Ghat Wale Hanuman Ji famous as the Kul Devta of jaipur 500 years old history Jaipur Royal Family

जयपुर. राजस्थान की राजधानी जयपुर अपने प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है. जिसमें जयपुर में सबसे प्राचीन हनुमान जी के मंदिर है, जहां भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ती है. 500 साल पुराने हनुमान मंदिर को जयपुर के कुल देवता के रूप में जाना जाता है. साथ ही यह मंदिर घाट के बालाजी के नाम से प्रसिद्ध हैं. आपको बता दें कि यह मंदिर जयपुर की अरावली पहाड़ियों के बीच गलता तीर्थ के पास बना है. यह मंदिर जयपुर बसावट से भी पहले का है, जहां लोग मंगलवार और शनिवार को दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं.
यह मंदिर जितना पुराना है, उतना ही चमत्कारी भी है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां आकर मांगी गई मुराद पूरी होती है और किसी काम को शुरू करने से पहले घाट वाले बालाजी का दर्शन मात्र से काम में सफलता मिलती है. इस मंदिर के बारे में यहां के पुजारी और स्थानीय लोग बताते हैं कि बालाजी स्वयं प्रकट हुए थे और तब जयपुर के राज परिवार ने नगर बसाकर पहले बजरंगबली को स्थापित किया था. इस मंदिर में हनुमान जी की दक्षिणमुखी प्रतिमा विराजमान है.
अनोखी है इस मंदिर की मान्यता और परंपरा
जयपुर स्थित हनुमानजी के हर मंदिर की एक अनोखी मान्यता है. ऐसे ही इस मंदिर की भी अनोखी मान्यताएं और परम्परा है. इस मंदिर को लेकर यहां के पुजारी बताते हैं कि बालाजी की प्रतिमा को जीवन के सभी दुखों का नाश करने वाला मानी जाती है. यहां दर्शन मात्र से भक्तों को कठिन से कठिन कार्य में भी सफलता मिलती है. साथ ही इस मंदिर में छोटे बच्चों को आशीर्वाद दिलाने और बच्चे के जन्म से जुड़े संस्कार जैसे मुंडन आदि करने की अनोखी परम्परा है, जो वर्षों से चली आ रही है. इतिहासकारों के अनुसार जयपुर को बसाने वाले राजा जयसिंह का भी मुंडन संस्कार इसी मंदिर में हुआ था. इसके बाद से यहां वर्षों से यह परम्परा चलती आ रही है.
घाट के बालाजी के नाम से प्रसिद्ध है मंदिर
आपको बता दें घाट के बालाजी ने से यह मंदिर प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां पुराने समय में मंदिर के आस-पास कई तालाब और पानी के कई घाट हुआ करते थे. जिसके कारण यहां बजरंगबली को घाट के बालाजी के नाम से पुकारा जाता है. आपको बता दें यह मंदिर प्राचीन नागर शैली में बनी हवेली की तरह है. मंदिर का मुख्य द्वार झरोखा युक्त शैली से बना है. यह मंदिर पहाड़ी की तलहटी पर बना होने के कारण मंदिर परिसर दो भागों में बना है. साथ ही मंदिर के चौक परिसर में चारों कोनों में छतरियां भी बनी हुई है. वहीं मंदिर में मेहराब, झरोखे, कंगूरे, गोखे सभी हिन्दू नागर शिल्प शैली में बने हुए हैं.
सुबह सात बजे मंदिर में होती है पहली आरती
आपको बता दें कि घाट के बालाजी मंदिर में पूजा का भी अलग-अलग समय होता है, जिसमें भक्त दर्शन करते हैं. मंदिर में सुबह 5 बजे बालाजी को स्नान कराया जाता है. इसके बाद पूरे श्रृंगार कर 7 बजे मंदिर में पहली आरती होती है. लेकिन, इस मंदिर में दोपहर के दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है. मंदिर से जुड़ी ऐसी मान्यता है कि देापहर 12 बजे से 3 बजे तक इस मंदिर में दर्शन सबसे भव्य होते हैं. साथ ही इस मंदिर में एक अनोखी परम्परा है कि अखंड ज्योत के अलावा यहां धूप बत्ती और अगरबत्ती भी हमेशा जलती रहती है.
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FIRST PUBLISHED : November 6, 2024, 16:20 IST
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