‘मैं भरतपुर हूं’, लोहागढ़ की अजेय दीवारें, परिंदों का स्वर्ग और वो धरती जिसे न मुगल जीत सके, न अंग्रेज हिला सके

Last Updated:November 14, 2025, 12:35 IST
मैं भरतपुर हूं – अजेय, अटल और शौर्य की जीवित पहचान. मेरी दीवारें लोहागढ़ की तरह लोहे-सी मजबूत हैं, मेरा इतिहास बाबर से अंग्रेजों तक हर चुनौती को धूल चटा चुका है. पर मैं सिर्फ युद्धभूमि नहीं – मैं प्रकृति, संस्कृति, परिंदों और परोपकार की धड़कन हूं. मैं हूं राजस्थान का पूर्वी द्वार और भारत की अजेय आत्मा.
भरतपुर : मैं भरतपुर हूं अजेय और मजबूत, मुझे लोहागढ़ के नाम से भी जाना जाता है. मैं राजस्थान का पूर्वी प्रवेश द्वार हूं और मेरा नाम रखा गया है.भगवान राम के छोटे भाई भरत के नाम पर और मेरे कुलदेव हैं लक्ष्मणजी मैं अजेय और वीरता का प्रतीक हूं क्योंकि मेरी दीवारें लोहे-सी मजबूत हैं और मेरी आत्मा अजेय है. मुझे मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक जिसने भी जीतने की कोशिश की वह मेरे द्वार से खाली लौट गया मैं आज तक नहीं झुका हूं.
मेरी कहानी शुरू होती है. सन् 1733 से, जब मेरे शिल्पकार और स्वाभिमान के प्रतीक महाराजा सूरजमल ने मुझे बसाया था सूरजमल जाट साम्राज्य के वे शेर जिनकी नीतियां आज भी राजधर्म का उदाहरण हैं. उन्होंने दिल्ली के बादशाहों को दिखाया कि असली शक्ति तलवार से नहीं आत्मसम्मान से होती है ऐसी नींव जो आज भी डटी है. झुकी नहीं टूटी नहीं मेरे दिल में बसा है लोहागढ़ किला जो न तो तोपों से टूटा न आग से झुलसा अंग्रेज जनरल लेक ने 1805 में मुझे जीतने की कोशिश की पर उसने भी माना यह किला लोहे का नहीं आत्मबल का बना है.
लोहागढ़: शौर्य और प्रकृति का संगमलोहागढ़ की दीवारें आज भी उस युद्ध की गवाही देती हैं. जहां गोलियां बरसीं पर भरतपुर की धरती झुकी नहीं लेकिन मैं सिर्फ युद्धभूमि नहीं मैं जीवन का उत्सव भी हूं मेरी गोद में बसा है केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जहां आसमान में उड़ते हैं हजारों परिंदे, कहीं साइबेरिया से आए हंस तो कहीं जापान से आए सारस सर्दियों की ठंडी हवाओं में जब ये पक्षी मेरे जलाशयों में उतरते हैं. तो ऐसा लगता है जैसे खुद प्रकृति मेरे आंगन में संगीत रच रही हो. यही कारण है कि आज मुझे Bird Paradise of India कहा जाता है. यही मेरी पहचान है.
भरतपुर: इतिहास, संस्कृति और परिंदेमेरी गलियों में जब सूरज ढलता है तो हवा में घुल जाती है. नानखताई और बिस्तर बंद मिठाई की खुशबू मेरे दिल के करीब है. अपना घर आश्रम जहां बेघर और बेसहारा को सहारा मिलता है. जहां सेवा ही पूजा है और परोपकार जीवन का आधार मेरे आसपास हैं. अद्भुत धरोहरें डीग का जल महल अपनी भव्यता और फव्वारों के लिए प्रसिद्ध जहां महाराजा सूरजमल का वैभव आज भी झलकता है. गंगा मंदिर जो मां गंगा के सम्मान में बनी एक अनोखी रचना है. लक्ष्मण मंदिर भरतपुर म्यूज़ियम हर स्थान मेरी शान का प्रतीक है.
शान, शौर्य और सरसों की भूमिऔर मेरी आत्मा गूंजती है खनवा के युद्ध मैदान में जहां 1527 में राणा सांगा और बाबर के बीच हुए युद्ध ने इतिहास बदल दिया. मेरी यह भूमि आज भी शौर्य की गाथाएं सुनाती है. उस मिट्टी को छूते ही लगता है जैसे समय ठहर गया हो और हर कण कह रहा हो यह है भरतपुर की धरती अजेय और अमर आज भी मेरे लोग उतने ही जिंदादिल हैं. गांवों की चौपालों में आज भी लोकगीत गूंजते हैं. रूपबास ,डीग ,कुम्हेर, नदबई, बयाना हर कस्बा अपनी अलग पहचान लिए खड़ा है.
पक्षियों का स्वर्ग, वीरों की भूमिमैं वह हूं जो राजस्थान में सबसे अधिक सरसों उत्पादन देता हूं. मैं हूं भरतपुर मेरा किला बोलता है, शौर्य की भाषा. मेरा पक्षी अभयारण्य गाता है, प्राकृति का गीत मेरे लोग सिखाते हैं, मानवता का अर्थ मुझे कोई जीत नहीं पाया क्योंकि मैं सिर्फ एक शहर नहीं मैं हूं इतिहास. मैं हूं संस्कृति. मैं हूं भारत की अजेय आत्मा का प्रतीक लोहागढ़ हूं.
Rupesh Kumar Jaiswal
रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन…और पढ़ें
रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन… और पढ़ें
Location :
Bharatpur,Rajasthan
First Published :
November 14, 2025, 12:35 IST
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मैं भरतपुर हूं… वीरता, प्रकृति और इतिहास की जीवित कहानी



