Rajasthan

Hydrogen Gas Prototype from Rajasthan University Bags ₹250 Crore Order

जयपुर. राजस्थान विश्वविद्यालय ने देशभर में तकनीकी नवाचार (Technical Innovation) का एक नया अध्याय लिखा है. यहां स्थापित देश का पहला ‘मेड इन इंडिया’ हाइड्रोजन गैस प्रोटोटाइप अब सरकारी और विदेशी कंपनियों के लिए ग्रीन एनर्जी का एक बड़ा और सस्ता समाधान बन गया है.

इस क्रांतिकारी प्रोटोटाइप को राजस्थान विश्वविद्यालय के ECH (Energy & Chemical Hub) सेंटर में डेवलप किया गया था. छह महीने पहले तैयार हुए इस मॉडल ने सफलतापूर्वक हाइड्रोजन गैस बनाकर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया की PSU कंपनियों को सप्लाई भी शुरू कर दी थी. अब इसी यूनिट को सरकार की ओर से ₹250 करोड़ का बंपर ऑर्डर मिला है, जिससे यह नवाचार भारत के ग्रीन एनर्जी सेक्टर में गेम चेंजर साबित हो सकता है.

10 किलो पानी, 6 यूनिट बिजली: अद्भुत कार्यकुशलता

यह प्रोटोटाइप पारंपरिक हाइड्रोजन उत्पादन विधियों से कहीं अधिक कुशल है.
उत्पादन क्षमता: प्रोजेक्ट के टेक्निकल मेंटर डॉ. रणधीर सिंह गजराज ने बताया कि सिर्फ 10 किलो पानी (चाहे खारा हो या भारी) से 1 किलो ग्रीन हाइड्रोजन तैयार होती है.
बिजली खपत: इस प्रक्रिया में केवल 6 यूनिट बिजली लगती है, जबकि अन्य तकनीकों में 54 यूनिट तक बिजली खर्च होती है.
ग्रीन एनर्जी: सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बिजली सोलर पावर से जेनरेट की जाती है, जो इसे सच्ची ग्रीन रिन्यूएबल एनर्जी तकनीक बनाती है.

पेटेंट प्रक्रिया: डॉ. गजराज ने बताया कि इस यूनिट को पेटेंट के लिए आवेदन किया गया है. इसमें पानी के तत्वों को तोड़कर ऑक्सीजन से हाइड्रोजन अणुओं को अलग किया जाता है.

आर्थिक और तकनीकी माइलस्टोन

विश्वविद्यालय के लिए यह उपलब्धि न सिर्फ तकनीकी दृष्टि से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी एक बड़ा माइलस्टोन मानी जा रही है.
सप्लाई: अब तक इस प्रोटोटाइप से 1000 किलो से अधिक हाइड्रोजन गैस बनाई और सफलतापूर्वक सप्लाई की जा चुकी है.
लागत: इस यूनिट की लागत करीब ₹6 लाख रुपए आती है, जबकि विदेश से खरीदे गए सिस्टम इससे कहीं अधिक महंगे होते हैं.
ट्रेडमार्क: इसका ट्रेडमार्क भी “H-2 IND System” नाम से एप्लाई किया गया है. फिलहाल इस यूनिट के जरिए 4000 किलो प्रतिदिन हाइड्रोजन गैस उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.

“जीरो वेस्ट” सिस्टम: एल्गी से बायोडीजलयह प्रोटोटाइप एक पूर्ण “Zero Waste” सिस्टम पर काम करता है. हाइड्रोजन निकालने के बाद बचे हुए पानी का भी उपयोग किया जाता है. इस पानी से एल्गी (Algae) ग्रो की जाती है. इस एल्गी का इस्तेमाल कार्बन कैप्चर करने के बाद एनिमल फीड (पशु चारा) और बायोडीजल तैयार करने में किया जाता है. यह मॉडल पर्यावरण संरक्षण के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है.

जापान-जर्मनी से ऑर्डर: विश्वस्तरीय पहचानइस इनोवेशन को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल रही है. विश्वविद्यालय को अब जापान और जर्मनी जैसे विकसित देशों से भी ऑर्डर प्राप्त हुए हैं, जिससे यह राजस्थान का पहला यूनिवर्सिटी-लेवल प्रोडक्शन हब बन सकता है. यह सफलता देश में उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा किए जा रहे तकनीकी अनुसंधान की क्षमता को दर्शाती है.

मेंटर ने की थी शुरुआती फंडिंगइस प्रोजेक्ट की शुरुआत आसान नहीं थी. फाउंडर लाल बहादुर के इस इनोवेशन को शुरुआती दौर में फंडिंग नहीं मिल पा रही थी. तब डॉ. रणधीर सिंह गजराज ने बतौर एंजल इन्वेस्टर अपनी जेब से ₹30 लाख की फंडिंग दी थी. अब यह प्रोजेक्ट न केवल सफल हुआ बल्कि देश के हाइड्रोजन एनर्जी सेक्टर में “Made in Rajasthan, Made for India” का एक सशक्त उदाहरण बन गया है.

राजस्थान विश्वविद्यालय के स्टार्टअप ने देश का पहला मेड इन इंडिया हाइड्रोजन गैस प्रोटोटाइप तैयार किया है. यह प्रोटोटाइप 10 किलो पानी से 1 किलो हाइड्रोजन गैस बनाता है और सिर्फ 6 यूनिट बिजली खर्च करता है. इस नवोन्मेषी तकनीक को पेटेंट के लिए भेजा गया है और इसे भारत सरकार से ₹250 करोड़ का बड़ा ऑर्डर मिला है. साथ ही, जापान और जर्मनी से भी ऑर्डर प्राप्त हुए हैं, जो इसे विश्वविद्यालय के लिए एक बड़ी उपलब्धि बनाते हैं.

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