CRPF Shaheed Deepchand Verma | Indian Brave Soldiers | Warrior of India Story | Martyr Deepchand Verma Biography | Indian Security Forces Courage

Warrior of India. राजस्थान की वीर धरा पर ऐसे-अनेक सपूत जन्मे हैं जिनकी सांसों में देशभक्ति और रगों में शौर्य दौड़ता है. इन्हीं में से एक थे खंडेला के बावड़ी निवासी शहीद हवलदार दीपचंद वर्मा, जिन्हें भारत सरकार ने पुलिस वीरता पुलिस पदक से सम्मानित किया था. Warrior of India की हमारी खास सीरीज में आज हम आपको इसी जांबाज योद्धा की कहानी बताने वाले हैं. 2020 में जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान उन्होंने जिस साहस का परिचय दिया था और अपने प्राण देश की रक्षा के लिए न्योछावर कर दिए थे.
दीपचंद वर्मा का जन्म 10 नवंबर 1981 को हुआ था. वे पढ़ाई में होशियार थे. वे परिवार से कहते थे कि- मैं एक दिन भारतीय सेना की वर्दी पहनकर देश की रक्षा करेंगे. साल 2003 में उनका यह सपना सच हुआ. ट्रेनिंग के बाद दीपचंद सीआरपीएफ की 179वीं बटालियन में कांस्टेबल बने और अपने साहस और पराक्रम से अजमेर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक कई कठिन पोस्टिंग्स पर उन्होंने सेवा दी और वीरता के दम पर हवलदार के पद तक पहुंचे.
वह दिन जब मौत भी उनके इरादों से डर गई1 जुलाई 2020के दिन जम्मू-कश्मीर के एक गांव में सूचना मिली कि एक मस्जिद के अंदर 2 से 3 आतंकी छिपे हुए हैं. शाम ढल रही थी, गांव सन्नाटे में डूबा था और सेना व सीआरपीएफ की टीम आतंकवादियों के मंसूबे को नाकाम करने के लिए आगे बढ़ रही थी. यह ऑपरेशन खतरों से भरा था, लेकिन हवलदार दीपचंद वर्मा की आंखों में एक परसेंट भी डर नहीं था. जहां आतंकवादी छुपे थे वह एक धार्मिक स्थल था. वे और उनकी टीम तंग गलियां से होकर मस्जिद के पास पहुंची और अंदर भारी हथियारों से लैस आतंकवादी छुपे थे.
दीपचंद अपनी टीम के साथ मस्जिद की ओर बढ़े. उनके कंधे पर जिम्मेदारी थी, और आंखों में वही तेज… किसी भी भारतीय नागरिक को नुकसान न होने देना था. जैसे ही सुरक्षाबलों ने परिसर को घेरा, आतंकी अचानक अंदर से गोलीबारी करने लगे. पहली गोली मस्जिद के लकड़ी के दरवाजे से टकराकर बाहर फटी, आवाज इतनी तेज कि पूरा इलाका गूंज उठा. आतंकियों का मकसद साफ था…. बाहर आने वालों को मौत के घाट उतार देना. लेकिन, दीपचंद पीछे कहा हटने वालों में से नहीं थे.
अंधाधुंध फायर और दीवार हुई चकनाचूरधुएं, धूल और गोलियों की गूंज के बीच दीपचंद तेजी से आगे बढ़े. उन्होंने बाईं ओर पोजिशन ली ताकि साथियों को आगे बढ़ने का रास्ता मिल सके. आतंकी बार-बार अपनी जगह बदल रहे थे. स्थिति बेहद खतरनाक थी, लेकिन दीपचंद ने आंखों में भय नहीं बस लक्ष्य देखा. एक आतंकी खिड़की से बाहर निकला ही था कि दीपचंद की गोली ने उसे वहीं ढेर कर दिया. इतने में अंदर से एक अंधाधुंध फायर हुआ और उनके पास की दीवार चकनाचूर हो गई. ऑपरेशन का फैसला करने वाला क्षण आ चुका था या तो आतंकी बच निकलते, या फिर दीपचंद अपनी जान हथेली पर रखकर आगे बढ़ते.
दूसरों को बचाने में अपनी जान कुर्बान कर दीवे बिना समय गंवाए दरवाजे की ओर झपटे, ग्रेनेड फेंका और भीतर घुसने का प्रयास किया, ताकि साथियों के लिए रास्ता बन सके. अंदर से चली एक गोली दीपचंद को जा लगी, फिर भी उन्होंने हथियार नहीं छोड़ा. घायल होने के बाद भी वे तब तक लड़ते रहे जब तक उनका शरीर जवाब नहीं दे गया. उनकी बहादुरी ने आतंकियों की कमर तोड़ दी… कुछ ही देर बाद बाकी आतंकवादी भी ढेर कर दिए गए और ऑपरेशन सफल हुआ. दीपचंद ने अपनी आखिरी सांस देश के नाम करते हुए वह कर दिखाया जो सिर्फ असली वीर ही कर पाते हैं… दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी.
सदियों तक याद रहने वाली गाथाउनकी शहादत पर देश ने सिर झुकाया, और भारत सरकार ने उन्हें वीरता पुलिस पदक से सम्मानित किया. राजस्थान के इस शेर ने वही कर दिखाया, देश की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक लड़ना है. दीपचंद वर्मा भले ही शरीर से हमारे बीच नहीं, लेकिन उनकी वीरता की यह कहानी आने वाली पीढ़ियों के दिलों में देशभक्ति की लौ जलाती रहेग.



