अक्षय तृतीया को लेकर रोचक तथ्य, महाभारत के युधिष्ठिर, भगवान परशुराम और जैन समुदाय से जुड़ा है इतिहास

राहुल मनोहर/सीकर:- अबकी बार 10 मई को अक्षय तृतीया है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस दिन सर्व सिद्धि मुहूर्त होता है. इस दिन किया गया दान, पुण्य, जप, तप अक्षय रहता है. अक्षय तृतीया का महत्व हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि जैन धर्म में भी विशेष है. जैन धर्मावलंबी इस दिन मुनियों, साधु-संतो को आहार के रूप में गन्ने का रस पिलाते हैं.
जैन धर्म में इस प्रथा को पारणा कहा जाता हैं. पंडित घनश्याम शर्मा ने लोकल18 को बताया कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता है. देश के हर प्रदेश में इसे किसी न किसी रूप या नाम से मनाया जाता है.
जैन समुदाय में अक्षय तृतीया का महत्वमान्यता है कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ, जिन्हें ऋषभ देव के नाम से भी जाना जाता है, इन्होंने 6 माह तक बगैर भोजन-पानी के तपस्या की. इसके बाद वह आहार के लिए बाहर बैठ गए. ऋषभ देव को राजा समझकर लोगों ने सोना-चांदी सहित बेटी तक दान दी, लेकिन आहार नहीं दिया. वह बगैर आहार के फिर से तपस्या में चले गए.
एक साल 39 दिन बाद जब आदिनाथ पुनःतपस्या से बाहर आए, तो राजा श्रेयांश ने उनके मन की बात समझी और उन्हें गन्ने के रस का पान कराकर उपवास तुड़वाया. इस दिन अक्षय तृतीया थी. तभी से जैन समुदाय में अक्षय तृतीया का महत्व है.
भगवान परशुराम और अक्षय तृतीयापंडित घनश्याम शर्मा ने बताया कि भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था. इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है. वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में उच्च ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था.
इस तिथि को प्रदोष व्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल में ही हुआ है. उनके पिता ऋर्षि जमदग्नि थे. भविष्य पुराण में उल्लेख है कि इस दिन युगादि तिथियों की गणना होती है. सतयुग व त्रेतायुग की शुरूआत इसी दिन से हुई थी. साथ ही इसकी तिथि को लेकर अन्य मान्यताएं भी हैं.
ये भी पढ़ें:- क्या सच में कब्र से मुर्दों को निकालकर खाता है यह जीव? मुर्दाखोर के नाम से चर्चित, एक्सपर्ट ने बताया सच
अक्षय तृतीया पर युधिष्ठिर को मिला था अक्षय पात्रमहर्षि वेदव्यास ने इसी दिन से महाभारत लिखना शुरू किया था. अक्षय तृतीया के दिन महाभारत के युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था. इसकी विशेषता थी कि इसमें भोजन कभी समाप्त नहीं होता था. इसी पात्र से वह अपने राज्य के गरीब व निर्धन को भोजन देकर उनकी सहायता करते थे. इसी आधार पर मान्यता है कि इस दिन किए जाने वाला दान-पुण्य का भी कभी क्षय नहीं होता है. इसलिए सभी को इस दौरान दान-पुण्य करना चाहिए. इसमें साधु-संतों के साथ ब्राह्मणों-गरीबों को भोजन कराकर व वस्त्र दान करने के साथ गायों को हरा चारा खिलाना चाहिए. वहीं पक्षियों को परिंडे लगाकर दाने-पानी की व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे विशेष लाभ मिलता है और भगवान श्री विष्णु की कृपा अपने भक्तों पर हमेशा बनी रहती है.
Tags: Akshaya Tritiya, Local18, Rajasthan news, Sikar news
FIRST PUBLISHED : May 3, 2024, 10:54 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.