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1121 साल पुराने मंदिर में 1008 कलशों से अभिषेक… सोमनाथ की महाआरती में उमड़ा जनसैलाब!

Last Updated:July 25, 2025, 17:25 IST

Pali Somnath Temple: पाली का सोमनाथ महादेव मंदिर सावन में आस्था का केंद्र बनता है. महाकाल यात्रा में उज्जैन से 21 किलो भस्म लाई गई. शोभायात्रा रघुनाथ मंदिर से शुरू होकर सोमनाथ मंदिर में सम्पन्न हुई.

हाइलाइट्स

पाली में महाकाल यात्रा में उज्जैन से 21 किलो भस्म लाई गईमहाकाल यात्रा रघुनाथ मंदिर से शुरू होकर सोमनाथ मंदिर में सम्पन्न हुईसोमनाथ मंदिर में भगवान शिव का 1008 कलशों से महाअभिषेक हुआपाली. पाली शहर का सोमनाथ महादेव मंदिर सावन के महीने में आस्था और भक्ति का ऐसा केंद्र बन जाता है, जहां हर उम्र के हजारों लोग जुटते हैं. यहां से निकलने वाली महाकाल यात्रा न सिर्फ राजस्थान बल्कि देशभर में प्रसिद्ध है. पुरुष, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग तक इस यात्रा में शामिल होकर शिव के अलग-अलग रूपों में नजर आते हैं. इस बार की यात्रा की खास बात यह रही कि उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर से मंगाई गई 21 किलो भस्म ने शिवभक्तों में अलग ही ऊर्जा भर दी. रघुनाथ मंदिर से शुरू हुई यह शोभायात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से गुजरती हुई सोमनाथ मंदिर में सम्पन्न हुई.

सावन की इस शोभायात्रा में सोमनाथ महादेव की सवारी गाजे-बाजे के साथ नगर भ्रमण पर निकली. दोपहर को रघुनाथ मंदिर से रवाना हुई यह यात्रा पानी दरवाजा, गोपीनाथ मंदिर, सर्राफा बाजार, उदयपुरिया बाजार, गुलजार चौक, पुरानी सब्जी मंडी और धान मंडी से होती हुई सोमनाथ मंदिर पहुंची. रास्ते भर शहरवासियों ने पुष्पवर्षा कर भगवान की सवारी का स्वागत किया. सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी थी और भक्त श्रद्धा से जयकारे लगाते दिखाई दिए. मंदिर परिसर में हर ओर उल्लास और श्रद्धा का वातावरण था.

1008 कलशों से हुआ महाअभिषेक
सोमनाथ मंदिर पहुंचने पर भगवान शिव का 1008 कलशों द्वारा सहस्त्र घट अभिषेक किया गया. उसके बाद महाआरती का आयोजन हुआ, जिसमें भक्तों की भारी भीड़ ने भाग लिया. मंदिर का दृश्य अत्यंत भावविभोर कर देने वाला था. हर तरफ घंटियों की गूंज, मंत्रोच्चारण और भक्ति संगीत का मधुर संगम सुनाई दे रहा था. मंदिर के पुजारी और स्वयंसेवक पूरे आयोजन की व्यवस्थाओं में तत्परता से लगे हुए थे. श्रद्धालुओं ने महाआरती के दर्शन कर अपने को धन्य माना.

एक हजार वर्ष से अधिक पुराना है मंदिर का इतिहासपाली का सोमनाथ महादेव मंदिर ऐतिहासिक और चमत्कारी आस्था का प्रतीक है. यह मंदिर करीब 1121 साल पुराना बताया जाता है. इतिहासकारों के अनुसार इसका निर्माण 9वीं शताब्दी में सोमेश्वर नाम से हुआ था. समय-समय पर विदेशी शासकों के आक्रमणों में इस मंदिर को खंडित किया गया, जिसकी निशानियां आज भी मंदिर में मौजूद मूर्तियों पर देखी जा सकती हैं. इसके बावजूद यह मंदिर अपनी भव्यता और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. सावन माह में यहां भक्तों की लंबी कतारें लगती हैं. मंदिर का स्थापत्य और पुरातत्वीय महत्व भी इसे राजस्थान के प्रमुख शिवधामों में शामिल करता है.

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