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INDW vs SAW Final: 3 बैट से पूरा टूर्नामेंट, प्रवासी भारतीय के घर रुकते थे खिलाड़ी, गावस्‍कर की बहन ने बताया वूमेंस क्रिकेट का सच

ऐसा भी समय था जब भारतीय महिला क्रिकेट में पैसा नहीं था, प्रायोजक नहीं होते थे और विदेशी दौरा काफी मुश्किल था लेकिन कुछ मजबूत इरादों वाली महिलाएं थी जो ‘शो चलता रहना चाहिए’ की कहावत में भरोसा रखती थीं और उनमें से एक थीं नूतन गावस्कर. नूतन 1973 में भारत में महिला क्रिकेट आंदोलन की ध्वजवाहकों में से एक थीं. महिला खिलाड़ी तब क्रिकेट के प्रति लगाव के लिए और गर्व से ‘इंडिया’ लिखी जर्सी पहनने के लिए खेलती थीं. और नूतन जैसी महिलाएं भी थीं जो मुश्किल सफर में उम्मीदों से ज्यादा करने के लिए तैयार रहती थीं.

महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर की छोटी बहन नूतन ने आईसीसी महिला वनडे विश्व कप फाइनल की पूर्व संध्या पर पीटीआई को बताया, ‘‘भारतीय महिला क्रिकेट संघ (डब्ल्यूसीएआई) का गठन 1973 में हुआ था और इसने 2006 तक राष्ट्रीय टीम का चयन किया. इसके बाद भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने आखिरकार महिला क्रिकेट को अपने अंतर्गत ले लिया. लेकिन जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो वो ऐसे दिन थे जब पैसे नहीं थे लेकिन सभी महिला खिलाड़ी खेल के प्रति जुनून और प्यार के लिए खेलती थीं.’’

उन्होंने उन मुश्किल दिनों को याद किया जो भारतीय महिला क्रिकेट संघ के लिए सम्मान की बात रहेंगे जहां उन्होंने लंबे समय तक सचिव के तौर पर काम किया. नूतन ने याद करते हुए बताया, ‘‘जब हमारे पास डब्ल्यूसीएआई था तो हम अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट परिषद के अंतर्गत थे. और हमें बताया गया था कि महिला क्रिकेट एक पेशेवर खेल नहीं है. तब पैसे नहीं थे क्योंकि हमें पेशेवर नहीं माना जाता था.

अंतरराष्ट्रीय दौरे के लिए फंड जुटाना बहुत मुश्किल होता था और वह भारतीय क्रिकेट के अन्य नेक इरादे वाले और बिना पैसे लिए काम करने वाले लोगों के साथ फंड जुटाने के लिए हर जगह भाग-दौड़ करती थीं. उन्होंने बताया, ‘‘एक बार न्यूजीलैंड का दौरा था जहां हमारे पास लड़कियों के होटल में रुकने का इंतजाम करने के लिए फंड नहीं थे. किसी को विश्वास नहीं होगा कि हमारी टीम प्रवासी भारतीयों के परिवारों के कई घरों में रुकी थी जो मेहमाननवाजी करने में खुशी महसूस करते थे.’’

नूतन ने बताया, ‘‘एक और मौके पर मंदिरा बेदी ने हमारी मदद की. उन्होंने हीरे के एक मशहूर ब्रांड के लिए एक विज्ञापन शूट किया था. उन्हें जो भी पैसा मिला, वह उन्होंने डब्ल्यूसीएआई को दे दिया जिससे हमने भारत के इंग्लैंड दौरे के लिए हवाई टिकट का इंतजाम किया.’’ कई बार ऐसा भी होता था जब एयर इंडिया खिलाड़ियों के लिए हवाई टिकट प्रायोजित कर देता था. 1970, 80 और 90 के दशक ऐसे थे जब ज्यादातर लोग अपनी मर्जी से महिला क्रिकेट टीम की मदद करना चाहते थे.

नूतन ने कहा, ‘‘ पिछले दिन मुझे जेमिमा रोड्रिग्स की उपलब्धि को सभी राष्ट्रीय अखबारों के पहले पन्ने पर देखकर बहुत खुशी हुई. मुझे वो दिन याद हैं जब हमें बहुत कम कवरेज मिलती थी जिसमें भारतीय महिलाएं जीतीं या भारतीय महिलाएं हारीं शीर्षक होते थे.’’ नूतन खुद राष्ट्रीय स्तर की क्रिकेटर थीं. उन्होंने याद किया कि कैसे उन्होंने उस समय लंबी तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी को प्रतिभाओं को तराशने के लिए हुए कार्यक्रम में चुना था. नूतने 1970 और 1980 के दशक के बारे में बात करते हुए अंतर राज्यीय मैचों को याद किया जहां कुछ टीमों के पास सिर्फ तीन बल्ले होते थे.

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने यह राष्ट्रीय प्रतियोगिता में देखा है. निजी क्रिकेट किट महंगी होती थीं जो ‘लग्जरी’ होती थी. एक टीम के पास तीन बल्ले होते थे. सलामी बल्लेबाजों के पास दो बल्ले होते थे और तीसरे नंबर की खिलाड़ी के पास तीसरा बल्ला होता था. एक बार जब एक सलामी बल्लेबाज आउट हो जाता था तो चौथे नंबर की खिलाड़ी को उसका बल्ला और लेग गार्ड मिल जाते थे. ’’

ट्रेन की यात्रा सामान्य डिब्बों में होती थीं और महिलाएं अपनी जेब से ट्रेन का किराया देती थीं. उन्होंने बताया, ‘‘ कमरे के साथ टायलेट एक लग्जरी थी. अक्सर टीमें ‘डॉरमेट्री’ में रहती थीं जहां 20 लोगों के लिए चार वॉशरूम होते थे और अकसर वे साफ नहीं होते थे. दाल एक बड़े प्लास्टिक के बर्तन में परोसी जाती थी क्योंकि स्थानीय संघ बहुत कम बजट में टूर्नामेंट आयोजित करती. ’’

डायना एडुल्जी, शांता रंगास्वामी और शुभांगी कुलकर्णी जैसी खिलाड़ियों के लिए मैच फीस अनूठी बात थी. नूतन ने कहा, ‘‘कोई मैच फीस नहीं थी क्योंकि संघ के पास पैसे नहीं थे. मुझे पता है कि 2005 में दक्षिण अफ्रीका में हुए महिला विश्व कप में उप विजेता रही भारतीय टीम को पुरस्कार राशि मिली थी लेकिन मुझे याद नहीं कि उन्हें प्रोत्साहन राशि मिली थी या नहीं. ’’

उन्होंने कहा, ‘‘2005-06 के बाद मैंने क्रिकेट प्रबंधन से ब्रेक ले लिया था लेकिन कुछ साल बाद वापस आ गई थी. शुरु में बीसीसीआई का फोकस सिर्फ सीनियर महिला क्रिकेट पर था. पर डब्ल्यूसीएआई ने अंडर-14 और अंडर-16 स्तर पर टूर्नामेंट आयोजित किए. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को बीसीसीआई ने चुना. ’’

उन्होंने कहा, ‘‘आज मुझे सबसे ज्यादा खुशी तब होती है जब मैं महिला टीम को बिजनेस क्लास में यात्रा करते, फाइव स्टार होटलों में रुकते और वो सारी सुविधाएं पाते हुए देखती हूं जो उन्हें उनकी कड़ी मेहनत के लिए मिलनी चाहिए. ’’ तो डीवाई पाटिल स्टेडियम में रविवार को इतिहास बनते देखने के लिए मौजूद रहने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘‘नहीं, मैं मुंबई से बाहर हूं लेकिन मैं इसे टीवी पर देखूंगी.’’

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