मैं हूं बीकानेर! रेतीले धोरों, हवेलियों, वीरता और भुजिया की खुशबू से बसता राजस्थान का लाल शहर

बीकानेर. मैं हूं बीकानेर, हवेलियों और रेतीले धोरों का शहर, राजस्थान का दिल, जहां हर कण में संघर्ष और वीरता की गाथा बोलता है. मेरी असली पहचान यहां की संस्कृति, अपनायत और स्वागत सत्कार है. यही नहीं बल्कि हर गली और हवेली भी कुछ अलग और अपनापन महसूस करवाती है. मेरी कहानी की शुरुआत होती है 1488 में जब मारवाड़ के युवराज राव बीका ने अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त पर मेरे अस्तित्व को जन्म दिया.
रेगिस्तान के धोरों के बीच और मां करणी के आशीर्वाद से इस भूमि पर मेरी नींव रखी गई. जहां दूर-दूर तक सिर्फ रेत के टीले और बॉर्डर का इलाका. ताकि विदेशी आक्रांताओं को यहीं पर रोका जा सके और आगे नहीं बढ़े. रेत के ऊंचे-ऊंचे टीले होने के बावजूद भी इस धरती पर राव जैतसी और कामरान के बीच हुए राती घाटी के युद्ध को देखा. मेरा कण वीरता की गाथा बोलता है.
नमकीन और मिठाई दाेनों के लिए फेमस है बीकानेर
समय के साथ-साथ मेरा कद बढ़ता गया और आकर्षण आज भी कम नहीं हुआ है. अंग्रेज भी मेरी हवेलियों और पैलेस के दीवाने रहे है. रेगिस्तान के बीचोबीच बसा जूनागढ़ का किला है, जिसे रणनीतिक रूप से भी आज तक कोई नहीं भेद नहीं पाया. इसी के कारण किसी विदेशी आक्रांताओं की हिम्मत नहीं कि वह तपते रेगिस्तान में अपनी सेना लाकर लड़ाई कर सके. तपते रेगिस्तान में सीमित साधन होने के कारण यहां कई अकाल पड़े और मृत्यु हुई. फिर भी यहां के लोगों ने संघर्ष कर खुद को मजबूत किया. दूसरे शहरों में जाकर कारोबार किया. रेगिस्तान में उगने वाली मोठ से प्रयोग हुआ और बना नमकीन भुजिया. आज पूरे विश्व में भुजिया की पहचान है और भुजिया नगरी के रूप में भी पहचान मिली. इसके बाद मिठाई रसगुल्ले भी ब्रांड बना. आज तो लोग बीकानेर के स्वाद के दीवाने है.
बीकानेर के भागीरथ कहलाए महाराजा गंगा सिंह
फिर समय बदला एक ओर महाराजा आए गंगा सिंह जी. जिन्हें बीकानेर का भागीरथ भी कहा जाने लगा और देश-विदेश में भारत का प्रतिनिधित्व किया. मेरे महल, हवेलियां और धोरे आज भी अंग्रेजों को अपनी ओर खींच लेते है. शायद इसी कारण मुझे लाल रंग का शहर कहा गया, क्योंकि मेरी गली और हवेलियां लाल बलुआ पत्थर से बनी हुई है. आज मैं सिर्फ इतिहास ही नहीं बल्कि आधुनिक भारत की पहचान बन चुका हूं. रेतीले धोरे होने के कारण यहां की हवेलियां, पैलेस और किला रॉयल आगंतुक का अहसास करवाती है.
मंदिरों, गलियोंआर हवेलियों में बसती है बीकानेर की आत्मा
संस्कृति में तो आत्मा बसती है. उस्ता कला और मथेरान कला ने विश्वभर के लोगों का मनमोह लिया. आज मेरे पास एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन है. साथ ही आधुनिक सड़के और सोलर हब के रूप में अपनी पहचान बना चुका हूं. लेकिन मेरी आत्मा तो मंदिरों, गलियों, हवेलियों में बसती है. सूरज ढलते ही धोरे और हवेलियां राजस्थानी संगीत का अलग ही अहसास करवाती है. मैं हूं हवेलियों का शहर, मैं राजस्थान का दिल, मैं लाल रंग का शहर, मैं संस्कृति की पहचान, मैं धोरों का शहर, मैं हूं बीकानेर.



