Rajasthan

How to Protect Chickpea Crop from Root Rot Disease

Last Updated:October 31, 2025, 11:20 IST

Chickpea Crop Disease: रबी सीजन में चने की फसल में जड़ गलन और उखठा रोग तेजी से फैलते हैं, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है. कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को रोग-रोधी किस्में जैसे RSG-888, CSJD-884, GNG-1958 आदि अपनाने और खेत में जल निकासी बनाए रखने की सलाह दी है. बीज उपचार के लिए कार्बन्डाजिम, थाईरम या ट्राईकोडर्मा का उपयोग करने से फफूंद जनित रोगों का खतरा कम होता है.

Udaipur: रबी सीजन के दौरान चने की फसल में जड़ गलन (Root Rot) और उखठा (Wilt) रोग का प्रकोप तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिससे किसानों की मेहनत पर पानी फिरने का खतरा बना रहता है. कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को समय रहते सतर्क रहने और कुछ आसान जैविक एवं वैज्ञानिक उपाय अपनाने की सलाह दी है. कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक संजय तनेजा ने बताया कि इस वर्ष जिले में लगभग 3.20 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों की बुवाई का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें से 1.55 लाख हैक्टेयर में चना बोया जाना प्रस्तावित है. जिले का लगभग 50 प्रतिशत रबी क्षेत्र चना उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जाता है. लगातार एक ही फसल पैटर्न अपनाने से कीट और बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है, इसलिए सुरक्षा उपाय अनिवार्य हैं.

कृषि अधिकारीयों ने बताया कि ये रोग मुख्यतः फफूंद से फैलते हैं, जो पौधों की जड़ों को कमजोर कर देते हैं. सबसे पहले पौधों की ऊपरी पत्तियां मुरझा जाती हैं, फिर तना सूखकर मर जाता है. इस रोग के प्रमुख लक्षणों में से एक यह है कि तने को जड़ के पास काटने पर काले धागे जैसी संरचना दिखाई देती है. यह लक्षण बताता है कि फफूंद ने पौधे के संवहनी ऊतकों (vascular tissues) को अवरुद्ध कर दिया है. यह रोग जल जमाव वाले क्षेत्रों में अधिक फैलता है.

खेत में जल निकासी और फसल चक्र जरूरीरोग से बचाव के लिए खेत में अच्छी जल निकासी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि पानी जमा न हो. पानी का जमाव फफूंद के लिए अनुकूल माहौल बनाता है. साथ ही किसान फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाएं और पहले से प्रभावित क्षेत्रों में चना की जगह दूसरी फसलें जैसे सरसों या अलसी की अंतर फसल लगाएं. एक ही खेत में लगातार चना बोने से मिट्टी में रोगजनकों की संख्या बढ़ जाती है.

रोग-रोधी किस्में और जैविक उपचारविशेषज्ञों ने रोग प्रतिरोधक किस्मों जैसे RSG-888, CSJD-884, RSG-963, GNG-1958, CSJK-174 लगाने की सलाह दी है. रोग से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका बीज और भूमि उपचार है.

भूमि उपचार: 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 100 किलो गोबर खाद में मिलाकर 10-15 दिन छाया में रखने के बाद बुवाई के समय मिट्टी में मिलाएं. ट्राईकोडर्मा एक लाभकारी फफूंद है जो रोगजनक फफूंदों को नष्ट करता है.
बीज उपचार: बुवाई से पहले 1 ग्राम कार्बन्डाजिम + 2.5 ग्राम थाईरम या 10 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से मिलाएं.

किसान करें कृषि अधिकारियों से संपर्ककिसी भी समस्या की स्थिति में किसान अपने नजदीकी कृषि अधिकारी या पर्यवेक्षक से संपर्क कर फसल संरक्षण की उचित सलाह ले सकते हैं. यह सावधानियां अपनाकर किसान अपनी उपज को रोगमुक्त और लाभदायक बना सकते हैं.

Location :

Udaipur,Udaipur,Rajasthan

First Published :

October 31, 2025, 11:20 IST

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चने की फसल में बढ़ रहा जड़ गलन रोग, जो मिटा सकता है पूरी पैदावार…

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