मैं करौली हूं, शेर और गाय के एक साथ नदी पर पानी पीने से हुई मेरी स्थापना, मेरे हर कण में है अध्यात्म की शक्ति…

करौली. मैं करौली हूं, मेरा जन्म हुआ है मेरी ही गोद में बहती पवित्र भद्रावती नदी के तट पर. मेरी पहचान राजस्थान में धर्मनगरी के रूप में है. मेरे हर कोने, हर गली, हर चौक-चौराहे पर मंदिरों की घंटियां गूंजती हैं. मेरी मिट्टी के हर कण में आध्यात्मिकता की सुगंध बसी है, इसीलिए मुझे धर्म की नगरी कहा जाता है. मुझे चारों ओर से अरावली पर्वतमालाओं ने अपने आंचल में समेट रखा है. यही पर्वत श्रृंखलाएं मेरी प्राकृतिक सुंदरता की असली पहचान हैं. मेरी छाती पर बसे हरे जंगल, खलखल करता हर झरना, हर पहाड़ी मुझमें जीवन का संगीत घोलते हैं.
मेरी गोद में विराजमान हैं त्रिकूट पर्वत पर साक्षात मां केला देवी, जिनकी कृपा हर भक्त पर बनी रहती है. मेरे राजमहलों में भगवान मदन मोहन जी विराजमान हैं, जो मेरे धार्मिक वैभव का प्रतीक हैं. मैं ही वह धरती हूं, जिसने राजस्थान को ऐसे दुर्लभ मंदिर दिए हैं, जो और कहीं देखने को नहीं मिलते. मैं अपनी प्राकृतिक सुंदरता, वन संपदा और विशाल बांधों के लिए भी प्रसिद्ध हूं. पहले मुझे कल्याणपुरी के नाम से जाना जाता था. मैं राजपूतों की वीर भूमि, एक देसी रियासत रही हूं.
ऐतिहासिक धरोहरें करौली की है पहचान
मेरी स्थापना का प्रतीक है कल्याण राय जी और माता अंजनी का मंदिर हैं. मेरी स्थापना के प्रतीक अंजनी माता मंदिर के नीचे पांच नदियों के संगम पर बना है प्रसिद्ध पांचना बांध, जो मेरी पहचान को और भी समृद्ध करता है. मेरे पास हैं अनगिनत महल और ऐतिहासिक धरोहरें. मेरी हर सीमा पर एक महल बसा है. लाल पत्थरों से बना मेरा परकोटा आज भी मेरी शान को बयां करता है.
धर्मनगरी के तौर पर प्रसिद्ध करौली
मैं जैन तीर्थस्थल श्री महावीरजी के कारण भी देशभर में पूजनीय हूं. यहीं से मैंने अहिंसा का संदेश पूरे भारत में फैलाया. मेरी परंपराएं भी निराली है. कुछ ऐसी जो शायद ही कहीं और निभाई जाती हों. मेरी धरती पर हर साल अनेक राज्य स्तरीय मेले भरते हैं, जिनमें महाशिवरात्रि पशु मेला सबसे प्रसिद्ध है. मेरी स्थापना सन् 1348 ईस्वी में यदुवंशी राजा अर्जुन देव ने की थी. कहा जाता है कि जब उन्होंने भद्रावती नदी के तट पर गाय और सिंह को एक साथ पानी पीते हुए देखा, तो इसी स्थान पर नगर बसाने का निर्णय लिया. उस समय मेरा नाम कल्याणपुरी था, जो बाद में बदलकर करौली पड़ा.
1997 में अस्तित्व में आया करौली जिला
मेरा जिला 19 जुलाई 1997 को अस्तित्व में आया. राजस्थान सरकार ने सवाई माधोपुर जिले की पांच तहसीलों को मिलाकर मेरा गठन किया. उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने किया था. 2011 की जनगणना के अनुसार मेरी जनसंख्या 14,58,459 और क्षेत्रफल 5043 वर्ग किलोमीटर है. मेरी सीमा पर बहती चंबल नदी मुझे मध्यप्रदेश से अलग करती है. मेरे किले और गढ़ मेरे गौरवशाली इतिहास के साक्षी हैं. मेरे किले तिमनगढ़, मंडरायल और उटगिरी मध्यकालीन भारत की गाथा कहते हैं.
यदुवंश की वीरता का प्रतीक है करौली की मिट्टी
राजा तिमनपाल (1093–1159 ईस्वी) ने तिमनगढ़ किले का निर्माण कराया था, जो आज भी यदुवंश की वीरता का प्रतीक है. मेरे गर्भ में आज भी इतिहास की सांसें बसती हैं. प्राचीन मूर्तियां, मंदिरों के अवशेष और महलों की कला मुझे जीवंत बनाए हुए हैं. मैं ही वह धरती हूं, जहां राजा मोरध्वज की नगरी गढ़मोरा बसी है, जहां आज भी प्राचीन गौरव की झलक मिलती है.



