Ground Report: परंपरा का प्रतीक भगवान कृष्ण का दिया चाक संकट में, इलेक्ट्रॉनिक चाक से बदलती कुम्हारों की जिंदगी

मोहित शर्मा/ करौली: आधुनिक तकनीक का असर पारंपरिक शिल्पों और औजारों पर भी गहराता जा रहा है, जिसका उदाहरण करौली के कुम्हार समुदाय में दिख रहा है. यहां परंपरागत पत्थर के चाक का स्थान इलेक्ट्रॉनिक चाक ने ले लिया है. इससे न केवल कुम्हारों का काम तेजी से हो रहा है बल्कि उनकी कार्यशैली में भी बड़ा बदलाव आ गया है. इलेक्ट्रॉनिक चाक ने एक ओर कार्यकुशलता बढ़ाई है, वहीं पारंपरिक चाक, जो कुम्हारों की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक था, अब धीरे-धीरे गुम होता जा रहा है.
बस्ती में अब भी जीवित है पारंपरिक चाक का जादू करौली की कुम्हार बस्ती में जहां अधिकांश कुम्हार इलेक्ट्रॉनिक चाक का उपयोग कर रहे हैं, वहीं 55 वर्षीय बत्ती लाल प्रजापति एकमात्र कुम्हार हैं जो आज भी पत्थर के पारंपरिक चाक पर मिट्टी के दीपक बनाने का काम करते हैं. बत्ती लाल का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक चाक भले ही उत्पादन में तेज हो, परंतु सफाई और परिशुद्धता के मामले में पारंपरिक चाक अब भी बेहतर है. बत्ती लाल ने बताया कि पारंपरिक चाक को हाथों से नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे उनकी रचनाओं में शुद्धता और सुंदरता अधिक आती है.
उत्पादन क्षमता में इलेक्ट्रॉनिक चाक से मात बत्ती लाल प्रजापति बताते हैं कि पारंपरिक पत्थर के चाक पर एक घंटे में 100 से 125 दीपक ही तैयार किए जा सकते हैं, जबकि इलेक्ट्रॉनिक चाक पर एक घंटे में 1000 दीपक बनाए जा सकते हैं. इसके बावजूद पारंपरिक चाक को कुम्हारों द्वारा कुदरत का एक अनमोल उपहार माना जाता है, जिसमें हजारों सालों तक खराबी नहीं आती.
पारंपरिक पत्थर के चाक की संरचना और महत्व बत्ती लाल बताते हैं कि पारंपरिक चाक पत्थर का बना होता है और इसे चलाने के लिए लकड़ी के डंडे को हाथों से तेजी से घुमाना पड़ता है, जो एक तकनीक और ताकत का मिश्रण है. पत्थर का यह चाक लगभग 80 से 85 रोटेशन प्रति मिनट पर चलता है, जिसे नियमित अंतराल पर गति दी जाती है. इस चाक का मेंटेनेंस नहीं होता और इसे एक लंबे समय तक उपयोग किया जा सकता है.
भगवान कृष्ण का अनमोल उपहार कुम्हार समाज में इस पारंपरिक चाक का विशेष धार्मिक महत्व है. कुम्हार समुदाय के लोगों का मानना है कि यह चक्र उन्हें भगवान कृष्ण द्वारा उपहार स्वरूप दिया गया था. हिंदू धर्म में शादी-विवाह के अवसर पर इस चाक का पूजन विशेष रूप से किया जाता है. कुम्हार समाज के अनुसार, भगवान कृष्ण के पास दो चक्र थे, जिसमें से एक सुदर्शन चक्र उनके पास था, जबकि दूसरा उन्होंने कुम्हारों को दिया.
करौली के कुम्हारों के जीवन में तकनीक ने आधुनिकता का संचार किया है, लेकिन पारंपरिक चाक का महत्व और उससे जुड़ी सांस्कृतिक पहचान आज भी जिंदा है.
Tags: Karauli news, Local18, Rajasthan news
FIRST PUBLISHED : October 31, 2024, 16:50 IST