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Africa Adolf Hitler Politician Named After German Dictator | हिटलर का नाम और गांधी जैसा काम? अफ्रीका के एडोल्फ की कहानी जान चकरा जाएगा सिर

नई दिल्ली: एडोल्फ हिटलर. यह नाम सुनते ही दिमाग में एक ही तस्वीर आती है. एक क्रूर जर्मन तानाशाह. लाखों यहूदियों का कातिल. जिसने पूरी दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध की आग में झोंक दिया. इस नाम से नफरत करना लाजिमी है. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि एडोल्फ हिटलर फिर से चुनाव जीतने वाला है तो? आप शायद यकीन नहीं करेंगे. मगर यह सच है. अफ्रीका के देश नामीबिया में एक नेता है जिसका नाम एडोल्फ हिटलर है. वह 26 नवंबर को अपनी सीट फिर से जीतने के लिए तैयार है. यह कोई मजाक नहीं है. यह कहानी है एडोल्फ हिटलर ऊनोना की. जो नाम से तो तानाशाह लगता है. लेकिन काम से जनता का सेवक है.

कौन है यह अफ्रीका का हिटलर?

एडोल्फ हिटलर ऊनोना नामीबिया के एक जाने-माने राजनेता हैं. वह 59 साल के हैं. उनका जन्म दिसंबर 1965 में हुआ था. वह स्वैपो (SWAPO) पार्टी के सदस्य हैं. इसी पार्टी ने नामीबिया को आजादी दिलाई थी. एडोल्फ रंगभेद के खिलाफ लड़ने के लिए जाना जाते हैं. वे औपनिवेशिक शासन और श्वेत-अल्पसंख्यक शासन के सख्त खिलाफ रहे हैं. उनका चुनाव क्षेत्र ओम्पुंडजा है. यह नामीबिया के ओशाना रीजन में आता है. यह एक छोटा सा इलाका है. यहां 3,000 से भी कम वोटर हैं. लेकिन यहां एडोल्फ की लोकप्रियता गजब की है. वह यहां से चौथी बार जीतने की तैयारी में हैं.

पिता ने क्यों रखा इतना भयानक नाम?

सबसे बड़ा सवाल यही है. आखिर किसी बाप ने अपने बेटे का नाम हिटलर क्यों रखा. एडोल्फ ने खुद इसका खुलासा किया है. उनका कहना है कि उनके पिता ने शायद जर्मन लीडर के नाम पर उनका नाम रखा. लेकिन पिता को शायद यह नहीं पता था कि असली हिटलर ने क्या किया था. पिता को वह नाम बस एक सामान्य नाम लगा. एडोल्फ ने बताया कि बचपन में उन्हें भी यह नाम नॉर्मल लगता था. उन्हें नहीं पता था कि यह नाम दुनिया में नफरत का प्रतीक है. उन्हें बड़ा होने पर समझ आया कि जर्मनी वाला हिटलर तो पूरी दुनिया को गुलाम बनाना चाहता था.

‘मेरा उस हिटलर से कोई लेना-देना नहीं’

एडोल्फ हिटलर ऊनोना को अक्सर सफाई देनी पड़ती है. 2020 में जब उन्होंने भारी मतों से जीत हासिल की थी तब दुनिया हैरान रह गई थी. उन्होंने अपने विरोधी को बुरी तरह हराया था. उन्हें 1,196 वोट मिले थे. जबकि विरोधी को सिर्फ 213 वोट मिले. जीत के बाद उन्होंने साफ कहा कि नाम हिटलर होने का मतलब यह नहीं कि वह तानाशाह है. उन्होंने कहा कि वह दुनिया पर कब्जा नहीं करना चाहता. वह तो बस अपने जिले ओशना का विकास करना चाहता है. उनका नाजी विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है.

नाम बदलने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है

कई लोग सोचते हैं कि वह अपना नाम क्यों नहीं बदल लेते? एडोल्फ का कहना है कि अब बहुत देर हो चुकी है. सरकारी दस्तावेजों में उनका यही नाम है. जनता उन्हें इसी नाम से जानती है. उसकी पत्नी भी उन्हें एडोल्फ ही बुलाती है. इसलिए उन्होंने इसी नाम के साथ जीने का फैसला किया है. वह अपने काम से इस नाम की बदनामी धोना चाहते है. वह ग्रासरूट लेवल के नेता हैं जो लोगों की समस्याओं को सुलझाने पर फोकस करते हैं.

नामीबिया और जर्मनी का खूनी कनेक्शन

नामीबिया में जर्मन नाम होना कोई नई बात नहीं है. इसके पीछे एक गहरा और काला इतिहास है. 1884 से 1915 तक नामीबिया जर्मनी की कॉलोनी था. उस समय इसे जर्मन साउथ वेस्ट अफ्रीका कहा जाता था. जर्मनी ने यहां अपनी छाप छोड़ी है. आज भी यहां जर्मन नाम वाले शहर और चर्च हैं. लेकिन यह दौर बहुत भयानक था. जर्मन साम्राज्य ने यहां के स्थानीय लोगों का कत्लेआम किया था. नामा और हेरेरो समुदाय के हजारों लोग मारे गए थे. इसे ‘भुला दिया गया नरसंहार’ भी कहा जाता है.

क्या आज भी वहां नाजियों का असर है?

कुछ रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि हिटलर की मौत के बाद कुछ नाजी नामीबिया भाग आए थे. 1976 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि वहां जर्मन लोग एक-दूसरे को ‘हेल हिटलर’ कहकर बुलाते थे. लेकिन एडोल्फ हिटलर ऊनोना जैसे लोगों के लिए यह सिर्फ एक नाम है. उन्हें इसके पीछे की डरावनी कहानी का ज्यादा पता नहीं था. यह नाम बस औपनिवेशिक काल की एक निशानी बनकर रह गया है. 2021 में जर्मनी ने इस नरसंहार को स्वीकार किया था. नामीबिया आज भी मुआवजे की मांग कर रहा है. लेकिन फिलहाल सबकी नजरें 26 नवंबर के चुनाव पर हैं. जहां एडोल्फ हिटलर फिर से जीत का परचम लहराने को तैयार है.

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