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जौ किसानों के लिए खुशखबरी! अधिक पैदावार देती ये किस्में, जान लें रोगों से बचाव के आसान तरीके

Last Updated:November 26, 2025, 10:09 IST

जौ खेती टिप्स: जौ की बुवाई का समय इस वक्त बिल्कुल अनुकूल है, क्योंकि मिट्टी में नमी और मौसम की हल्की ठंडक अंकुरण के लिए आदर्श मानी जाती है. खेत की भुरभुरी तैयारी, उन्नत किस्मों जैसे RD-2715, RD-2660, RD-2794 का चयन पैदावार बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. बीजों को फिप्रोनिल, मैनकोजेब या थीरम से उपचारित करने से रोग और कीटों से बचाव मिलता है. प्रति हेक्टेयर 12-15 किलो बीज की सही दर और नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश का संतुलित उपयोग फसल को अधिक उत्पादन देने में सहायक है.Agriculture News

पारम्परिक फसलों में जौ एक प्रमुख फसल है, अभी इसकी बुवाई के लिए समय बिल्कुल अनुकूल है, क्योंकि सभी मौसम में हल्की ठंडक और मिट्टी में नमी बनी हुई है, जो अच्छे अंकुरण के लिए जरूरी है. एग्रीकल्चर एक्सपर्ट दिनेश जाखड़ ने बताया कि जौ की खेत की तैयारी करते समय मिट्टी को भुरभुरी और समतल बनाना बहुत जरूरी होता है. इससे पौधों की जड़ें आसानी से फैल जाती हैं. इसके अलावा समय पर बुवाई करने से पौधे मजबूत होते हैं और मौसम के बदलाव का असर भी कम पड़ता है. इससे उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है.

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इसके अलावा जौ की खेती के दौरान इसकी किस्मों का सही चयन भी बहुत जरूरी होता है. उन्नत किस्म ही इसकी खेती में उत्पादन अधिक बढ़ाती है कमाई का आधार होती है. एग्रीकल्चर एक्सपर्ट के मुताबिक जौ की प्रमुख उन्नत किस्में आरडी-2715, आरडी-2660, आरडी-2794, आरडी-2624, आरडी-2592, आरडी-2786, आरडी-2849, आरडी-2552 और आरडी-2907 है. इस किस्म के बीजों में उच्च उपज क्षमता, रोग प्रतिरोधकता और बेहतर दाना गुणवत्ता होती है. ऐसे में किसान अपने क्षेत्र की जलवायु, भूमि प्रकार और उपलब्ध सिंचाई के अनुसार इनमें से अच्छी किस्म का चयन कर सकते हैं. सही किस्म चुनने से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में स्पष्ट वृद्धि होती है.

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इसके अलावा, बीज उपचार जौ की खेती का सबसे जरूरी और प्रारंभिक कदम है, क्योंकि बिना उपचारित बीज फफूंद और दीमक जैसे कीटों से जल्दी प्रभावित हो जाते हैं. ऐसे में दीमक नियंत्रण के लिए फिप्रोनिल 5 एससी 6 मिली प्रति किलो बीज की दर से उपचार करना बहुत लाभदायक माना जाता है. ढीले स्मट जैसे खतरनाक रोग से बचाव के लिए मैनकोजेब 2.5 ग्राम या थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज का उपयोग अनिवार्य होना चाहिए. इससे बीज सुरक्षित रहते हैं और रोगमुक्त अंकुर निकलते हैं, जिससे फसल का स्वास्थ्य लंबे समय तक अच्छा रहता है.

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यदि किसान जौ के साथ जीरे की खेती भी करते हैं, या दोनों फसलों के लिए खेत की तैयारी समान रहती है, तो जीरे के बीजों का उपचार भी खासतौर पर जरूरी हो जाता है. जीरे के बीज को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम या ट्राइकोडरमा विरिडी 4 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से अच्छी तरह उपचारित करने से मिट्टी और बीज जनित रोगों का प्रकोप काफी हद तक कम हो जाता है. इससे अंकुरण प्रतिशत बढ़ता है और फसल शुरुआत से ही मजबूत बनती है, जो आगे चलकर उत्पादन में बढ़ोतरी करती है.

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एग्रीकल्चर एक्सपर्ट दिनेश जाखड़ ने बताया कि जौ के लिए बीज दर का सही प्रबंधन आवश्यक है, क्योंकि अधिक या कम बीज डालने से फसल पर असर पड़ता है. ऐसे में प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलो बीज की मात्रा सही मानी जाती है, जिससे पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है. उन्होंने बताया कि यदि बीज अधिक डाल दिया जाए तो पौधों में ग्रोथ पर प्रभाव पड़ेगा. इसके अलावा कम बीज से खेत पूरी तरह नहीं भरता. इसलिए तय की गई मात्रा का पालन करना फसल के उत्पादन दोनों के लिए लाभकारी रहता है.

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एग्रीकल्चर एक्सपर्ट के अनुसार, इस खेती में उर्वरकों का संतुलित उपयोग भी बहुत जरूरी होता है. इससे फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. वहीं, आखिरी जुताई के समय मिट्टी में नत्रजन 15 किलो, फास्फोरस 20 किलो और पोटाश 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाना चाहिए, जिससे पौधों की जड़ें मजबूत बनती हैं और पोषक तत्वों का अवशोषण सुचारू रूप से होता है. इसके अलावा फास्फोरस शुरुआती वृद्धि में मदद करता है. पोटाश पौधों को मजबूती देता है और दानों का भराव बेहतर बनाता है.

First Published :

November 26, 2025, 10:09 IST

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जौ की इन बेहतरीन किस्मों की करें बुवाई, कम लागत में मिलेगी बंपर उपज

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