Health

Hemophilia: छोटी सी चोट पर ज्‍यादा बहता है खून, लड़कों में ज्‍यादा होती है ये बीमारी, मां-बाप ही होते हैं वजह

हाइलाइट्स

हीमोफीलिया के मामलों में भारत दूसरे नंबर पर है.
यह जेनेटिक बीमारी लड़कों में ज्‍यादा पाई जाती है.

Hemophilia Disease: चोट लगने, हाथ या पैर में कट लगने पर खून बहना सामान्‍य बात है. ऐसा होने पर खून को रोकने के लिए लोग घरेलू उपाय करते हैं. एंटीसेप्टिक हल्‍दी आदि लगाते हैं और खून बहना बंद हो जाता है. कई बार चोट ज्‍यादा होने पर डॉक्‍टर के पास भी जाते हैं लेकिन अगर किसी उपाय को करने के बाद भी खून बहना बंद नहीं होता है तो यह सामान्‍य बात नहीं है. यह एक गंभीर बीमारी का लक्षण भी हो सकता है और यह बीमारी है हीमोफीलिया. यह एक ब्‍लीडिंग डिसऑर्डर (Bleeding Disorder) है और बच्‍चों में मां-बाप के जीन्‍स से ही आता है. बड़ी बात है कि यह बीमारी लड़कियों के मुकाबले लड़कों में ज्‍यादा होती है.

सेंटर फॉर बोन मैरो ट्रांस्‍प्‍लांट, बीएलके-मैक्‍स सुपरस्‍पेशलिटी अस्‍पताल, नई दिल्‍ली में एसोसिएट डायरेक्‍टर डॉ. पवन कुमार सिंह ने बताया कि हीमोफीलिया एक जेनेटिक बीमारी है. हमारे शरीर में प्रोटीन के दो जीन्‍स होते हैं, एक मां से और दूसरा पिता से मिलता है. अगर मां-बाप दोनों के ही खराब जीन्‍स मिल जाते हैं और किसी बच्‍चे के अंदर आ जाते हैं तो आनुवांशिक बीमारियां हो जाती हैं. आमतौर पर जो कैरियर लोग होते हैं, चाहे मां हो या पिता, उनकी एक जीन खराब या प्रभावित होती है, लेकिन उनमें कोई लक्षण नहीं दिखाई देता. जब इन दोनों के खराब जीन बच्‍चे में जाते हैं तो बीमारी दिखाई देने लगती है.

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लड़कों में इसलिए ज्‍यादा होती है ये बीमारी
ज्‍यादातर मामलों में देखा गया है कि हीमोफीलिया की बीमारी लड़कों में ज्‍यादा होती है. जबकि महिलाएं या लड़कियां परिवार में इस बीमारी की कैरियर का काम करती हैं. जेनेटिक बीमारी भी दो प्रकार की होती हैं या तो वे ऑटोजोमल क्रोमोजोम के द्वारा ट्रांस्‍फर होती हैं या फिर एक्‍स लिंग क्रोमोजोम के द्वारा होती है. अब चूंकि लड़कों में एक्‍स क्रोमोजोम एक होता है, ऐसे में अगर मां का खराब एक्‍स क्रोमोजोम उनमें आ जाता है तो उनमें ये बीमारी पनप जाती है जबकि लड़कियों में एक्‍स क्रोमोजोम दो होते हैं तो उनमें इस बीमारी के लक्षण नहीं आते लेकिन वे कैरियर बन जाती हैं.

तीन प्रकार का होता है हीमोफीलिया
हीमोफीलिया की बीमारी ए, बी और सी तीन प्रकार की होती है. इनमें से ए और बी हीमोफीलिया मुख्‍य रूप से लड़कों में होता है. जबकि सी लड़के और लड़की दोनों में हो सकता है.

हीमोफीलिया बन जाता है जानलेवा
हीमोफीलिया में ब्‍लड को रोकने की क्षमता कम या खत्‍म हो जाती है. शरीर में ब्‍लीडिंग को रोकने के लिए दो चीजें होती हैं, पहला प्‍लेटलेट्स और दूसरा क्‍लॉटिंग या कोगुलेशन फैक्‍टर्स. ये दोनों ही ब्‍लड को रोकने के लिए थक्‍का या क्‍लॉट्स बनाने का काम करते हैं. क्‍लॉटिंग फैक्‍टर एक रक्‍त प्रोटीन होता है, जिसकी कमी होने पर शरीर से खून का बहना रुकता नहीं है. मान लीजिए कोई दुर्घटना या शरीर में कोई कट लग जाता है तो हीमोफीलिया के मरीज का खून बहना बंद नहीं होता है और ऐसी स्थिति में यह बीमारी जानलेवा हो जाती है.

मरीजों को रखना चाहिए इन बातों का ध्‍यान
इस बीमारी का इलाज प्‍लाज्‍मा या शरीर में जिस फैक्‍टर की कमी होती है, उसके रिप्‍लेसमेंट के द्वारा ही होता है. सबसे जरूरी बात है कि अगर किसी का खून नहीं रुक रहा है या ऐसी कोई समस्‍या दिखाई दे रही है तो बिना देर किए डॉक्‍टर से संपर्क करना चाहिए, ताकि जांचों के द्वारा इस बीमारी का पता चल सके. कई बार दुर्घटना होने पर यह बीमारी हालात को गंभीर बना देती है और खून का बहना न रुकने से जानलेवा हो जाती है. इसके अलावा लोगों को विटामिन बी 12 और विटामिन बी 6 वाले रिच फूड लेने चाहिए.

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हीमोफीलिया के मरीजों में दूसरे नंबर पर है भारत

हीमोफीलिया के मरीजों की संख्‍या में भारत दूसरे नंबर पर है. यहां करीब 1.3 लाख हीमोफीलिया के मरीज हैं. बहुत सारे अस्‍पताल और मेडिकल कॉलेजों में ब्‍लड क्‍लॉटिंग या नए मामलों के डायग्‍नोसिस के लिए स्‍क्रीनिंग की सुविधा नहीं है. यही वजह है कि स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों का अनुमान है कि हीमोफीलिक मरीजों की एक बड़ी आबादी रिकॉर्ड से बाहर है.

Tags: Blood, Blood Donation, Trending news in hindi

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