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Holi special Holika Dahan not celebrate this villlage unique story 60 years earlier

Last Updated:March 11, 2025, 20:42 IST

भीलवाड़ा जिला मुख्‍यालय से 5 किलोमीटर दूर हरणी गांव में करीब 60 साल पहले होलिका दहन के दौरान उठी चिंगारी ने पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया, जिसके कारण लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा. इसके बाद ग्रामीणों ने प…और पढ़ेंX
चारभुजा
चारभुजा नाथ मंदिर

हाइलाइट्स

भीलवाड़ा के हरणी गांव में नहीं होता होलिका दहन.गांव में सोने के प्रहलाद और चांदी की होली की पूजा होती है.यह परंपरा पिछले 60 सालों से चली आ रही है.

भीलवाड़ा:- आमतौर पर होलिका दहन का त्यौहार होलिका जलाकर मनाया जाता है. लेकिन भीलवाड़ा के एक ऐसा गांव है, जहां पर होलिका दहन ही नहीं किया जाता है. होलिका दहन के दिन लगी आगजनि की घटना ने भीलवाड़ा जिले के हरणी गांव में एक नई परंपरा को जन्म दे दिया है. अक्सर आपने होलिका दहन पर कंडों और लकड़ियों को जलाते देखा होगा. मगर राजस्थान के भीलवाड़ा में एक ऐसा गांव है, जहां होलिका का दहन नहीं करके सिर्फ होलिका और भक्त प्रह्लाद की पूजा अर्चना की जाती है.

भीलवाड़ा जिला मुख्‍यालय से 5 किलोमीटर दूर हरणी गांव में करीब 60 साल पहले होलिका दहन के दौरान उठी चिंगारी ने पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया, जिसके कारण लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा. इसके बाद ग्रामीणों ने पंचायत बुलाई और सर्वसम्‍मति से निर्णय लिया गया कि गांव में अब होलिका दहन नहीं होगा. तब से आज तक भीलवाड़ा का यह गांव पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति को बचाने के लिए एक अनूठा संदेश देते आ रहा है. इतना ही नहीं, ये पूरा देश का इकलौता ऐसा गांव है, जहां सोने के भक्त प्रह्लाद और चांदी की होलिका की पूजा अर्चना की जाती है और होलिका दहन नहीं किया जाता है.

पूरे गांव ने लिया ये फैसलाहरणी गांव के ग्रामीण गोपाल लाल शर्मा ने कहा कि हमारे गांव में पिछले 55 से 60 साल पहले आग लग गई थी, जिसके बाद यह निर्णय लिया कि अब हम होलिका दहन के लिए पेड़ नहीं काटेंगे और गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर सोने के प्रहलाद और चांदी की होली बनवाकर उसका पूजन शुरू किया. इस बात पर सभी ग्रामीण सहमत हो गए. इस निर्णय से प्रकृति का नुकसान भी नहीं होगा और पेड़-पौधे भी नहीं कटेंगे. इसके बाद गांव में सभी से ऊगाई (पैसा एकत्रित) किया और चांदी की होली और सोने का प्रहलाद बनवाया.

अब चांदी की होली और सोने के प्रहलाद को थाली में सजाकर श्रृंगार करके ढोल और गाजे-बाजे के साथ पूरे गांव के होली के ठाण जाते हैं. यहां होली और प्रहलाद की मंत्रौच्चार के साथ पूजा-अर्चना करके पुन: चारभुजा मंदिर वापस लाया जाता है. इससे पेड़ों को कटाई नहीं होती है और हमारे गांव में कभी भी महामारी भी नहीं आती है.

इस तरह शुरू हुई परम्परा ग्रामीण रामस्वरूप जाट ने कहा कि पहले होलिका दहन के समय आग लग गई थी, जिसके कारण गांव में काफी नुकसान हुआ था. उस नुकसान को देखते हुए हमारे बड़े बुजुर्गों ने निर्णय लिया कि होलिका दहन ना करके उसका पूजन किया जाएगा. हम सभी ग्रामीण होली के स्थान पर जाते हैं और वहां चांदी की होली और सोने के प्रहलाद की पूजा अर्चना करते हैं. यह परंपरा हमारे जन्म के पहले से ही मनाई जा रही है. आज हमें बहुत अच्छा लगता है कि इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता और वाद-विवाद भी नहीं होता है.


Location :

Bhilwara,Rajasthan

First Published :

March 11, 2025, 20:42 IST

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