आंखों में पहले ही मिल जाता है डिमेंशिया का संकेत, समय पर अलर्ट हो जाएंगे तो बुढ़ापे की परेशानी नहीं होगी

Last Updated:March 02, 2025, 14:14 IST
Early Sign of Dementia: डिमेंशिया ऐसी बीमारी है जिसमें दिमाग में कुछ भी याद नहीं रहता. यह बेहद खतरनाक बीमारी है जिसमें इंसान की याददाश्त खत्म होने लगती है. एक रिसर्च में कहा गया है कि डिमेंशिया का संकेत बहुत पह…और पढ़ें
डिमेंशिया की पहचान कैसे करें.
Early Sign of Dementia: आपकी आंखों में न जानें कितने राज छुपे हुए हैं. इस तरह की शेरो-शायरी तो आप सुनते ही होंगे लेकिन आंखों में चाहे आपके निजी राज हो या न हो लेकिन कई बीमारियों के राज जरूर छुपे होते हैं. जब भी आप डॉक्टर के पास जाएंगे तो डॉक्टर आपकी आंखों में जरूर झांक कर देखेंगे. अब एक नए अध्ययन से यह भी पता चला है कि अगर किसी को भूलने वाली बीमारी डिमेंशिया होती है तो उसका भी संकेत आंखों में दिखता है. शोध के मुताबिक जब डिमेंशिया होती है तो दिमाग में जो बदलाव होता है उससे रेटिना पर असर पड़ता है. रेटिना में 10 लेयर होते हैं जो दिमाग को किसी चीज को देखने के बाद संदेश देते हैं. जब अल्जाइमर या डिमेंशिया होता है तो रेटिना में बदलाव आने लगता है. इससे कुछ पढ़ने में दिक्कत होती है. रंग को पहचानने में परेशानी होती, किसी चीज को जल्दी से समझ पाने में कठिनाई होती है.
इन बीमारियों से डिमेंशिया का खतरा ज्यादाब्रिटिश जर्नल्स ऑफ ऑप्थोमोलॉजी की रिपोर्ट के मुताबिक हमारी आंखें हमारे मस्तिष्क को हमारे आस-पास की चीजों के बारे में बहुत सारी जानकारी देती हैं. शोध में पाया गया कि आई हेल्थ भी डिमेंशिया और कॉग्निटिव गिरावट का एक प्रारंभिक संकेतक हो सकता है. 2006 से 2010 के बीच और फिर 2021 में की गई आंखों की जांच में यह बात पता चली. यूके बायोबैंक लिए गए डाटा में 55-73 वर्ष की आयु के 12,364 वयस्कों का विश्लेषण किया गया. इसमें यह पता लगाया गया कि क्या सिस्टमैटिक डिजीज (प्रणालीगत बीमारियों) से डिमेंशिया का खतरा बढ़ता है? यहां सिस्टमैटिक डिजीज से मतलब डायबिटीज, हृदय रोग और डिप्रेशन से था. अध्ययन का विश्लेषण करने के बाद पाया गया कि जो लोग इन समस्याओं से पीड़ित थे या फिर उम्र संबंधित एएमडी (मैक्यूलर डिजनरेशन, जिसमें धुंधला दिखने लगता है) से जूझ रहे थे, उनमें डिमेंशिया का जोखिम सबसे अधिक था.
नियमित आंखों की जांच जरूरी जिन लोगों को कोई नेत्र रोग नहीं था, उनकी तुलना में जिन लोगों को आयु-संबंधित मैक्यूलर डिजनरेशन था, उनमें डिमेंशिया का खतरा 26 प्रतिशत ज्यादा था. वहीं मोतियाबिंद वाले लोगों में 11 प्रतिशत और डायबिटीज से संबंधित नेत्र रोग वाले लोगों में 61 प्रतिशत जोखिम ज्यादा था. इससे स्पष्ट होता है कि अगर कोई डायबिटीज से पीड़ित है, किसी को हार्ट संबंधी दिक्कत है या फिर डिप्रेशन का शिकार है, तो उसे नियमित तौर पर आंखों की जांच करानी चाहिए. इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी चिकित्सकीय जांच जरूरी है. क्योंकि इस दौरान हार्मोनल चेंजेस होते हैं. कइयों को धुंधलेपन की शिकायत होती है, तो कुछ ड्राई आइज से जूझ रही होती हैं. ऐसी स्थिति में भी चिकित्सक की सलाह जरूरी होती है.
स्क्रीन टाइम हर हाल में कम करेंएक और चीज जो आज की लाइफस्टाइल से जुड़ गई है, वो है स्क्रीन टाइम. तो जिसका भी मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन पर वक्त ज्यादा बीतता है, उन्हें नियमित चेकअप कराना चाहिए. हाल ही में भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) रोहतक ने एक स्टडी के आधार पर कहा कि भारत में औसतन लोग साढ़े तीन घंटे स्क्रीन देखते हुए गुजारते हैं. पुरुषों का औसत स्क्रीन टाइम 6 घंटे 45 मिनट है, जबकि महिलाओं का औसत स्क्रीन टाइम 7 घंटे 5 मिनट है. ये भी खतरे का ही सबब है. अगर ऐसा है, तो जल्द से जल्द ऑप्टोमेट्रिस्ट से अपॉइंटमेंट लेना जरूरी हो जाता है.
आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए क्या खाएं आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए डाइट में अच्छे पोषक तत्वों को शामिल करना जरूरी है. इसके लिए फलों, सब्जियों, मेवों, बीजों, साबुत अनाज और फलियों को अपनी डाइट में शामिल करें. गाजर को पारंपरिक रूप से आंखों के लिए सबसे अच्छी सब्जी माना जाता है, तो वहीं शकरकंद, अंडे, बादाम, मछली, पत्तेदार साग, पपीता और बीन्स भी दृष्टि का ख्याल रखने में माहिर हैं.
First Published :
March 02, 2025, 14:14 IST
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