एक नायक की ज़रूरत थी पर कोई आगे नहीं आया, और टीम को चौंकाने वाली हार मिली. क्या गौतम टीम में वह जज़्बा भर पाएँगे क्या वे अपनी टीम को गुवाहाटी में मानसिक रूप से इतना मज़बूत बना पाएँगे  यही अंततः सीरीज़ का नतीजा तय करने वाला है.

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