किसानों के लिए ग्रीन गोल्ड है इस फसल की बीज की खेती, गेहूं से दो गुना मिलता है मुनाफा, सरकार भी दे रही मदद

नागौर. पालक बीज की खेती आज किसानों के लिए एक नई आय का जरिया बन रही है. जहां पहले किसान पालक की पत्तियों तक सीमित रहते थे, अब वे बीज उत्पादन करके अपनी आमदनी को दोगुना कर रहे हैं. इस कारण इसे ग्रीन गोल्ड कहा जाता है. पालक एक रबी की फसल है और इसका बुवाई का सही समय अक्टूबर से फरवरी माना जाता है, जबकि गर्मियों के लिए मार्च से अप्रैल उपयुक्त है. यह फसल कम उपजाऊ और रेतीली मिट्टी में भी आसानी से उग जाती है. नागौर जैसे क्षेत्र के लिए यह खेती सबसे उपयुक्तहै.
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट बजरंग सिंह ने बताया कि गेहूं की तुलना में इसकी खेती डेढ़ गुना अधिक मुनाफा देती है. खेत की तैयारी में गहरी जुताई, मिट्टी का संतुलित नमी स्तर और गोबर खाद मिलाना जरूरी है. बीज बोते समय पौधों के बीच 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है और हल्की सिंचाई की जाती है. इस तरह किसान कम खर्च में अधिक उत्पादन कर सकते हैं.
कीट से बचाने के लिए जैविक खाद का करें प्रयोग
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट ने बताया कि राजस्थान में किसान पालक की बुवाई के लिए तैयारियां शुरू कर चुके हैं. बीज बोने के बाद पौधों को रोग और कीट से बचाने के लिए समय-समय पर जैविक छिड़काव किया जाता है. फूल आने के करीब 90 से 100 दिन बाद पौधे सूखने लगते हैं, तब बीज की कटाई की जाती है. कटाई के बाद पौधों को सुखाकर बीज अलग किया जाता है. एक बीघा खेत से 30 से 40 किलो तक उच्च गुणवत्ता वाला बीज प्राप्त होता है, जिसका बाजार में अच्छा दाम मिलता है. उचित देखभाल और सिंचाई से बीज की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बढ़ते हैं.
12 क्विंटल तक प्रति एकड़ उत्पादन संभव
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट बजरंग सिंह ने बताया कि पालक बीज की खेती में लागत कम और लाभ अधिक होता है. एक बीघा खेत से हल्की उपजाऊ जमीन में भी 12 क्विंटल प्रति एकड़ बीज उत्पादन संभव है, जबकि खाद, उर्वरक और सिंचाई का ध्यान रखा जाए तो यह उत्पादन 18 क्विंटल प्रति एकड़ तक पहुंच सकता है. पालक बीज के शानदार उत्पादन के 3 कारण होते हैं, पहला ये की इस फसल पर पाले का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, दूसरा इसमें रोग लगने की संभावना न्यूनतम होती है और तीसरा यह लगातार बीज का उत्पादन करती रहती है.
मुनाफे का सौदा है पालक बीज की खेती
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि पालक बीज की खेती छोटे और बड़े किसानों दोनों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय है. उन्होंने बताया कि इसमें लागत कम होती है और मुनाफा कई गुना अधिक होता है. सही समय पर बुवाई, सिंचाई और जैविक खाद का उपयोग करके किस अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, पालक बीज की गुणवत्ता बाजार मूल्य तय करती है, इसलिए रोग नियंत्रण और खेत की सफाई पर विशेष ध्यान देना जरूरी है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को सरकार की योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए क्योंकि इससे निवेश कम और लाभ बढ़ता है.
खेती के लिए सरकार दे रही है मदद
पालक बीज की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है. राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत बीज उत्पादन पर 50% तक सब्सिडी दी जाती है, जबकि प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम पर 60% सहायता मिलती है. राजस्थान बीज निगम किसानों से बीज खरीदकर उन्हें प्रोत्साहन राशि प्रदान करता है. इन योजनाओं से किसानों का निवेश कम होता है और मुनाफा बढ़ता है.