गुम होती विरासत.. स्वरूप खोते महल-बावड़ियां, भगवान भरोसे संरक्षित स्मारक

कई शहरों, कस्बों और गांवों में हमारी विरासत गुम होती जा रही है। राष्ट्रीय धरोहर तक की सुध लेने वाला कोई नहीं है। प्रदेश के संरक्षित स्मारकों की सुरक्षा भी भगवान भरोसे ही है। अधिकतर ऐतिहासिक धरोहरों पर सुरक्षाकर्मी तक नहीं हैं। संरक्षण के अभाव में जर्जर होती धरोहर अपना स्वरूप खो रही है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जयपुर सर्कल के 90 संरक्षित स्मारकों की सार-संभाल के लिए जयपुर, कोटा, भरतपुर, डीग व भानगढ़ में 5 उपमंडल कार्यालय बना रखे हैं, जहां वरिष्ठ संरक्षण सहायक नियुक्त कर रखे हैं। वहीं पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के 342 संरक्षित स्मारक में ज्यादातर पर सुरक्षाकर्मी ही नहीं हैं। इन संरक्षित स्मारकों की सार-संभाल की जिम्मेदारी 7 सर्कल सुपरिंटेंडेंट ही कर रहे हैं, जो कभी-कभी निरीक्षण करने पहुंचते हैं। अधिकतर संरक्षित स्मारकों पर कोई सुरक्षाकर्मी नहीं है।
गढ़बीठली के नौ दरवाजे टूटे, बस्ती बसी
तारागढ़. अरावली पर्वत पर 1033 ईस्वी में चौहान वंश के अजयराज चौहान ने गढ़बीठली (तारागढ़) के किले का निर्माण कराया था। किला 1033 से 1818 तक सौ से ज्यादा युद्ध का साक्षी रहा है, इसलिए इसे राजस्थान का जिब्रॉल्टर भी कहा जाता है। विभिन्न युद्धों और ब्रिटिशकाल में अंग्रेजों ने किले को काफी नुकसान पहुंचाया। तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने इसका परकोटा तुड़वाने के अलावा टीबी सेनिटोरियम बना दिया। किले में प्रवेश के नौ दरवाजे क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। यहां बस्ती बस चुकी है।
किले-महल तोड़कर बन रहे बाजार
सीकर. रियासत काल में महकमे किलेदार के अधीन सीकर, लक्ष्मणगढ़, रामगढ़, फतेहपुर, नेछवा, सिंगरावट, रघुनाथगढ़, रींगस, बठोठ, पाटोदा व देवगढ़ के किले थे। इनमें रींगस व सिंगरावट का किला सरकारी संरक्षण में है। ऊंचाई पर स्थित रघुनाथगढ़ व देवगढ़ के किले जर्जर हो चुके हैं। बाकी किले व महलों को या तो तोड़कर बाजार बनाए जा रहे हैं या उनका किसी न किसी रूप में व्यावसायिक उपयोग हो रहा है।
महल में चल रहा सरकारी स्कूल
कोटा. शहर के नांता क्षेत्र में महल वर्षों से अनदेखी का शिकार हो रहा है। झाला जालिम सिंह ने 18वीं शताब्दी में नांता महल का निर्माण करवाया था। यह महल स्थापत्य कला का सुंदर नमूना है। पांच मंजिला इस महल में दो जनाना व मर्दाना महल हैं। कोटा रियासत के दीवान झाला जालिम सिंह के पुत्र माधो सिंह व पौत्र मदन सिंह का जन्म इसी महल में हुआ था। पौत्र मदन सिंह का विवाह भी इसी महल में हुआ था। अभी परिसर में सरकारी स्कूल का संचालन किया जा रहा है, इसके बावजूद इसकी अनदेखी ही हो रही है।
सात मंजिला बावड़ी रह गई पांच मंजिला
पचलंगी (झुंझुनूं). राजे-रजवाड़ों के दौर में लगभग 1673 में शेखावाटी के झुंझुनूं जिले के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल लोहार्गल के पहाड़ों में बनी लगभग 400 फीट गहराई वाली चेतन दास की बावड़ी जर्जर हाल में है। सात मंजिला बावड़ी प्रशासन की अनदेखी के कारण अब पांच मंजिला ही रह गई है। बाकी दो मंजिल मिट्टी में दब गई। सरकार यदि ध्यान दे तो यह बावड़ी पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकती है। बावड़ी में कच्चे धागे, सुपातर बीनणी सहित अन्य कई हिंदी व मारवाड़ी फिल्मों की शूटिंग हुई थी। जबकि यहां प्रतिदिन सैकड़ाें पर्यटक बावड़ी देखने व कलाकृतियों के साथ फोटो शूट करने आते हैं। बावड़ी का निर्माण राहगीरों की प्यास बुझाने के लिए गोस्वामी तुलसीदास के समय संत चेतन दास ने क्षेत्रीय राजा से उसकी मन्नत पूरी होने पर करवाया था।