फिर हल्दी घाटी के युद्ध के मैदान में महाराणा प्रताप बनाम अकबर, जानिए पूरा मामला– News18 Hindi

इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा के दस्तावेज के आधार पर पहले पाठ्यक्रम में प्रताप को विजेता घोषित किया था और शर्मा ने इस शिलालेख पर आपत्ति की तो बदलने का फैसला हो गया. शर्मा का कहना है कि प्रताप न पीछे हटे, न हारे लेकिन इस शिलालेख से ये संदेश जा रहा है कि प्रताप युद्ध हार गए थे.
राजसमंद से बीजेपी सासंद दीयाकुमारी ने भी 25 जून को केंद्रीय कला एंव संस्कृति मंत्री को पत्र लिखकर हल्दीघाटी युद्ध क्षेत्र में ऐसे शिलालेख पर आपत्ति जताई थी और उन्हें हटाने की मांग की थी. दीयाकमारी का कहना है कि केद्र सरकार ने मांग मान ली और अब ऐसे शिलालेख हल्दीघाटी क्षेत्र से हटेंगे और नए शिलालेख लगेंगे. दीयाकुमारी ने रक्त तलाई के शिलालेख हटाने के साथ ही युद्ध क्षेत्र में जहां अकबर की सेना ने पड़ाव डाला और उस जगह का नाम बादशाही बाग रखा गया, उसे भी बदलने की मांग की.
बीजेपी और मेवाड़ के कई संगठन प्रताप को विजेता मानते हैं, इसलिए युद्ध के मैदान में भी जगह-जगह उन सभी प्रतीक और शिलालेखों को हटाने के लिए काफी समय से अभियान चला रहे हैं जहां पर महाराणा प्रताप की हार या सेना के पीछे हटने का जिक्र है.
राजूपत कऱणी सेना अध्यक्ष महिपाल मकराना का कहना है कि हमने ही मांग कर रहे थे कि ये पट्टिका गलत है, जिस पर लिखा है कि प्रताप की सेना पराजित हुई जबकि हकीकत ये कि अकबर को सेना को छह किलोमीटर पीछे जाना पड़ा. प्रताप जीते थे. अब केंद्र सरकार ने मांग मान ली लेकिन अब जल्द ही इसे हटाएं.
तीन साल पहले राजस्थान में बीजेपी की सरकार ने इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा के शोध के आधार पर पाठ्य पुस्तकों में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को विजेता घोषित किया था. उससे पहले पुस्तकों में या तो प्रताप की हार बताई या युद्ध को अनिर्णित बताया था लेकिन शर्मा ने अपने शोध के आधार पर दावा किया था कि हल्दीघाटी युद्ध क्षेत्र के आसपास के गांवों में युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की मुहर वाले पट्टे थे औऱ भी कई सबूत रखे थे. और दावा किया इन सबूतों से साफ है कि प्रताप का अधिकार युद्ध के बाद भी इस क्षेत्र पर था. यानी प्रताप ही जीते थे.
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