ना बरसीम, ना बाजरा! एक बार कर दी इस घास की बुआई तो सालों तक मिलेगी फसल, होगी छप्परफाड़ कमाई

Last Updated:November 04, 2025, 12:52 IST
Napier Grass: रेगिस्तान की तपती धरती पर अब हरियाली की नई कहानी लिखी जा रही है. यहां किसान ना बरसीम बो रहे हैं और ना ही बाजरा बल्कि एक ऐसी घास उगा रहे हैं जो एक बार बो दी जाए तो सालों-साल चारा देती है. नेपियर घास को किसान अब “हरा सोना” कहकर पुकार रहे हैं. यह कम पानी, ज्यादा उत्पादन और दूधारू पशुओं के लिए सुपर चारे के रुप में काम आ रही है.
बाड़मेर. पश्चिम राजस्थान के बाड़मेर-जैसलमेर जैसे इलाकों में जहां कभी रेत के बवंडर ही नजर आते थे, वहीं अब नेपियर की हरियाली झूम रही है. किसानों के लिए ये सिर्फ घास नहीं बल्कि कमाई और उम्मीद का नया आधार बन चुकी है. नेपियर घास की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे एक बार लगाने के बाद 3 से 5 साल तक बार-बार काटा जा सकता है. रेगिस्तान की तपती धरती पर अब हरियाली की नई कहानी लिखी जा रही है.
यहां किसान ना बरसीम बो रहे हैं और ना ही बाजरा बल्कि एक ऐसी घास उगा रहे हैं जो एक बार बो दी जाए तो सालों-साल चारा देती है. नेपियर घास को किसान अब “हरा सोना” कहकर पुकार रहे हैं. यह कम पानी, ज्यादा उत्पादन और दूधारू पशुओं के लिए सुपर चारे के रुप में काम आ रही है. कम पानी में भी यह तेजी से बढ़ती है और डेयरी पशुओं के लिए पौष्टिक चारा देती है. पारंपरिक बरसीम या ज्वार-बाजरे की तुलना में इसका उत्पादन कई गुना ज्यादा होता है.
किसानों को प्रशिक्षण भी कराया जा रहा उपलब्ध
नेपियर घास में 18 से 20 प्रतिशत तक प्रोटीन और पर्याप्त फाइबर पाया जाता है जो पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता बढ़ाने में मददगार होता है. बाड़मेर जिले के रामसर, गुड़ामालानी, चौहटन, धनाऊ, सेड़वा, सिणधरी सहित आस-पास के इलाकों में अब किसान इसे पशुओं के पोष्टिक चारे के रुप में अपना रहे है. बाड़मेर कृषि अधिकारी ड़ॉ बाबूराम राणावत के मुताबिक कृषि विभाग भी किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए नेपियर की उन्नत प्रजातियों के कटिंग और प्रशिक्षण उपलब्ध करवा रहा है. उनका कहना है कि यदि हर किसान अपने खेत का छोटा हिस्सा भी नेपियर को दे तो चारे की किल्लत पूरी तरह खत्म हो सकती है.
जानें हाथी घास का उपयोग
किसान रायमल राम के मुताबिक कृषि वैज्ञानिकों की सलाह और प्रशिक्षण के बाद इसकी बुआई की है. यह पशुओं के लिए पौष्टिकता से भरपूर होती है. नेपियर घास को “Elephant Grass” यानी हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है. इसे न सिर्फ चारे के लिए, बल्कि बायोफ्यूल, मिट्टी संरक्षण और कार्बन फिक्सेशन के लिए भी उगाया जाता है. खासकर राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडू में यह काफी लोकप्रिय है.
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दीप रंजन सिंह 2016 से मीडिया में जुड़े हुए हैं. हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, ईटीवी भारत और डेलीहंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 2022 से हिंदी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. एजुकेशन, कृषि, राजनीति, खेल, लाइफस्ट…और पढ़ें
दीप रंजन सिंह 2016 से मीडिया में जुड़े हुए हैं. हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, ईटीवी भारत और डेलीहंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 2022 से हिंदी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. एजुकेशन, कृषि, राजनीति, खेल, लाइफस्ट… और पढ़ें
Location :
Barmer,Rajasthan
First Published :
November 04, 2025, 12:52 IST
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इस घास की एक बार कर दी बुआई तो सालों तक मिलेगी फसल, होगी छप्परफाड़ कमाई



