वो इकलौता डायरेक्टर, 19 साल में बनाईं 5 ब्लॉकबस्टर-8 सुपरहिट फिल्में, आजमाता था खास ट्रिक – dharamveer suhag naseeb mard 5 blockbuster 8 superhit movies directed by manmohan desai with amitabh bachchan rekha parveen babi fascinating story

Last Updated:October 31, 2025, 22:52 IST
Manmohan Desai Hit Movies : बॉलीवुड में ऐसे कुछ ही डायरेक्टर हुए हैं जिन्होंने अपने करियर के दौरान एक से बढ़कर एक फिल्में दीं. जिन्होंने हिट-सुपरहिट फिल्मों का फॉर्मूला ही ईजाद कर लिया. दर्शकों की नब्ज समझ ली. अपनी फिल्मों से ऐसा दीवाना बनाया कि हर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही. बॉलीवुड में ऐसे ही एक डायरेक्टर ने 50 के दशक में इंडस्ट्री ली थी. 1966 से 1985 के बीच 19 साल में 5 ब्लॉकबस्टर और 8 सुपरहिट फिल्में दीं. इस डायरेक्टर ने अपनी फिल्मों में एक खास तरह की ट्रिक भी आजमाई. कौन था यह डायरेक्ट और क्या ट्रिक आजमाई, आइये जानते हैं दिलचस्प कहानी… 
वैसे तो सुपरहिट फिल्म का फॉर्मूल किसी के पास नहीं है लेकिन बॉलीवुड में एक डायरेक्टर ऐसे ही हुए हैं जिन्होंने हिट-सुपरहिट फिल्मों की झड़ी लगा दी थी. 19 साल में 13 से ज्यादा हिट-सुपरहिट फिल्में दीं. इस डायरेक्टर का नाम है मनमोहन देसाई, जो कि मूल रूप से गुजरात से ताल्लुक रखते थे. जन्म 26 फरवरी 1937 को मुंबई में हुआ था. पिता कीकूभाई फिल्म प्रोड्यूसर थे और उस जमाने के जाने-माने फिल्म स्टूडियो पैरामाउंट के मालिक थे. मनमोहन देसाई ने जब होश भी नहीं संभाला था तो उनके पिता का निधन हो गया. पिता के एक ऑफिस में गुजारा किया. मनमोहन देसाई के बड़े भाई प्रोड्यूसर थे.

मनमोहन देसाई को 20 साल की उम्र में उन्हें बड़ा ब्रेक मिला 1960 में आई ‘छलिया’ फिल्म में. इस फिल्म में उन्होंने राजकपूर और नूतन को डायरेक्ट किया. फिल्म सुपर-डुपर हिट साबित हुई. फिर उन्होंने सच्चा-झूठा और रोटी, रामपुर का लक्ष्मण और भाई हो तो ऐसा जैसी कुछ और सुपरहिट फिल्में बनाईं. देसाई बॉलीवुड ने अपने करियर में कुल 20 फिल्में डायरेक्ट कीं जिसमें से 13 सफल रहीं. बैक टू बैक 7 सिल्वर जुबली और 4 गोल्डन जुबली फिल्में देने वाले बॉलीवुड के इकलौते डायरेक्टर हैं. वो इंडस्ट्री के सबसे सफल निर्देशकों में से एक हैं.

मनमोहन देसाई ने 1977 में पहली बार अमिताम बच्चन के साथ ‘अमर अकबर एंथोनी’ में काम किया. 1977 में मनमोहन देसाई की चार फिल्में हिट हुईं. ये फिल्में थीं : अमर अकबर एंथोनी, परवरिश, धरम-वीर और चाचा भतीजा. इसके बाद उन्होंने सिर्फ और सिर्फ अमिताभ के साथ काम किया. 1979 में सुहाग, 1981 में नसीब, देशप्रेमी, कुली (1983), मर्द (1985) और गंगा-जमुना-सरस्वती (1988) में आखिरी बार डायरेक्ट किया. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही. दोनों ने साथ फिल्मों में काम किया. मर्द को छोड़कर सभी फिल्में मल्टी-स्टारर थीं.

मनमोहन देसाई ने अपनी फिल्मों में हीरो को कॉमन मैन दिखाया. ज्यादातर फिल्मों में हीरो मजदूर या कुली रहा. यही ट्रिक उन्होंने हर दूसरी-तीसरी फिल्म में आजमाई और सफलता का फॉमूला ईजाद किया. इसके पीछे की वजह का खुलासा करते हुए उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था, ‘जब मैं फिल्म मेकिंग में आया तो देखा कि हर भारतीय फिल्म 5 स्मग्लर और एक भ्रष्ट नेता को दिखा रही है. ऐसे में मैंने सोचा कि क्यों ना मैं कुछ अलग करूं. इसलिए अपनी फिल्म में कॉमन मैन की कहानी दिखाई. मैं फिल्मों में बहुत ज्यादा खून खराबा दिखाने पर यकीन नहीं रखता लेकिन खून बहुत गर्म है. मैं कैमरे के पीछे से ही एक्शन में शामिल हो जाता हूं.’

