तेजस्वी यादव महागठबंधन के सीएम फेस, पर गहलोत के ‘बॉडी लैंग्वेज’ ने उगल दिया ‘एक जैसा’ का सच !

पटना. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन ने आखिरकार अपने ‘चेहरे’ का ऐलान कर दिया है. पटना के होटल मौर्य में हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस, वाम दलों और वीआईपी सहित सभी सहयोगी दलों ने मिलकर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने न केवल तेजस्वी को महागठबंधन का चेहरा बताया, बल्कि दो उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा भी की- जिसमें पहला नाम मुकेश सहनी का तय हुआ. दूसरे का नाम चुनाव परिणाम के बाद तय करने की बात कही गई है. हालांकि, जब यह घोषणा हो रही थी तो महागठबंधन में भरपूर एकता की तस्वीर पेश की कोशिश की गई, लेकिन इसके साथ ही उतने ही नई दरारों के संकेत भी छोड़ दिए.
एकजुटता के मंच पर चेहरे करे कुछ और संकेत!
प्रेस कॉन्फ्रेंस का दृश्य देखने वालों ने एक बात तुरंत महसूस की कि जब तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा हो रही थी तब उनके चेहरे पर आत्मविश्वास और सहजता थी, मगर अशोक गहलोत के चेहरे पर हल्की निराशा और असहजता झलक रही थी. उन्होंने शब्दों में सौहार्द दिखाने की पूरी कोशिश की, लेकिन भावनाओं ने बयान कर दिया कि कांग्रेस अब भी बिहार में अपनी भूमिका और हिस्सेदारी को लेकर पूरी तरह संतुष्ट नहीं है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि गहलोत की बॉडी लैंग्वेज ने इस बात की पुष्टि की कि फैसला भले सामूहिक कहा गया हो, लेकिन पहल राजद खेमे से ही आई है.30 मिनट का बंद कमरा और मंथन का मतलब
प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले करीब आधे घंटे तक तेजस्वी यादव और अशोक गहलोत के बीच बंद कमरे में बैठक चली. सूत्रों के मुताबिक, इस मीटिंग में कांग्रेस के हिस्से की सीटों और साझा अभियान रणनीति पर लंबी चर्चा हुई. गहलोत चाहते थे कि ऐलान कांग्रेस के साथ संयुक्त बयान के रूप में किया जाए, मगर राजद ने नेतृत्व की घोषणा का पल अपने हाथ में रखा. यही वजह रही कि ऐलान होते वक्त कांग्रेस का उत्साह सीमित दिखाई दिया और वाम दलों के नेताओं की ओर से भी कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं आई.
एक चेहरा तय, लेकिन क्या भ्रम वाकई खत्म?
महागठबंधन के नेताओं का दावा है कि अब कोई भ्रम बाकी नहीं रहा, लेकिन सवाल यह कि क्या जमीनी सच्चाई इससे अलग है? कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि तेजस्वी यादव को पहले से ही फ्री हैंड मिल चुका है और कांग्रेस की भूमिका सिर्फ सहयोगी दल तक सीमित हो गई है. वहीं, वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम पद का वादा जरूर मिला है, लेकिन सीट बंटवारे में उनका प्रभाव अब भी सीमित दिखता है. ऐसे में सवाल यही है- क्या यह ऐलान वाकई एकता की निशानी है या अस्थायी समझौते की शुरुआत?
युवा चेहरा बनाम अनुभव की राजनीति
अशोक गहलोत ने तेजस्वी यादव को युवा और भविष्य का नेता बताते हुए कहा कि जिनका लंबा फ्यूचर होता है, जनता उनका साथ देती है. लेकिन, राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह बयान समर्थन से ज्यादा तटस्थता का संकेत था. कांग्रेस शायद अभी भी बिहार में अपने पुराने जनाधार को फिर से पाने की कोशिश में है और इस संशय में तब तक जरही जब तक तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा हुई. दरअसल, कांग्रेस इस दुविधा में दिखी कि तेजस्वी का चेहरा उस दिशा में मददगार हो भी सकता है, या नहीं भी. इसलिए यह ऐलान सिर्फ एक नेतृत्व नहीं, बल्कि महागठबंधन की सियासी मजबूरी भी माना जा रहा है.
‘नेतृत्व बनाम हिस्सेदारी’ के विवाद में महागठबंधन!
तेजस्वी यादव को महागठबंधन का सीएम फेस घोषित करने के साथ बिहार की चुनावी जंग का स्वरूप अब स्पष्ट हो गया है. लेकिन, इस ऐलान ने जितने सवाल खत्म किए, उतने ही नए सवाल खड़े कर दिए. क्या कांग्रेस तेजस्वी की अगुवाई में पूरी तरह सहज होगी? क्या वीआईपी और वामदलों को बराबर वजन के हिसाब से देखा जा रहा है? या फिर यह गठबंधन भी पिछली बार की तरह ‘नेतृत्व बनाम हिस्सेदारी’ के विवाद में उलझ जाएगा? बिहार की सियासत में यह तस्वीर भले एकता की लगे, लेकिन चेहरों के हावभाव बता रहे हैं- महागठबंधन में अब भी सबकुछ ‘एक जैसा’ नहीं है.



