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Iran Nuclear Bomb News: IAEA Chief Warns, Benjamin Netanyahu Wanted To Bomb Nuclear Sites Of Iran But Donald Trump Didn’t Agree | परमाणु बम बनाने के बाद बेहद करीब ईरान, लैब उड़ाने को तैयार थे नेतन्याहू, बात न मान ट्रंप ने किया ब्लंडर?

नई दिल्ली: एक बम, एक फैसला और पूरी दुनिया की सांसें अटकी हुई थीं. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मन ही मन वो ‘बटन’ दबा ही दिया था, जिससे ईरान की परमाणु प्रयोगशालाएं धूल में बदल जातीं. लेकिन ऐन वक्त पर अमेरिका से फोन आया- ‘रुको!’ और बस यहीं से शुरू होती है उस फैसले की कहानी, जो शायद आगे अमेरिका का सबसे बड़ा कूटनीतिक ब्लंडर साबित होगा. दरअसल, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रोसी ने ईरान को लेकर जो हालिया बयान दिया है, उसने दुनिया भर में हलचल मचा दी है. ग्रोसी ने खुलकर कहा, ‘ईरान अब परमाणु हथियार बनाने से बहुत दूर नहीं है. उनके पास सारे पुर्जे हैं, बस उन्हें जोड़ने की देर है.’ यानी वो जिगसॉ पजल अब लगभग पूरा हो चुका है.

ग्रोसी की यह टिप्पणी तब आई जब वो ईरान की यात्रा पर निकलने वाले थे. उनका मकसद था पारदर्शिता बढ़ाना और कूटनीति को दोबारा पटरी पर लाना. लेकिन इसके उलट, स्थिति एक बम के धमाके से पहले वाली खामोशी जैसी है.

इजरायल ने बनाए थे दो-दो प्लान

अब बात करें नेतन्याहू की. तो उन्होंने पहले ही मई में ईरान की न्यूक्लियर साइट्स पर हमला करने की पूरी तैयारी कर ली थी. दो प्लान तैयार थे: पहला, एक कमांडो रेड और फिर बमबारी. दूसरा, सिर्फ जबरदस्त बमबारी. लेकिन अमेरिका से समर्थन नहीं मिला. ट्रंप प्रशासन ने ईरान से ‘बातचीत पहले, बमबारी बाद में’ की नीति अपना ली.

नेतन्याहू ने यह मौका इसलिए चुना क्योंकि ईरान इस समय अपने सबसे कमजोर दौर में है. उसके एयर डिफेंस सिस्टम पहले ही दो दौर की लड़ाइयों में चरमरा चुके हैं. हमास, हिज़बुल्लाह और सीरिया—सब अपने-अपने घुटनों पर हैं. और सबसे बड़ी बात, इजरायल ने पहले ही कई ईरानी मिसाइल प्रोडक्शन साइट्स को तबाह कर दिया है.

इसीलिए नेतन्याहू के लिए ये वक्त ‘परफेक्ट स्ट्राइक’ का था. लेकिन अमेरिका ने कहा, ‘डील की उम्मीद अभी बाकी है.’ ट्रंप के इर्द-गिर्द बैठे कई लोग जैसे- तुलसी गबार्ड और जेडी वेंस नरमी की सिफारिश की. उनका तर्क था कि फिलहाल हमला युद्ध छेड़ देगा, और अमेरिका अभी उस मोड़ पर नहीं है.

क्या ट्रंप ने ब्लंडर किया?

पर क्या अमेरिका का ये निर्णय, एक ब्लंडर नहीं था? क्या ट्रंप ने नेतन्याहू को रोककर ईरान को आखिरी पुर्जे जोड़ने का वक्त नहीं दे दिया? क्या कूटनीति की चादर ओढ़कर दुनिया ने बम की टिक-टिक सुननी बंद कर दी? अब अगर ईरान वाकई बम बना लेता है, तो सबसे बड़ा सवाल यही होगा कि क्या उस लैब को तब उड़ाया जाना चाहिए था, जब मौका था?

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