Rajasthan

इस प्राचीन मंदिर में लगा है देश का दूसरा सबसे वजनी घंटा, भगवान विष्णु की अकेली प्रतिमा है विराजमान 

दर्शन शर्मा/सिरोही : हिंदू धर्म में मंदिर की घंटी की आवाज का बहुत महत्व माना जाता है. स्कंद पुराण में बताया गया है कि घंटी की ध्वनि से ‘ओम’ की ध्वनि उत्पन्न होती है, जो मन-मस्तिष्क के लिए बहुत फायदेमंद होती है. जब घंटी बजाई जाती है तो उसकी आवाज़ से वातावरण में कंपन से निकलने वाली विशेष प्रकार की तरंगे वायुमंडल में उपस्थित हानिकारक सूक्ष्म जीवों व विषाणुओं को नष्ट कर देती हैं.

घंटी की आवाज से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा भी दूर हो जाती है. इसीलिए सभी मंदिरों में प्रवेश के साथ ही भगवान के दर्शन से पूर्व घंटी बजाई जाती है. देश का दूसरा सबसे वजनी घंटा सिरोही जिले के गिरवर गांव स्थित पाटनारायण मंदिर में लगा हुआ है. जिसका वजन 2100 किलोग्राम है. ये अष्टधातु से बने घंटे की आवाज कई किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है व क्षेत्र में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. वर्तमान में महंत ह्रदयशरण महाराज के सानिध्य में मंदिर में विभिन्न सेवा गतिविधियों का संचालन हो रहा है.

पाटनारायण धाम में 21 क्विंटल का लगाया घंटा
महंत सनकादिकशरण महाराज ने बताया कि इस घंटे को गरूढ़ घंट कहा जाता है, क्योंकि इसके अंदर गरूढ़ का प्रतीक बना हुआ है. गरूढ घंट सर्वप्रथम भारत के अंदर मध्यप्रदेश के मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर में 37 क्विंटल का लगा था. पाटनारायण धाम में 21 क्विंटल का घंटा लगाया है. इसकी पॉलिश व फिनि​शिंग के बाद यह दस किलोमीटर की परिधि में इसकी आवाज सुनाई देगी. इस घंटे से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करेगी. तीसरे नम्बर का अयोध्या के रामजन्मभूमि में 6 क्विंटल का घंटा लगने जा रहा है.

महाराजा अम्बरीष की पटरानी ने बनवाया था मंदिर
मंदिर का निर्माण पौराणिक महाराजा अम्बरीष की पटरानी द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था. यहां भगवान नारायण (विष्णु) की अकेली प्रतिमा प्रतिष्ठित होने से इनका नाम पटनारायण रखा गया. महाराजा अम्बरीष व उनके ‌वंशज तथा राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि अनेकों प्रांतों के राजा इस तीर्थ धाम में पाटोत्सव मनाते थे. इसलिए इस मंदिर का नाम पाटनारायण हो गया.

मंदिर का स्कंध पुराण में भी उल्लेख
पाटनारायण मंदिर को स्कंद महापुराण में नारायण ह्रद तीर्थ के नाम से जाना जाता है. यह कई शताब्दियों से श्री निम्बार्क सम्प्रदाय के संत महांतों की तपस्थली रहा है. मुगल आक्रमण, प्राकृतिक प्रकोप आदि अनेक कारणों से यह स्थान विरान सा हो गया था. ​जिसके बाद महंत सीतारामदास महाराज व उनके शिष्य महंत अचलदास महाराज ने अपने कार्यकाल में इसका विकास करवाया. इसके बाद अचलदास महाराज के शिष्य ।महंत युगलशरण महाराज द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने के साथ ही गौशाला, आयुर्वेदिक औषधालय, छात्रावास समेत आसपास के क्षेत्र में कई मंदिरों का विकास करवाया गया.

Tags: Local18, Rajasthan news, Religion 18, Sirohi news

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj