खुद लगाते हैं ठेला, इलाज के लिए नहीं थे पैसे…पर दिन-रात एक कर बेटे को बनाया डॉक्टर
करौली: एक ठेला चलाने वाला अपने घर का खर्च ही मुश्किल से उठा पाता है. लेकिन राजस्थान के करौली के रहने वाले एक शख्स ने ठान लिया था कि वो अपने बेटे को डॉक्टर ही बनाएंगे. साल 2002 में उनकी तबीयत खराब हुई. उनके पास टीबी जैसी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए पैसे नहीं थे. लेकिन उन्होंने जंग जीत ली. फिर फैसला लिया कि वो अपने बेटे को डॉक्टर ही बनाएंगे.
12-13 घंटे की मेहनत कर पूरा किया सपनाकैलाश राठौर की, जिन्होंने ठेले पर फल बेचकर अपने दो बेटों को डॉक्टर बना दिया. कैलाश का सपना अपने एक बेटे को डॉक्टर बनाने का था. उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के कारण आज उनके एक बेटे ने डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया है और दूसरा बेटा भी नीट क्वालीफाई कर डॉक्टर बनने की राह पर है.
टीबी होने के बाद लिया फैसला कैलाश राठौर बताते हैं कि पहले वह मूंगफली का ठेला लगाते थे. साल 2001 में मूंगफली बेचने के दौरान उन्हें एलर्जी हो गई, जो बाद में टीबी में बदल गई. उस समय उनके पास इलाज के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे, लेकिन सरकारी अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने ठान लिया कि उनके एक बेटे को डॉक्टर बनना ही होगा. इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने करीब 17 साल तक दिन-रात ठेले पर खड़े होकर फल बेचे.
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17 साल की मेहनत के बाद मिला फल लोकल 18 से खास बातचीत में कैलाश ने बताया कि उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की और ईश्वर पर भरोसा किया. उन्होंने हर दिन सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे तक ठेले पर खड़े रहकर फल बेचे. उन्होंने ईश्वर से केवल एक ही प्रार्थना की कि उनकी मेहनत रंग लाए और उनके बेटे डॉक्टर बनें. उनकी इसी मेहनत का परिणाम है कि आज उनके दोनों बेटे डॉक्टर बन रहे हैं.
बेटे की ने कही ये बात कैलाश के बड़े बेटे सोनू राठौर ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि उनके पिताजी ने उन्हें अच्छी शिक्षा देने के लिए बहुत मेहनत की. पिताजी की इस मेहनत का नतीजा है कि उनका एक भाई वेटरनरी डॉक्टर है और दूसरा भाई अमृतसर, पंजाब से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है. सोनू खुद भी एम.ए. और बी.एड. कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि जब पिताजी को टीबी हुई थी, तब वे बहुत लाचार थे, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना दुख भूलकर हमें पढ़ाया.
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FIRST PUBLISHED : October 2, 2024, 14:33 IST