रामलीला के मंचन से जीवित हो रही भारतीय संस्कृति, चूरू में कलाकारों का अनोखा प्रयास
नरेश पारीक/ चूरू: आधुनिकता के दौर में भी भारतीय संस्कृति और सभ्यता को सहेजने का काम रामलीला के कलाकार कर रहे हैं. ये कलाकार रामायण की स्क्रिप्ट से प्रेरित होकर मंच पर वैसा ही प्रदर्शन करते हैं, जैसा रामायण में वर्णित है. राम-सीता विवाह से लेकर सीता हरण और लंका दहन तक के दृश्यों को कलाकारों द्वारा जीवंत किया जाता है. इन रोमांचक, भयावह और रोंगटे खड़े कर देने वाले दृश्यों का दर्शक बेसब्री से इंतजार करते हैं.
लुप्त होती नाट्य कला को सहेजने का प्रयासचूरू के शिव कला मंच और भोलेनाथ कला मंच के कलाकार 1986 से रामलीलाओं का मंचन कर रहे हैं. शिव कला मंच से जुड़े मनीष चंद्र स्वामी का कहना है कि रामलीला का आयोजन जनसहयोग से किया जाता है और उनका उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करना है. भोलेनाथ कला मंच के निदेशक हरीश शर्मा ने बताया कि इन लीलाओं के माध्यम से वे लुप्त होती सनातन संस्कृति को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं.
ताड़का राक्षसी का 100 हाथियों का बलरामायण में उल्लेख है कि ऋषि-मुनियों पर हो रहे राक्षसों के अत्याचार से परेशान होकर ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास आते हैं और भगवान राम तथा लक्ष्मण को राक्षसों का संहार करने के लिए मांगते हैं. वन में राक्षसी ताड़का का वास होता है, जिसका बल 100 हाथियों के बराबर था. भगवान राम ताड़का का वध करते हैं, जिससे ऋषि-मुनियों को अत्याचार से मुक्ति मिलती है. इसके बाद राम का मारीच और सुबाहु से युद्ध होता है, जिसमें राम के बाण से मारीच की मृत्यु हो जाती है. रामलीला का यह मंचन भारतीय संस्कृति को जीवित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो दर्शकों को न केवल मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि उन्हें अपने गौरवशाली अतीत से भी जोड़ता है.
FIRST PUBLISHED : October 11, 2024, 17:32 IST