Rajasthan

Ghass Bheru FBhai Dooj 2025: जहाँ भगवान को चढ़ती है शराब, और बैल खींचते हैं सवारी, बूंदी की देई की अनोखी परंपराestival Boondi

भवानी सिंह हाड़ा.

Bundi: राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहरों और लोक आस्थाओं में कई अनोखी परंपराएं आज भी देखने को मिलती हैं. बूंदी जिले के देई कस्बे में भाईदूज के दिन निकाली जाने वाली घास भैरू की सवारी ऐसी ही एक प्राचीन परंपरा है, जो आज भी पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाई जाती है. यह परंपरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि ग्रामीण संस्कृति, सामुदायिक एकता और अटूट लोकविश्वास का प्रतीक है.

पांच पटेलों की पूजा से होती है सवारी की शुरुआतभाईदूज के दिन सुबह देई कस्बे के पांच पटेल परिवार एकत्र होते हैं और घास भैरू की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. पूजा-पाठ के साथ ही सवारी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. इसके बाद सजी-धजी बैलों की जोड़ियों से एक विशेष रथ तैयार किया जाता है, जिस पर घास भैरू की प्रतिमा स्थापित की जाती है. मंत्रोच्चारण और पारंपरिक लोकगीतों के बीच यह सवारी शुरू होती है और पूरे कस्बे के मुख्य मार्गों से होकर गुजरती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

भगवान को चढ़ाई जाती है शराब का प्रसादइस परंपरा की सबसे अनोखी और विस्मयकारी बात यह है कि घास भैरू देवता को शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. स्थानीय लोग मानते हैं कि यह अनोखा प्रसाद घास भैरू को अत्यधिक प्रसन्न करता है और गांव की दुष्ट शक्तियों तथा संकटों से रक्षा करता है. पूजा और सवारी के दौरान श्रद्धालु उसी शराब को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं और भक्ति भाव में झूम उठते हैं. यह रस्म आस्था और विशिष्ट लोक-रीति का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है.

पटाखों से सजती है सवारी, फिर भी नहीं होता कोई नुकसानघास भैरू की सवारी के दौरान ग्रामीण उल्लास में डूबकर एक-दूसरे पर पटाखे फेंकते हैं. हालांकि, इस दौरान किसी को कोई चोट नहीं लगती. स्थानीय लोग इसे भैरू देवता की कृपा मानते हैं और कहते हैं कि देवता ही उन्हें हर खतरे से बचाते हैं. यह दृश्य उत्सव और आस्था का अनोखा संगम बन जाता है, जहाँ हंसी, संगीत और भक्ति का माहौल चारों ओर छा जाता है, जो दिवाली के बाद की थकान को दूर कर देता है.

बैलों की जोड़ियां बनती हैं आकर्षण का केंद्रघास भैरू की सवारी बैलों की स्वस्थ और सुसज्जित जोड़ियों से खींची जाती है, जो ग्रामीण संस्कृति और परिश्रम का प्रतीक हैं. रथ पर फूल-मालाओं से सजी मूर्ति और रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे बैल इस यात्रा को एक जीवंत त्योहार जैसा बना देते हैं. बैलों का सम्मान और उनकी भागीदारी इस परंपरा को प्रकृति के साथ जुड़ाव भी प्रदान करती है.

लोकमान्यता और धार्मिक आस्थास्थानीय मान्यता के अनुसार, घास भैरू की पूजा करने से गांव में सुख-शांति, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है. ग्रामीणों का अटूट विश्वास है कि घास भैरू उनके रक्षक देवता हैं, जो हर संकट से रक्षा करते हैं. इसीलिए, यह परंपरा आधुनिकता के इस युग में भी पूरे जोश और निष्ठा के साथ निभाई जा रही है.

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj