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Warrior of India: राजस्थान की धरती अपनी वीरता और शौर्यता के लिए जानी जाती है. यहां ऐसे वीर योद्धाओं का जन्म हुआ है जिन्होंने भारतीय सेना में शामिल होकर न केवल अपने दुश्मनों को मार भगाया है, बल्कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान भी दिया है. वॉरियर ऑफ इंडिया की हमारी खास सीरीज में आज आम आपको शहीद भागीरथ मीणा की कहानी कहानी बताएंगे. इन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार में अपनी अहम भूमिका निभाई थी.

भागीरथ मीणा का जन्म राजस्थान के सीकर ज़िले के छोटे से गांव कोलीड़ा में हुआ था. किसान परिवार में जन्मे भागीरथ बचपन से ही काफी होशियार थे. गांव की पगडंडियों पर दौड़ते हुए, मिट्टी की खुशबू में पले बढ़े भागीरथ अक्सर कहा करता था- मैं बड़ा होकर देश की रक्षा करूंगा. परिवार को यह मासूम सपना लगता, पर उसके इरादों में एक अनोखी चमक थी. वही, बालक आगे चलकर 10 पैरा स्पेशल फोर्स का गौरव, लांस नायक भागीरथ मल मीणा बना, वह नाम जो आज भी वीरता का प्रतीक है.

एलीट 10 पैरा स्पेशल फोर्स का हिस्सा बने लांस नायक भागीरथ मल मीणा बचपन से ही साहसी और ईमानदार व्यक्तित्व के थे. पिता खेतों में काम करतेऔर वह उनके साथ चलते, पर दिल उसके हमेशा फौज की ओर खिंचता. स्कूल में पढ़ाई करते समय भी वह देशभक्ति पर भाषण में भी भागीरथ मल मीणा हमेशा आगे रहते. उनके भीतर एक अजीब-सी आग थी देश के लिए कुछ बड़ा करने की, बस फिर क्या था जब भारतीय सेना की भर्ती हुई, तो उन्होंने बिना किसी डर के खुद को चुनौती दी और कठिन प्रशिक्षण से गुजर कर एलीट 10 पैरा स्पेशल फोर्स का हिस्सा बन गए. यह वही यूनिट है जहां पहुंचने का सपना लाखों का होता है, लेकिन मुकाम कुछ ही लोग हासिल कर पाते हैं, भागीरथ उन्हीं चुनिंदा वीरों में थे.

ऑपरेशन ब्लू स्टार की कहानी 6 जून 1984 का वह दिन भारतीय इतिहास में सदैव अंकित रहेगा.ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत अलगाववादी सिख नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके हथियारबंद समर्थकों को हटाने के लिए चलाया गया एक सैन्य अभियान था. इस दिन ऑपरेशन ब्लू स्टार अपने सबसे कठिन चरण में था. सिख समुदाय के सबसे प्रमुख और पवित्र स्वर्ण मंदिर में गोलियों की तड़तड़ाहट पूरे परिसर में गूंज रही थी. हर दीवार के पीछे मौत छिपी थी. सेना ने 10 पैरा यूनिट को एक अत्यंत जोखिम भरा दायित्व सौंपा, हमला करने वाली टुकड़ियों के लिए सुरक्षित मार्ग बनाना. यह काम ऐसा था जिसे कोई साधारण जांबाज़ नहीं कर सकता था. यह उन सैनिकों का काम था जिनकी रगों में डर नहीं बहता और उनमें भागीरथ मीणा सबसे आगे थे.

जैसे ही वे आगे बढ़े, पहली ही मोड़ पर अलगाववादी दुश्मनों ने अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पर वे रुके नहीं, उनका हर कदम उनके साहस का एलान था,उन्होंने अपने साथियों से कहा—अगर मैं रुक गया, तो तुम सब रुक जाओगे. तुम्हें आगे बढ़ना है, चाहे मैं रहु या नहीं. इतना कहकर वे मौत को ठोकर मारते हुए आगे बढ़े. यह क्षण एक सैनिक नहीं, बल्कि एक महायोद्धा का क्षण था.

गोलियों की बौछार के बीच वे अकेले आगे बढ़े. हर दिशा से हमला हो रहा था, पर वे दीवार की तरह टिके रहे. अपनी सूझबूझ और कठोर प्रशिक्षण की बदौलत उन्होंने एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन आतंकियों को मार गिराया. उनका यह अदम्य साहस पूरी टुकड़ी के लिए जीवनदान साबित हुआ. रास्ता साफ़ हुआ और यूनिट आगे बढ़ सकी. भागीरथ मीणा ने अकेले उस रास्ते को सुरक्षित कर दिया जहां मौत पहरा दे रही थी. यह सिर्फ लड़ाई नहीं थी, यह राष्ट्र-भक्ति की पराकाष्ठा थी.

लेकिन पूरे रास्ते को सेना के लिए सुरक्षित बनाने बाद जैसे ही वे आगे बढ़े तभी अचानक छुपकर घाट लगाए बैठे दुश्मनों ने उन पर अचानक गोलियां बरसाना शुरू कर दी. जिससे उनके सीने में एक गोली लगी. जैसे ही गोली लगी उनके कदम लड़खड़ाए, पर वे रुके नहीं. उन्होंने दुश्मन की तरफ देखा और जवाबी हमला किया. आखिरी सांस तक उन्होंने दुश्मन को जवाब दिया, ऐसे में भागीरथ मल मीणा को फिर एक गोली लगी. इसके बाद वे जमीन पर गिर पड़े फिर भी दुश्मनों पर हमला करते रहे और आत्म के शरीर के नहीं छोड़ने तक गोलियां चलाते रहे.

देश उन्हें याद रखेगा उनकी इस असाधारण वीरता के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया. उनके लिए यह सिर्फ एक पदक नहीं था. यह उनके साहस की अमिट मुहर थी, जिसे आने वाली पीढ़िया गर्व से देखती रहेंगी. भागीरथ मीणा आज भले हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका साहस, उनकी निष्ठा, उनके विचार, और राष्ट्र के प्रति उनका प्रेम आज भी जीवित है. वे हमें याद दिलाते हैं कि देशभक्ति कोई शब्द नहीं यह जीवन से बड़ा एक संकल्प है.भागीरथ मीणा सिर्फ एक नाम नहीं, वे अमर साहस का प्रतीक हैं.

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