मैं नागौर हूं! वीरता, संस्कृति और आस्था की भूमि, जहां इतिहास बोलता है और परंपरा सांस लेती है

नागौर. मैं नागौर हूं, मुझे नागवंशी शासकों ने बसाया था, जिनके नाम पर मेरा नाम पड़ा नागौर, यानी नागों की नगरी. मेरा जन्म काल बहुत प्राचीन है. मेरी नींव नागवंशीय राजा जियाराम ने रखी थी. उस समय मैं एक छोटा-सा कस्बा था, जो धीरे-धीरे राजस्थान की राजनीति और संस्कृति का केंद्र बन गया. मेरे बीचोंबीच बना विशाल किला आज भी उस दौर की याद दिलाता है, जब यहां राठौड़ वीरों की तलवारें चमकती थीं. मुझे नए रूप में बसाने और पहचान दिलाने का कार्य राठौड़ राजा बख्त सिंह ने किया.
उन्होंने 18वीं सदी में मेरा पुनर्निर्माण करवाया और मुझे एक भव्य नगर के रूप में स्थापित किया.उन्होंने ही शहर में एक भव्य किला बनाया, जिसका नाम रखा नागौर किला, इस किले में ऊंचे बुर्ज और कलात्मक झरोखे आज भी स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण है. राजा बख्त सिंह ने मेरी शासन व्यवस्था को और अधिक मजबूत बनाने पर जोर दिया. इन्होंने मेरे चारों ओर सुरक्षा के लिए परकोटा बनवाया और व्यापार को बढ़ावा दिया. राजा बख्त सिंह का शासन काल मेरा स्वर्ण युग रहा. इसी काल में मैं राजस्थान के प्रमुख ठिकानों में गिना जाने लगा.
एकता और भाईचारे का प्रतीक है सूफी संत का दरगाह
इसके बाद बख्त सिंह के बाद उनके उत्तराधिकारी शासकों ने भी मेरे विकास को आगे बढ़ाया. उन्होंने कला, संस्कृति और धर्म के क्षेत्र में विशेष ध्यान दिया. उन्होंने मंदिरों, बावड़ियों और तालाबों का निर्माण कराया. इन्हीं दिनों सूफी संत हजरत हमीदुद्दीन नागौरी रहमतुल्ला अलैह की दरगाह भी प्रसिद्ध हुई, जो आज मेरी पहचान बन चुकी है. हर साल लाखों लोग यहां उर्स में आते हैं. यह दरगाह आज प्रेम, एकता और श्रद्धा का प्रतीक बन चुकी है.
राठौड़ का शासकाल नागौर के लिए रहा स्वर्णकाल
राठौड़ों के शासन में मेरा गौरव सबसे ऊंचा था. उन्होंने मुझे केवल युद्ध का मैदान नहीं, बल्कि संस्कृति और शिक्षा का केंद्र बनाया. मेरे किले में बने हवेलियों में जो चित्रकला और नक्काशी है, वह उस युग की समृद्ध कला की कहानी कहती है. यही दौर था जब मैं व्यापार और पशुधन के लिए भी प्रसिद्ध हुआ. आस-पास के गांवों में बड़े बाजार लगते थे, और मेरी गलियों में ऊंट, बैल और घोड़ों की आवाजें गूंजती थीं. ब्रिटिश शासन के दौरान मैं राजस्थान के प्रमुख प्रशासनिक केंद्रों में गिना जाने लगा. आजादी के बाद जब राजस्थान का पुनर्गठन हुआ, तो मैं एक स्वतंत्र जिले के रूप में उभरा. मेरे अंतर्गत मेड़ता, परबतसर, डेगाना और नावां जैसे ऐतिहासिक कस्बे शामिल हुए. आज मैं राजस्थान का वह जिला हूं, जहां इतिहास और आधुनिकता एक साथ सांस लेते हैं.
नागौर के इन मंदिरों का राजस्थान में है विशेष स्थान
नागौर जिले में स्थित विभिन्न प्राचीन मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के केंन्द्र हैं, बल्कि पुरातात्विक धरोहर भी है, जो सदियों से अपनी स्थापत्य कला एवं बनावट को लेकर देशभर में विशेष पहचान रखते हैं. जिले के जायल क्षेत्र के गोठ मांगलोद का दधिमती माता मंदिर जिले का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है, जिसका निर्माण गुप्त वंश (चौथी शताब्दी) के दौरान किया गया था. मेड़ता का मीरा बाई मंदिर, चारभुजा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. करीब 400 साल पुराना है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु एवं पर्यटक आते हैं. 10वीं सदी के लाडनूं के जैन मंदिर ऐतिहासिक होने के साथ आकर्षण के केन्द्र हैं.
रामस्नेही सम्प्रदाय की चार पीठों में से एक प्रसिद्ध पीठ रेण में है. रामस्नेही समुदाय के आदि आचार्य दरियावजी ने यहां तपस्या की थी. प्रदेश के हृदय स्थल में स्थित नागौर का पर्यटन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण स्थान है. नागौर लोक देवताओं व संतों की जन्म व कर्मस्थली रहा है. जिनमें आज प्रमुख लोक देवता तेजाजी महाराज की पूजा होती है. 2 अक्टूबर 1959 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने पंचायतीराज का दीप प्रज्वलित भी नागौर में ही किया था.
नागौर के हर कण में है परंपरा की खुशबू
आज मैं केवल अपने गौरवशाली इतिहास के लिए ही नहीं, बल्कि आधुनिक विकास के लिए भी जाना जाता हूं. मेरे यहां राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है, जहां देशभर से व्यापारी आते हैं. मैं कृषि, पशुपालन और शिक्षा का केंद्र बन चुका हूं. अब मेरे अंदर स्कूल, कॉलेज, कोचिंग संस्थान और औद्योगिक इकाइयां तेजी से विकसित हो रही हैं. मेरे युवा आज सेना, प्रशासन और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं. मेरी पहचान वीरों के इतिहास से लेकर शिक्षा और विकास की नई दिशा तक फैली है. मेरे हर कण में परंपरा की खुशबू और प्रगति की आहट बसती है. मैं नागौर हूं.



