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माइनस 20 डिग्री टेंपरेचर में बर्फ ओढ़कर लगा रहे ध्यान, जानें देवभूमि की अनकही कहानी

Uttarakhand News: उत्तराखंड के तीन प्रमुख धाम केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट अब विधिवत रूप से बंद हो चुके हैं. हजारों श्रद्धालु लौट चुके हैं, मंदिरों के द्वारों पर ताले पड़ चुके हैं और घाटियों में पसरा है सन्नाटा… लेकिन यह सन्नाटा भी जीवित है. क्योंकि, इन बर्फीली घाटियों में अब भी निवास करते हैं वे साधु-संत, जिनकी भक्ति बर्फ से भी ठंडी और तपस्या सूर्य से भी तेज है.

बर्फ-भूख और भक्ति, ऐसा जीवन जो तप से कम नहीं
कपाट बंद होने के बाद हिमालयी धामों में जीवन सामान्य नहीं रहता. तापमान कई बार माइनस 20 डिग्री तक पहुंच जाता है. चारों ओर बर्फ, जम चुका पानी और हवा में ऐसी ठंडक कि सांस भी चुभ जाए. फिर भी कुछ तपस्वी हैं जो यहीं रहते हैं- गुफाओं, पत्थर की कुटियों या लकड़ी के छोटे आश्रमों में, बिना बिजली, बिना गैस, बिना किसी आधुनिक सुविधा के.

इनके पास न मोबाइल है, न इंटरनेट, न बाहरी दुनिया से कोई संपर्क. बस, हिमालय की नीरवता, नदी की मधुर ध्वनि और शिव का नाम. दिनभर ध्यान, योग और जप में व्यतीत होता है, रातें बर्फ की निस्तब्धता में. खाने के लिए ये साधु पहले से सूखे मेवे, आटा और दाल जमा कर लेते हैं, जबकि पानी के लिए बर्फ पिघलाते हैं. जड़ी-बूटियों से बनी चाय या गर्म पानी ही उनकी ऊर्जा का स्रोत बनता है.

कपाट बंद, पर देवत्व वहीं रहता हैहिंदू मान्यताओं के अनुसार, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री केवल तीर्थ नहीं, बल्कि देवताओं का निवास स्थान हैं. कहा जाता है कि जब कपाट बंद होते हैं, तब भी भगवान शिव, गंगा और यमुना की दिव्य शक्तियां वहीं विद्यमान रहती हैं. इसी कारण कुछ साधु इन धामों को कभी नहीं छोड़ते. उनके लिए यह भूमि पूजा का स्थान नहीं, मोक्ष की साधना का मार्ग है.

लोकमान्यता यह भी है कि जो साधक इन महीनों में हिमालय में रहकर तपस्या करता है, उसका ध्यान सीधे देवताओं तक पहुंचता है. यही कारण है कि इस अवधि को ‘शीतकालीन तप’ कहा जाता है- जब सबकुछ जम जाता है, तब भी भक्ति जलती रहती है.

ललित महाराज रहते हैं ध्यान में लीनइन साधुओं में से एक हैं बाबा बर्फानी ललित महाराज, जो सालों से केदारनाथ धाम में ग्रीष्म और शीत-दोनों ऋतुओं में तप और ध्यान में लीन रहते हैं. न्यूज़18 से बातचीत में बाबा ललित महाराज कहते हैं, ‘हिमालय देवताओं की भूमि है. यहां का हर पत्थर, हर श्वास पवित्र है. मन को जो शांति यहां मिलती है, वो कहीं और नहीं. प्रकृति ने सब कुछ उपलब्ध कराया है बस निर्भरता कम करनी होती है.’

उन्होंने आगे कहा कि जब हम बाहरी साधनों पर निर्भर नहीं रहते, तभी हम पूर्ण योगी बनते हैं. यहां रहना कठिन ज़रूर है, लेकिन यही तप है. ठंड महसूस नहीं होती, क्योंकि ध्यान में ही ऊष्मा है और भक्ति में ही शक्ति. प्रकृति सिखाती है कि सादगी ही सर्वोच्च साधना है.

जहां सन्नाटा बोलता है ‘हर हर महादेव’
जब बर्फीले झोंके घाटियों में गूंजते हैं, तब भी इन साधुओं के आश्रमों में ‘हर हर महादेव’ की ध्वनि सुनाई देती है. कपाट भले ही बंद हो गए हों, लेकिन आस्था और साधना का दीप अब भी हिमालय की गोद में जल रहा है. और शायद यही है उत्तराखंड के इन धामों की सबसे बड़ी पहचान हैं जहां सन्नाटे में भी भक्ति बोलती है.

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