General Knowledge: राजस्थान में भगवान श्रीराम ने गुरु वशिष्ठ से कहां ली शिक्षा? सरस्वती नदी से क्या है रिश्ता

Last Updated:May 19, 2025, 15:03 IST
General Knowledge: राजस्थान कई प्राचीन स्थलों की भूमि है. इस धरती का संबंध गुरु वशिष्ठ से भी रहा है. मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने गुरु वशिष्ठ से शिक्षा राजस्थान के एक मंदिर में ली थी. आइये जानते हैं इस मंदिर …और पढ़ेंX
 
 माउंट आबू में ही गुरु वशिष्ठ से भगवान श्रीराम ने शिक्षा ली थी.
हाइलाइट्स
गोमुख मंदिर में 750 सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं.मंदिर में 800 साल पुराना स्वर्ण चम्पा का पेड़ है.गुरु वशिष्ठ ने यहां चार राजपूत कुलों का यज्ञ किया था.
सिरोही. राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू को इसके प्राचीन धार्मिक स्थलों के लिए भी जाना जाता है. यहां एक प्राचीन मंदिर है, जिसे लेकर मान्यता है कि भगवान राम ने अपने गुरु वशिष्ठ से यहां शिक्षा ग्रहण की थी. यह मंदिर माउंट आबू शहर से करीब 2 किलोमीटर दूर स्थित गोमुख वशिष्ठ आश्रम है.
यह स्थान गुरु महर्षि वशिष्ठ की तपोस्थली मानी जाती है. गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल वाले स्थान पर वर्तमान में गोमुख मंदिर स्थित है. इस प्राचीन मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 750 सीढ़ियां नीचे उतरनी पड़ती हैं. यहां कोई रोपवे सुविधा नहीं है, जिससे मंदिर तक पहुंचना हर किसी के लिए आसान नहीं है. मंदिर का नाम इसके आगे बने एक कुंड पर स्थित संगमरमर की गाय के मुख से पड़ा है, जिससे साल के 365 दिन निरंतर जलधारा बहती रहती है. माना जाता है कि यह स्याना सरस्वती नदी का उद्गम स्थान है.
यहां है 800 साल पुराना स्वर्ण चम्पा का पेड़मंदिर परिसर में करीब 800 साल पुराना एक विशाल स्वर्ण चम्पा का पेड़ है, जो भक्तों के आस्था का केंद्र है. इस पेड़ पर गर्मियों में सोने जैसे स्वर्ण फूल खिलते हैं. मंदिर के बाहर सैकड़ों साल पुरानी कई प्राचीन प्रतिमाएं संरक्षित की हुई हैं. कई साल पहले मंदिर के बाहर एक संग्रहालय था, जिसमें ये प्राचीन प्रतिमाएं रखी हुई थीं. साल 1973 में आए भूस्खलन में कई मूर्तियां जमीन में दब गईं, तो कुछ प्रतिमाएं खंडित हो गई थीं.
नंदिनी गाय की भी है प्राचीन मूर्तियांमंदिर के भक्त राकेश व्यास ने बताया कि यह स्थान भगवान राम और लक्ष्मण के गुरु वशिष्ठ की तपोस्थली थी. मंदिर में नंदिनी गाय, संत वशिष्ठ, भगवान राम और भगवान कृष्ण की प्राचीन मूर्तियां हैं. वर्तमान में निम्बार्क सम्प्रदाय के अंतर्गत मंदिर का संचालन हो रहा है. मान्यता है कि एक बार गुरु वशिष्ठ की कामधेनु गाय नंदिनी यहां बनी एक गहरी खाई में गिर गई थी.
उस समय गुरु वशिष्ठ ने इस ब्रह्म खाई को भरने के लिए मां सरस्वती का आह्वान किया था, जिसके बाद सरस्वती नदी प्रवाहित हुई. गोमुख से निकले पानी को गंगा के समान पवित्र माना जाता है. वर्तमान में महंत रामशरणदास राधे बाबा के सानिध्य में मंदिर का संचालन हो रहा है.
4 राजपूत कुल बनाने के लिए गुरु वशिष्ठ ने किया था यज्ञमंदिर परिसर में बने अग्नि कुंड को लेकर भी एक मान्यता प्रसिद्ध है. इसके अनुसार, गुरु वशिष्ठ ने चार राजपूत कुलों को बनाने के लिए यहां पवित्र अग्नि यज्ञ किया था, जिससे परमार, चौहान, सोलंकी और परिहार वंश की उत्पत्ति हुई थी. मंदिर में नंदिनी गाय की भी प्रतिमा बनी हुई है, जिसे लेकर मान्यता है कि कलयुग में नंदिनी गाय के समक्ष मनोकामना करने पर वह पूरी होती है.
निखिल वर्मा
एक दशक से डिजिटल जर्नलिज्म में सक्रिय. दिसंबर 2020 से Hindi के साथ सफर शुरू. न्यूज18 हिन्दी से पहले लोकमत, हिन्दुस्तान, राजस्थान पत्रिका, इंडिया न्यूज की वेबसाइट में रिपोर्टिंग, इलेक्शन, खेल और विभिन्न डे…और पढ़ें
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भगवान श्रीराम ने गुरु वशिष्ठ से कहां ली शिक्षा? सरस्वती नदी से क्या है रिश्ता
 


