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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा- क्या अधिकारों को खतरे में डाले बिना जाति संबंधी शब्दावली बदली जा सकती है

Agency:भाषा

Last Updated:February 24, 2025, 22:25 IST

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्रों में आपत्तिजनक शब्दावली बदलने पर विचार करने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि शब्दावली बदलने से जातिगत पहचान की प्रवृत्ति कम होगी.SC ने केंद्र से पूछा- अधिकारों को खतरे में डाले बिना जाति शब्दावली बदलेगी?

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जाति संबंधी शब्दावली पर सवाल पूछा. (Image:PTI)

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के अधिकारों को बरकरार रखते हुए उनकी उपजाति के लिए इस्तेमाल की जाने वाली शब्दावली बदलने पर विचार करे. ताकि उन्हें जारी किए जाने वाले जाति प्रमाणपत्रों में कुछ शब्दों के इस्तेमाल से बचा जा सके. जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने माना कि इस मुद्दे पर फैसला लेना संसद का काम है, लेकिन कहा कि शब्दावली बदलने से लोगों को उनकी जाति के नाम से पहचाने जाने की प्रवृत्ति को रोकने में काफी मदद मिलेगी. पीठ ने कहा कि ‘हमारा देश 1950 से 2025 तक एक लंबा सफर तय कर चुका है. अब 2025 में इन शब्दों का इस्तेमाल करना उचित नहीं है. हां, यह पूरी तरह से एक विधायी मुद्दा है और हमने महज केंद्र को इस मुद्दे के प्रति सजग करने के इरादे से उसे नोटिस जारी किया है.’

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि ‘आप इन व्यक्तियों के दर्जे को बदले बिना उनके लिये इस्तेमाल होने वाली शब्दावली में बदलाव कर सकते हैं. हिंदी की शब्दावली बेहद समृद्ध है. आप इन शब्दों की जगह कोई भी शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं.’ केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि यह एक नीतिगत निर्णय है और इन शब्दों को हटाने से अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में होने के कारण इन लोगों को मिलने वाले अधिकार और लाभ प्रभावित हो सकते हैं. जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि कोई भी शब्दों को हटाने के लिए नहीं कह रहा है, बल्कि उनका नाम बदलने का अनुरोध कर रहा है और अदालत केवल यह चाहती है कि संसद इस मुद्दे पर संज्ञान ले. उन्होंने कहा कि ‘अगर मैं महाधिवक्ता होता और मुझे सरकार को सलाह देनी होती, तो मैं वाल्मीकि-1, वाल्मीकि-2 और वाल्मीकि-3 आदि शब्दों के इस्तेमाल का सुझाव देता. यहां तक ​​कि महात्मा गांधी ने भी अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के लिए हरिजन जैसा शब्द गढ़ा था. शब्दावली बदलकर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.’

गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) अखिल भारतीय गिहारा समाज परिषद की ओर से पेश अधिवक्ता हरीश पांडे ने कहा कि अधिकारी किसी भी उप-जाति का जिक्र किए बिना एससी/एसटी श्रेणियों के सामान्य प्रमाणपत्र जारी कर सकते हैं. पीठ ने मामले पर सुनवाई छह हफ्ते के टाल दी और केंद्र से इस मुद्दे पर विचार करने को कहा. केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि किसी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जातियों की पहली सूची राष्ट्रपति के अधिसूचित आदेश द्वारा बनाई गई थी और उक्त सूची में बाद में किसी को शामिल करना, उससे बाहर करना और अन्य संशोधन केवल संसद के अधिनियम द्वारा ही किए जा सकते हैं. हलफनामे में कहा गया है कि भारतीय समाज में ऐतिहासिक रूप से एक कठोर, व्यवसाय-आधारित, पदानुक्रमित जाति व्यवस्था थी, जिसमें सामाजिक पदानुक्रम में एक जाति का सापेक्ष स्थान काफी हद तक उसके पारंपरिक व्यवसाय से निर्धारित होता था.

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केंद्र ने कहा, “1950 में तैयार की गई अनुसूचित जातियों की सूची भारत सरकार (अनुसूचित जाति) आदेश, 1936 के तहत अनुसूचित जातियों की सूची का एक संशोधित संस्करण थी, जो भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत बनाई गई थी और बदले में दलित वर्गों की पिछली सूची का विस्तार थी.” केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 341 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए 1950 से 1978 तक छह आदेश दिए, जिसमें विभिन्न राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के संबंध में कुछ जातियों और समुदायों को अनुसूचित जाति के रूप में निर्दिष्ट किया गया और आज तक 26 राज्यों और छह केंद्र-शासित प्रदेशों के संबंध में 1,258 जातियों/समुदायों को अनुसूचित जाति के रूप में निर्दिष्ट किया गया है. हलफनामे में कहा गया है कि ‘चूहरा’ और ‘भंगी’, ‘चमार’, ‘कंजर’ समुदाय के सदस्य क्रमशः वाल्मीकि, जाटव, जियाराह जाति के नाम पर अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के पात्र नहीं होंगे. पिछले साल 18 नवंबर को शीर्ष अदालत ने उस याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था, जिसमें जाति प्रमाणपत्रों में कुछ शब्दों का इस्तेमाल न करने और शब्दावली को बदलने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.


Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

February 24, 2025, 22:25 IST

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SC ने केंद्र से पूछा- अधिकारों को खतरे में डाले बिना जाति शब्दावली बदलेगी?

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