‘मीरपुर के कसाई’ को फांसी दो, जब सड़कों पर उतर आए बांग्लादेशी नौजवान, फिर युनुस ने जमात-ए-इस्लामी से बैन क्यों हटाया?

नई दिल्ली: शेख हसीना के देश छोड़ते ही बांग्लादेश के तेवर बदलने लगे हैं. बांग्लादेश की चाल-ढाल सब अलग दिख रही है. उसे अब भारत की दोस्ती-दुश्मनी से कोई फर्क नहीं पड़ रहा. तभी तो वह लगातार भारत विरोधी कदम उठा रहा है. पहले उसने बाढ़ का दोष मढ़ा और अब उस पार्टी पर रहमदिली दिखाई, जिसने हिंदुओं पर हमले किए, सैकड़ों बांग्लादेशियों को मौत के घाट उतारा. जी हां, हम बात कर रहे हैं जमात-ए-इस्लामी पार्टी की. बांग्लादेश की युनुस सरकार ने जमात-ए-इस्लामी पार्टी पर से बैन हटा दिया है. साथ ही उसकी छात्र इकाई इस्लामी छात्र शिबिर से भी प्रतिबंध हटाया है. यह वही पार्टी है, जिसके एक नेता के खिलाफ कभी पूरा बांग्लादेश सड़कों पर उतर आया था. बांग्लादेश में भयंकर प्रदर्शन हुआ था और लाखों नौजवानों ने एक सुर में फांसी की मांग की थी.
जमात-ए-इस्लामी के उस नेता के बारे में जानने से पहले जानते हैं कि युनुस सरकार ने क्या तर्क देकर बैन हटाया है. बांग्लादेश में जब से मोहम्मद युनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी है, तब से चीजें बदली-बदली नजर आ रही हैं. ऐसा लग रहा है कि मोहम्मद युनुस को भारत की दोस्ती की जरा भी परवाह नहीं है. यही वजह है कि युनुस सरकार ने बुधवार को दक्षिणपंथी जमात-ए-इस्लामी और इसकी छात्र इकाई इस्लामी छात्र शिबिर से बैन हटा दिया. इसके लिए युनुस सरकार ने तर्क दिया है कि जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ कोई सबूत मौजूद नहीं है कि वह टेरर एक्टिविटी में शामिल रहा है.
जमात-ए-इस्लामी को क्लीन चिटअब जानते हैं कब और क्यों बैन लगा. बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के दौरान जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया था. शेख हसीना सरकार ने 1 अगस्त 2024 को जमात-ए-इस्लामी पर बैन लगाया था. शेख हसीना सरकार का आरोप था कि इसने ही स्टूडेंट्स के प्रदर्शन को भड़काया था. साल 2013 से ही जमात-ए-इस्लामी के चुनाव लड़ने पर बैन है. जमात-ए-इस्लामी पार्टी पर चरमपंथी और आतंकवादी संगठन होने का आरोप लगा था. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने जमात-ए-इस्लामी के चुनाव लड़ने पर बैन लगा दिया था. हालांकि, अब युनुस सरकार का कहना है कि जमात-ए-इस्लामी पर आतंकवाद निरोध कानून, 2009 के तहत लगाया गया बैन हटा दिया गया है, क्योंकि संगठन के खिलाफ कोई खास सबूत नहीं है.
मोहम्मद युनुस आखिर कर क्या रहे?अब समझते हैं कि आखिर युनुस सरकार ने बैन क्यों हटाया? तो इसकी सबसे बड़ी वजह है कि युनुस सरकार लगातार शेख हसीना के फैसलों को पलट रहे हैं. इससे पहले मोहम्मद युनुस सरकार ने 26 अगस्त को कट्टरपंथी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के मुखिया जशीमुद्दीन रहमानी को पैरोल पर रिहा कर दिया था. इस गुट पर आतंकी संगठन अलकायदा से संबंध रखने के आरोप हैं. शेख हसीना सरकार ने 2015 में अंसारुल्लाह बांग्ला टीम पर बैन लगा दिया था. दरअसल, मोहम्मद युनुस सरकार बैन हटाकर बांग्लादेश की जनता के सामने उदारवादी बनना चाहती है. वह शेख हसीना के खिलाफ गुस्से को सियासी तौर पर भुनाने की कोशिश में लगी है.
जब मुल्ला के खिलाफ सड़क पर उतर आए लाखों बांग्लादेशीमोहम्मद युनुस ने उस पार्टी से बैन हटाया है, जिसके नेता रहे अब्दुल कादिर मुल्ला के खिलाफ सड़कों पर पूरा बांग्लादेश उतर गया था. बात फरवरी 2013 की है. बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पार्टी के नेता रहे अब्दुल कादिर मुल्ला को मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी पाया गया था और उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी. कादिर मुल्ला पर 1971 के युद्ध के दौरान हत्या समेत कई अपराधों में शामिल होने के आरोप थे. लाखों बांग्लादेशी कादिर मुल्ला के उम्र कैद की सजा से संतुष्ट नहीं थे. वे फांसी की मांग कर रहे थे. कादिर मुल्ला को फांसी दो का नारा लगाते हुए लाखों नौजवना बांग्लादेश की सड़क पर उतर आए थे. करीब एक लाख से भी अधिक नौजवानों ने मुल्ला के लिए फांसी की सजा की मांग करते हुए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. 22 फरवरी 2013 से करीब 22 दिनों तक शाहबाग चौराहे पर प्रदर्शन हुआ था और मुल्ला के लिए फांसी की सजा की मांग हुई थी.
कादिर मुल्ला को कब मिली फांसी?नौजवानों की मांग का असर हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल कादिर मुल्ला को फांसी की सजा दी थी. 13 दिसंबर 2013 को मानवता विरोधी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए अब्दुल कादिर मुल्ला को फांसी पर लटकाया गया. अब्दुल कादिर मुल्ला को 1971 के स्वतंत्रता आंदोलन के समय दुष्कर्म, हत्या और नरसंहार का दोषी ठहराया गया था. उस वक्त वह जमात-ए-इस्लामी दल के सहायक महासचिव था. बता दें कि बांग्लादेश में 1971 के स्वतंत्रता आंदोलन में पाकिस्तान सरकार से मिल जाने वाले लोगों को ‘युद्ध अपराधी’ कहा जाता है. अब्दुल कादिर मुल्ला को मीरपुर का कसाई भी कहा जाता था. अब्दुल कादिर मुल्ला युद्ध अपराधों के अलावा 344 नागरिकों की हत्या का दोषी था.
जमात-ए-इस्लामी ने हिंदुओं पर हमले किए?हाल ही में जब शेख हसीना के खिलाफ प्रदर्शन हुए और उसके बाद जब हिंदुओं पर हमले हुए तो जमात-ए-इस्लामी फिर सुर्खियों में थी. जमात-ए-इस्लामी पार्टी पर हिंदुओं पर हमले के आरोप लगे. हालांकि, जमात-ए-इस्लामी पार्टी के शफीकुर रहमान का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमलों में उनकी पार्टी शामिल नहीं थी. रहमान ने उन आरोपों का भी खंडन किया कि उनकी पार्टी बांग्लादेश में भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल थी. उन्होंने भारत से कहा कि अगर कोई सबूत है तो वह पेश करे. उन्होंने दावा किया कि 5 अगस्त के बाद से उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने हिंदुओं के घर और मंदिरों की रखवाली की थी.
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FIRST PUBLISHED : August 30, 2024, 12:16 IST