Rajasthan

UPSC में 125वीं रैंक, तीसरी बार में बनें IAS Officer, अब कचरे से बदल रहे लोगों की जिंदगी

Success Story: अक्सर अपने आस-पास कहते सुना होगा कि अगर मैं IAS बन जाऊंगा, तो लोगों की भलाई के लिए काम करूंगा. लेकिन बहुत ही कम लोग होते हैं, जो आईएएस ऑफिसर बनने के बाद इस तरह की कही हुई बातों को फॉलो करते हैं. लेकिन आज हम एक ऐसे ही आईएएस ऑफिसर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने इन बातों को सोचा ही नहीं बल्कि करके दिखा रहे हैं. उन्होंने कचरे का मैनेजमेंट करके महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहे हैं. इसके साथ ही वह कचरे को बेचकर 17 लाख से अधिक की रेवेन्यू भी इकट्ठा कर चुके हैं. हम जिनकी बात कर रहे हैं, उनका नाम मनोज सत्यवान महाजन (IAS Manoj Mahajan) है.

यूपीएससी में हासिल की रैंक 125वीं रैंक मनोज सत्यवान महाजन ओडिशा कैडर के 2019 बैच के IAS ऑफिसर हैं. उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2018 में 125 रैंक हासिल की हैं. इससे पहले वह वर्ष 2015 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा में शामिल हुए थे, जिसमें उन्होंने प्रीलिम्स परीक्षा को भी पास नहीं कर पाए थे. बाद में उन्होंने वर्ष 2016 की परीक्षा में AIR 903 रैंक हासिल की थी. इसके बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और अगले वर्ष 2017 में एक और कोशिश की और इस बार वह बड़ी संख्या में प्रीलिम्स पास करने में सफल हुए, लेकिन फाइनल में उनका चयन नहीं हुआ था. इसके बाद वर्ष 2018 की परीक्षा को अच्छे रैंक से पास होने में सफल हुए.

यहां से की इंजीनियरिंग की पढ़ाईUPSC की परीक्षा में 125वीं रैंक हासिल करने वाले मनोज ने कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे से इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार में इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की हैं. वह कॉलेज के दौरान ही यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी थी और तीसरे वर्ष से उन्होंने अपनी तैयारी को गंभीरता से लिया. उन्होंने कई कोचिंग पाठ्यक्रमों में दाखिला लिया और मार्गदर्शन प्राप्त किया, जिससे उनकी तैयारी को मजबूती मिली. उनका मानना था कि इस प्रकार की परीक्षाओं में सेल्फ स्टडी और खुद को प्रेरित रखना बेहद जरूरी है. इस परीक्षा में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह है आत्मप्रेरणा.

ऐसे शुरू हुआ यह योजनाIAS मनोज महाजन फिलहाल वह ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के कलेक्टर एंड डीएम हैं. उन्होंने देखा कि ग्रामीण इलाकों में कचरे के निपटान की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी. तभी उन्होंने इसके निपटान के बारे में सोचा और यहीं से “आमा सुंदरगढ़, स्वच्छ सुंदरगढ़” योजना पहल की शुरुआत हुई. इस योजना के तहत कचरा इकट्ठा करने के बाद उसे स्थानीय केंद्रों पर लाया जाता है, जहां महिलाएं उसे सावधानी से छांटती हैं. PET बोतलें जैसे कीमती प्लास्टिक को पुनर्चक्रण के लिए भेजा जाता है, जबकि कम मूल्य वाले प्लास्टिक (MLP) का इस्तेमाल सड़क निर्माण या सीमेंट उद्योगों में होता है.

रोजगार के मिले अवसरइस योजना के तहत गांवों का कचरा अब पास के शहरों में भेजा जाता है ताकि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच समन्वय बने. इससे न केवल सफाई बढ़ी, बल्कि ग्रामीण इलाकों को बेहतर सुविधाएं भी मिलीं. कचरा इकट्ठा करने के लिए बैटरी से चलने वाले वाहन लाए गए. महिलाओं को बेलर, श्रेडर और एयर ब्लोअर जैसी मशीनें चलाने का प्रशिक्षण भी दिया गया. अब वे खुद तकनीकी रूप से सशक्त बन चुकी हैं. अब तक 470 से अधिक महिलाएं इस काम से जुड़ चुकी हैं. उन्हें हर महीने 6,500 रुपये से 7,500 तक की आय हो रही है. इस योजना से जुड़ी महिलाएं अब “स्वच्छता दीदी” के नाम से पहचानी जाती हैं.

कचरे से 17 लाख से अधिक हुई कमाई इस योजना के तहत अब तक 360+ मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन किया जा चुका है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इससे 17 लाख से अधिक का राजस्व इकट्ठा हो गया है. इस योजना की पहल 1,682 गांवों तक पहुंच चुकी है और 3.6 लाख घरों को इसा सीधा लाभ मिला है.

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