मनमोहन देसाई किसी लॉजिक को नहीं मानते थे. सिर्फ इमोशंस पर जोर देते थे. यह फॉर्मूला भी बहुत कारगर रहा और उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब चलीं. अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो लॉजिक को नहीं मानते. उन्होंने कई बार बिना लॉजिक के सीन फिल्मों में डाले हैं. हीरो भले ही उन्हें गलत कहता रहा लेकिन उन्होंने सबको गलत साबित कर दिया. उन्होंने कहा था, ‘मैं अपनी फिल्में आम आदमी के लिए बनाता था. मेरा मकसद होता था कि दर्शक सीन पर ताली बजाए. जितनी तालियां बजेंगी, फिल्म उतने ही हफ्ते ज्यादा चलेगी. लोग कहते हैं कि मैं फिल्में बिना लॉजिक के बनाता हूं. मैं भी यही कहता हूं कि मुझे लॉजिक की जरूरत नहीं. मैं लॉजिक पर यकीन नहीं करता. मैंने ‘जुनून’ मैथेड का इस्तेमाल किया. इमोशन को पकड़ा. फिल्म में कॉमेडी-ड्रामा-म्यूजिक पर ध्यान दिया.’

धरम-वीर फिल्म की कहानी को मनमोहन देसाई ने महाभारत के कर्ण से प्रेरित होकर बनाया था. वो कर्ण को हीरो मानते थे. कृष्ण और अर्जुन को नहीं. मनमोहन देसाई ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मैं फिल्म के अंत में धरम के कैरेक्टर को मारना चाहता था लेकिन हर किसी ने कहा कि ऐसा मत कीजिए. पूरी फिल्म कर्ण के कैरेक्टर पर बेस्ड है. मैं चमत्कार पर यकीन रखता हूं. मैंने अपनी निजी जिंदगी में दो चमत्कार देखे हैं. मेरी मां जब अस्पताल में भर्ती थी तो हर किसी ने उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी. डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था. हम सबने प्रार्थना की और वो आश्वर्यजनक रूप से ठीक हो गईं. मुझे आंखों की रोशनी वापस लौटने पर भी पूरा भरोसा है.’

अमिताभ बच्चन ने ऋषि कपूर के साथ एक चैट शो में मनमोहन देसाई के बारे में कहा था, ‘मनमोहन देसाई बहुत ही जीनियस आदमी थे. अमर अकबर एंथोनी की शूटिंग के दौरान हम लोग तो कई बार सेट पर खूब हंसते थे. हम बोलते थे कि मन जी आप किया करवा रहे हैं? यह ठीक नहीं है. यह गलत है, तीन प्राणी यहां लेटे हैं, उनका खून जा रहा है, एक बोतल में, बोतल से जा रहा है माता श्री को, ये मेडिकल हिस्ट्री नहीं हो सकती. ये गलत है लेकिन वो बोलते थे कि चुप बैठो. तुम लोगों को पता नहीं कि क्या होने वाला है. दो-तीन मोटी-मोटी गालियां देकर हम लोग वहां पर लेत जाते थे लेकिन वो बिल्कुल सही थे. जब थिएटर्स पर वो सीन आया, तो हल्ला मच गया. दर्शक रोमांचित हो उठते थे. अमर अकबर की कहानी देखिए, क्लाइमैक्स का गाना आया, ‘एक जगह जब जमा हो तीनों, अमर-अकबर-एंथोनी.’ दिलचस्प बात यह है कि तीनों यह गाना गा रहे हैं और विलेन को पता ही नहीं, वो हमें नहीं पहचानता.’

मनमोहन देसाई की पर्सनल लाइफ की बात करें तो उन्होंने अपनी कॉलोनी में रहने वाली जीवन प्रभा से उनकी शादी हुई थी. पूरे दो साल तक जीवन का उन्होंने पीछा किया था. फिर एक दिन सड़क पर प्रपोज कर दिया. जीवन ने भी तत्काल हां कर दिया. 1959 में दोनों ने शादी कर ली थी. 1979 में जीवन प्रभा का निधन हो गया था. पत्नी के निधन के बाद मनमोहन देसाई का दिल टूट गया. फिल्मों से उन्होंने दूरी बना ली थी. बेटे केतन ने उन्हें दोबारा फिल्में बनाने के लिए कहा. मनमोहन देसाई ने फिर से कैमरा थामा और देश प्रेमी, कुली जैसी फिल्में बनाईं. इसी बीच मनमोहन देसाई एक्ट्रेस नंदा के संपर्क में आए और उन्हें मन ही मन चाहने लगे. नंदा ने भी देसाई के प्यार को कबूल कर लिया. दिलचस्प बात यह है कि उनके बेटे केतन अपनी पत्नी के साथ एक्ट्रेस नंदा के पास अपने पिता का रिश्ता लेकर पहुंचे थे.
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October 31, 2025, 22:52 IST
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