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Health Tips: Antibodies Are The Protective Shield For The Body – Health Tips: शरीर के लिए सुरक्षा कवच हैं एंटीबॉडीज, जानिए शरीर में कैसे होता है निर्माण

Health Tips: दुनियाभर में कोरोना संक्रमण के बाद काफी लोगों में एंटीबॉडी को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। पूछा जा रहा है कि जो वैक्सीन लगवा चुके हैं, अब वे खुद को कोरोना से सुरक्षित मानें या नहीं। साथ ही एंटीबॉडी का स्तर पता करने के लिए कौन-सा टेस्ट कराना सही रहेगा।

Health Tips: दुनियाभर में कोरोना संक्रमण के बाद काफी लोगों में एंटीबॉडी को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। पूछा जा रहा है कि जो वैक्सीन लगवा चुके हैं, अब वे खुद को कोरोना से सुरक्षित मानें या नहीं। साथ ही एंटीबॉडी का स्तर पता करने के लिए कौन-सा टेस्ट कराना सही रहेगा।

बाहरी कीटाणुओं (एंटीजन) को पहचानकर उन्हें खत्म करने की क्षमता रखने वाले एंटीबॉडीज एक प्रकार के प्रोटीन्स होते हैं। ये रक्त का ही एक भाग हैं जिन्हें इम्युनोग्लोबिनिन भी कहते हैं। ये एंटीजंस रोगजनित बैक्टीरिया व वायरस होते हैं जो दो तरह से शरीर में प्रवेश करते हैं। रोग प्रतिरोधकता कम होने व किसी जानवर या कीड़े के काटने पर उनके जहर से।

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शरीर में निर्माण
सभी एंटीबॉडीज शरीर में जन्मजात नहीं होते। मां के गर्भनाल (प्लेसेंटा) से बच्चे को कुछ ही रोगों के विरुद्ध लडऩे वाले एंटीबॉडीज मिलते हैं। ऐसे में जो समस्या मां को रही हो उसके खिलाफ काम कर रहे एंटीबॉडीज बच्चे के शरीर में आ सकते हैं।

जन्म के बाद बच्चे में इन एंटीबॉडीज का निर्माण टीकाकारण के माध्यम से किया जाता है जो आमतौर पर होने वाली बीमारियों से बच्चे को बचाते हैं। इसके अलावा शरीर में एक्टिव व पैसिव दोनों रूप से एंटीबॉडीज बनते हैं।
एक्टिव : ऐसे एंटीबॉडीज जिन्हें शरीर खुद ही बना लेता है।

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पैसिव : इस प्रकार में मरीज को बाहरी रूप से एंटीबॉडीज दिए जाते हैं।

वैक्सीन से सुरक्षा
आमतौर पर होने वाले किसी भी रोग के एक प्रोटीन को लेकर उसी के लिए टीका (वैक्सीन) बना लिया जाता है और मेडिसिनल प्रक्रिया के जरिए शरीर में इंजेक्ट करते हैं।

नवजात शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है इसलिए उसे टीके लगाए जाते हैं ताकि अक्सर शिशु को प्रभावित करने वाले रोगों के कीटाणु उसे बार-बार परेशान न करें। ये टीके बच्चे को बड़ी उम्र तक रोगों से सुरक्षित रखते हैं। साथ ही उनकी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता को भी बढ़ाते हैं।

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ऑटो-इम्यून एंटीबॉडीज
यह शरीर के खुद के प्रोटीन होते हैं जो कई बार स्वयं की एंटीबॉडीज को ही बाहरी तत्त्व मानने लगते हैं। इन्हीं की वजह से आर्थराइटिस, रुमेटाइड आर्थराइटिस और जोड़ों से जुड़ी समस्याएं होती हैं इसलिए इन्हें ऑटो-इम्यून डिजीज भी कहते हैं।

एंटीजन से खतरा
बैक्टीरियल, वायरल जनित रोग, दूषित खानपान, सांस के माध्यम या त्वचा के संपर्क से भी बाहरी कीटाणु शरीर में प्रवेश कर कई बीमारियों का कारण बनते हैं।

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