मैं हूं भीलवाड़ा! मेवाड़ का प्रवेश द्वार, जहां कभी हुआ करता था भीलों का वड़ा, इतिहास और संस्कृति का अनूठा संगम

भीलवाड़ा. मैं भीलवाड़ा हूं, राजस्थान का ऐतिहासिक और औद्योगिक रूप से तेजी से उभरता शहर, जो अपने गौरवशाली अतीत और दमदार वर्तमान दोनों के लिए जाना जाता है. भीलवाड़ा के नाम करण की बात की जाए तो यहां 2 पहलू निकल कर आते हैं, जिसमे पहले यहां प्राचीन काल में भीलड़ी सिक्के बनते थे और दूसरा यह है कि भीलों के निवास क्षेत्र के रूप में पहचाने जाने वाले इस इलाके ने समय के साथ व्यापार, संस्कृति और उद्योग का एक अनोखा संगम तैयार किया. स्थानीय करघों से शुरू हुआ कपड़ा उत्पादन आज विशाल टेक्सटाइल मिलों तक पहुंच चुका है, जिसने भीलवाड़ा को देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के नक्शे पर एक प्रमुख वस्त्र नगरी के रूप में स्थापित कर दिया है.
यहां तैयार होने वाले सूटिंग-शर्टिंग, यार्न और फैब्रिक अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी गुणवत्ता के लिए पहचाने जाते हैं. आर्थिक प्रगति, औद्योगिक विस्तार और रोजगार के बढ़ते अवसरों ने भीलवाड़ा को विकास का प्रतीक बना दिया है. यही कारण है कि आज भीलवाड़ा अपने इतिहास और आधुनिक टेक्सटाइल उद्योग की बदौलत विश्व स्तर पर एक अनोखी पहचान बनाए हुए है. इतना ही नहीं भीलवाड़ा अपनी कला को लेकर भी मशहूर है. इतिहासकार और एक्सपर्ट श्याम सुंदर जोशी ने बताया कि वर्तमान परिपेक्ष में भीलवाड़ा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है. भीलवाड़ा ने एक पहचान पूरे विश्व में एक अलग की तरह से बनाई है.
जानें कैसे नाम पड़ा भीलवाड़ा
भीलवाड़ा के नामकरण की बात की जाए तो पुराने दौर में यहां पर भीलड़ी नामक सिक्का बनता था, जिसके आधार पर इसका नामकरण किया गया है. वहीं इसके पीछे एक पहलू यह भी है कि पुराने दौर में यहां पर भीलों का साम्राज्य स्थापित था और भील समुदाय के होने के चलते इसे भीलों का बाड़ा कहा जाता था. इसी आधार पर भी भीलवाड़ा का नाम कारण हुआ है. एक तरह से भीलवाड़ा के लोगों के डीएनए में व्यापार छिपा हुआ है, क्योंकि भीलवाड़ा के लोग पूरी दुनिया में व्यापार कर रहे हैं. पूर्वी रियासत मेवाड़ और शाहपुरा के संयुक्त राजस्थान में विलय होने के बाद 1949 में भीलवाड़ा जिला अस्तित्व में आया. भीलवाड़ा जिले का कुल क्षेत्रफल 10,445 वर्ग किलोमीटर है जो राजस्थान के कुल 3.05% है. क्षेत्रफल की दृष्टि से इसका राजस्थान में 14वां स्थान है.
टेक्सटाइल सिटी के रूप में विख्यात है भीलवाड़ा
श्यामसुंदर जोशी ने बताया कि कभी अभ्रक नगरी के नाम से देशभर में अपनी पहचान रखने वाला भीलवाड़ा आज सिंथेटिक वस्त्र उद्योग की रंगीन दुनियां का जगमगाता सितारा बन गया है. औद्योगिक विकास की दृष्टि से न केवल राजस्थान में बल्कि हिन्दुस्तान भर में और विदेशों में भी भीलवाडा ने अपनी विशिष्ठ पहचान बना ली है. यही कारण है कि आज भीलवाडा को “वस्त्र नगरी” या “मैनचेस्टर ऑफ इंडिया” के नाम से भी संबोधित किया जाने लगा है. स्वतंत्रता से पूर्व भीलवाड़ा जिला अभ्रक, सोपस्टोन व सेंड स्टोन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था.
भीलवाडा के पुरुषार्थी उद्यमियों ने ट्रेक्टर कम्प्रेशर एवं बोरिंग मशीनों के माध्यम से भी इसे राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलवाई, लेकिन आज यहां का वस्त्र उद्योग दिन दूनी रात चौगुनी गति से आगे बढ रहा है. टेक्सटाइल नगरी में 450 वीविंग, 21 प्रोसेस हाउस, 18 स्पिनिंग और पांच डेनिम इंडस्ट्री स्थापित है, जिसमें प्रत्यक्ष रूप से लगभग 65000 श्रमिक काम करते हैं. इन इंडस्ट्रीज में वर्ष भर में 120 करोड़ मीटर कपड़ा तैयार होता है. वहीं, राजस्थान में कुल 30 स्पिनिंग इंडस्ट्री स्थापित हैं, जिनमें से लगभग 40% कपड़े का उत्पादन सिर्फ भीलवाड़ा में होता है.
कला क्षेत्र में भी भीलवाड़ा ने हासिल किया है खास मुकाम
अगर कला क्षेत्र की बात की जाए तो भीलवाड़ा की फतेहपुर चित्रकला, शिल्प कला, बहरूपिया कला और यहां के कई ऐसी परंपरा है, जिन्होंने भीलवाड़ा को एक अहम स्थान दिलाया है. फड़ चित्रकला में भीलवाड़ा के श्री लाल जोशी को पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है. इन्हीं के बदौलत आज पूरी दुनिया में फड़ चित्रकला का बोलबाला चलता है. करीब 700 वर्ष प्राचीन यह चित्रकला आज भी जिंदा है. वहीं दूसरी तरफ शिल्प कला को बद्री लाल सोनी ने विश्व स्तर पर पहचान दिलाई है. बहरूपिया कला भी भीलवाड़ा में एक जानी-मानी कला है.
भीलवाड़ा के जानकी लाल भांड को हाल ही में पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है. इतना ही नहीं भीलवाड़ा का नाहर नृत्य, गैर नृत्य, जिंदा मुर्दे की सवारी, बादशाह की सवारी, गधे भड़काने वाली परंपरा कोड़ा मार होली, मकर संक्रांति पर निभाई जाने वाली दड़ा महोत्सव, फूलडोल महोत्सव सहित कई ऐसी परंपरा है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान हासिल कर चुका है.



